डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया*

जीवन से धोना नहीं, अगर चाहते हाथ।
बार-बार साबुन लगा, धोते रहना हाथ।।

धोते रहना हाथ, निकलना तुम न भवन से।
बेशक धो लो हाथ, नौकरी, भत्ता, धन से।।

धन इतना मिल जाय, मिले रोटी को तीवन।
किन्तु कृपा हो जाय, प्रभो! बच जाए जीवन।।

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