*मुक्तक*
इंसान पहले सा कहाँ अब काफ़िलों में है
तौबा! वबा का ख़ौफ़ कितना अब दिलों में है
तन ही नहीं, मन भी हुआ है क़ैदखाने में
सहमा डरा तन्हा बशर अब महफ़िलों में है
वबा- महामारी
बशर- आदमी
*मुक्तक*
इंसान पहले सा कहाँ अब काफ़िलों में है
तौबा! वबा का ख़ौफ़ कितना अब दिलों में है
तन ही नहीं, मन भी हुआ है क़ैदखाने में
सहमा डरा तन्हा बशर अब महफ़िलों में है
वबा- महामारी
बशर- आदमी