*कुण्डलिया*
जीवन से धोना नहीं, अगर चाहते हाथ।
बार-बार साबुन लगा, धोते रहना हाथ।।
धोते रहना हाथ, निकलना तुम न भवन से।
बेशक धो लो हाथ, नौकरी, भत्ता, धन से।।
धन इतना मिल जाय, मिले रोटी को तीवन।
किन्तु कृपा हो जाय, प्रभो! बच जाए जीवन।।
*कुण्डलिया*
जीवन से धोना नहीं, अगर चाहते हाथ।
बार-बार साबुन लगा, धोते रहना हाथ।।
धोते रहना हाथ, निकलना तुम न भवन से।
बेशक धो लो हाथ, नौकरी, भत्ता, धन से।।
धन इतना मिल जाय, मिले रोटी को तीवन।
किन्तु कृपा हो जाय, प्रभो! बच जाए जीवन।।