स्नेहा राय : एक प्रेरक व्यक्तित्व

रीमा पांडेय, कोलकाता : 3 मई की मनहूस सुबह 5:30 बजे मोबाइल का रिंगटोन बज उठा। मैंने यह सोचकर डरते-डरते फोन रिसीव किया कि आखिर स्नेहा राय जी ने इतनी सुबह फोन क्यों किया! रोते हुए स्नेहा राय जी ने कहा-“रीमा दी मेरे पति नहीं रहे” मैं इतना ही कह पायी- “स्नेहा जी आप अपनी बिटिया के लिए अपने को मजबूत बनाएँ, अपने को संभाले” फोन कट गया, मैं लगभग आधे घंटे जड़वत् आँसूओं में डूबी बैठी रही।

स्नेहा जी के पति पिछले 10-15 दिनों से कोरोना संक्रमित होकर नर्सिंग होम में भर्ती थे। उनका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था, वह स्वयं इस बीमारी को मात देकर पूरे परिवार की सेवा कर रही थी, इसके अलावा रांची के कई जरूरतमंद परिवार की भी मदद कर रहे थी। मेरा बेटा भी कोरोना संक्रमित हो गया था, स्नेहा जी स्वयं इतनी परेशानियों में रहते हुए भी फोन करके मेरे बेटे का हाल-चाल अवश्य पूछती थी।

स्नेहा जी हिंदी साहित्य परिषद के झारखंड शाखा की अध्यक्ष हैं, मैंने उन्हें हमेशा प्रतिभाशाली, परिश्रमी और मजबूत महिला के रूप में देखा है, उन्हें हिंदी साहित्य परिषद का आधार स्तंभ कहा जाता है। उनके पति रांची में कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में थे, इस व्यवसाय में उनकी गहरी पैठ थी। माँ लक्ष्मी की कृपा उन पर बनी रही, महज 42 साल की उम्र में उनके निधन से परिवार की अपूरणीय क्षति हुई।

4-5 दिनों तक मैं चाह कर भी उन्हें फोन नहीं कर पाई। वास्तव में मैं सांत्वना के एक भी शब्द नहीं जुटा पा रही थी, मैं ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि स्नेहा जी को इतनी हिम्मत मिले कि वह अपनी बिटिया के लिए माता-पिता दोनों की भूमिका निभा पाए। उन्होंने 5-6 दिनों बाद स्वयं फोन किया, उनकी आवाज में गजब का आत्मविश्वास था। उन्होंने मुझे कहा- “रीमा दी, आपकी आवाज़ में इतनी उदासी क्यों? फिर उन्होंने कहना शुरू किया- “मैंने अपने मन को मजबूत कर लिया है दी, 3 दिनों बाद श्राद्ध कर दिया।”

मैंने कहा- “12-13 दिनों बाद किया जाता है ना?” उन्होंने कहा- “दीदी आर्यसमाजी नियम के तहत 3 दिनों में किया जाता है” मैंने पूछा- आप लोग आर्यसमाजी हैं? उन्होंने कहा-“नहीं दी, मुझे अपने घर से शोक का माहौल हटाना था, अपने सास-ससुर और बिटिया को नकारात्मकता से बचाना था, मेरा भाई इस हादसे को देख बार-बार बेहोश हो रहा था मेरे माता-पिता टूट गए हैं, यदि मैं टूट गयी तो मेरा पूरा परिवार बिखर जाएगा। “उन्होंने अपने आसपास के कई ऐसे परिवारों का जिक्र किया जिन्हें कोरोना ने बरबाद कर दिया, जैसे एक परिवार में कोरोना संक्रमित होकर पिता अस्पताल में थे।

माँ कोरोना संक्रमित होकर घर में ही दम तोड़ देती है, घर आने पर पिता को जब यह पता चलता है कि उनकी पत्नी नहीं रही, वह सदमे को सहन नहीं कर पाए और हृदयगति रुकने से उनकी भी मौत हो गई तथा बच्चे अनाथ हो गयें। उन्होंने आगे कहा- “मुझे बेटी की परवरिश करनी है, सास-ससुर का सहारा बनना है, अपने माता पिता और भाई को भी टूटने नहीं देना है।”

स्नेहा जी से बातें कर मन बहुत हल्का हो गया, उनके मन को सबल बनाने के लिए मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।एक दिन उनका फोन आया, उन्होंने मुझे बताया-“मैंने पति का कंस्ट्रक्शन का कारोबार संभाल लिया है, महिलाओं के लिए यह आसान नहीं है, अतः मैंने एक सशस्त्र बॉडीगार्ड भी रखा है, मैं अपने पति के प्रत्येक प्रोजेक्ट को पूरा करुँगी। कुछ परिचित और कुछ परिवार के सदस्य कह रहे हैं कि इस व्यवसाय में फँसे पैसे निकालो और इस कंस्ट्रक्शन के धंधे से अलग रहो, लेकिन मैं पीछे नहीं हटूँगी, मैं किसी से नहीं डरती हूँ।”

उन्होंने आगे कहा- “मैं पति की तस्वीर के आगे दीया नहीं जलाती, फूल माला भी नहीं चढ़ाती। मेरी 5 वर्षीय बिटिया यह सब करती है, मैं उसी दिन दीया जलाऊँगी जब उनके सभी प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरे करूँगी।”
उनकी आत्मविश्वास से परिपूर्ण बातें सुनकर मैंने मन ही मन उन्हें सैल्यूट किया।

मुझे झाँसी की रानी याद आई, उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी हार ना मानते हुए कहा था- “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी तथा अंत तक मैदान में डटी रही। आधुनिक रांची की रानी स्नेहा राय ने कहा चाहे जितनी विषम परिस्थितियाँ आयें, मैं पीछे नहीं हटूँगी, मैं हार नहीं मानूँगी।” कई लोगों के लिए प्रेरक व्यक्तित्व स्नेहा राय को सैल्यूट है।

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