तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : रेलनगरी खड़गपुर कहें या समूचे जंगल महल की बात करें। पिछले साल मार्च के बाद से जो परिदृश्य बनना शुरू हुआ था , परिस्थितियां तेजी से वैसी ही नजर आ रही है। लॉकडाउन भले न लगा हो लेकिन कोरोना को लेकर आतंक और आपाधापी बिल्कुल वैसी ही है। तिस पर वैक्सीन की चिंता जीवन संध्या में पहुंच चुके बुजुर्गों को भी चैन लेने नहीं दे रही। क्या गांव , क्या शहर।
हर तरफ भय और अनिश्चितता पसरी है। बाजारों में भीड़ है , लेकिन दुकानदारों के चेहरों पर हंसी नहीं दिखती । कहते हैं – “कोरोना और लॉकडाउन के डर से लोग खरीदारी से बच रहे हैं , पैसे बचाने की खातिर । सेल मार्केट में भारी बिक्री न हो तो मनमाफिक मुनाफा सपना हो जाता है “। सड़कों और बाजारों में भीड़ देख प्रशासनिक अधिकारी और डॉक्टर परेशान हैं।
संक्रमण बढ़ने के डर से लेकिन लोग कहते हैं उनकी भी तो मजबूरी है। घर बैठने से जिंदगी थोड़े न चलेगी। जन साधारण को तो निकलना ही पड़ेगा। कोरोना संक्रमण के लिहाज से विशेषग्य अगले दो महीने महत्वपूर्ण मान रहे हैं क्योंकि इस दौरान तेज धूप , गर्मी और उमस शीर्ष पर होता है। ऐसे में संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
ऐसे में लोग भारी असमंजस में हैं कि इस काल की नार्मल सर्दी , खांसी व बुखार आदि की समस्या को कोरोना के खतरों से कैसे अलग करें। क्योंकि पिछले साल का अनुभव बताता है कि ऐसे लक्षण नजर आते ही डॉक्टर्स मरीज को देखने से इन्कार कर उन्हें सरकारी अस्पताल जाने को कहते रहे। इस बार भी ऐसा होने पर जहां अस्पतालों पर दबाव बढ़ेगा , वहीं लोगों की मुश्किलें भी क्योंकि कड़वी सच्चाई यही है कि बात वैक्सीन की हो या टेस्टिंग की, आम आदमी के लिए दोनो हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं मानी जा सकती।