कोरोना गाइडलाइन का पालन चुनावी रैलियों में क्यों नहीं होती?

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

क्या कोविड-19 का असर आम लोगों द्वारा किये जाने वाले शादी विवाह या अन्य आयोजन में ही होती है। यदि कोई राजनीतिक दल सभा समावेश करती है तो क्या कोरोना वायरस भी डर जाता है? कोविड़19 के सारे नियम कानून अपनी जगह और राजनीतिक दलों की सभा में हजारों, लाखों की भीड़ अपनी जगह। यह ठीक है कि कोविड-19 के चलते एहतियात बरतना बहुत ही जरूरी है, परंतु इस एतिहात की हवा उस वक्त क्यों निकल जाती है जब सभी राजनीतिक दल रैली और सभा करते हैं या आंदोलनकारी महीनों आंदोलन करते रहते हैं?

इस सवाल का जवाब संभवतः कोई भी प्रशासन देना नहीं चाहेगी परंतु जब आम लोगों का व्यक्तिगत आयोजन होता है तो कोविड-19 के नाम पर प्रशासन द्वारा तमाम अड़ंगा खड़े किए जाते हैं। कहने का मतलब यही है कि देश में जितने भी नियम कानून है वह सिर्फ आम नागरिकों के लिए है सभी राजनीतिक दलों या नेताओं का इन नियमों से कोई लेना-देना नहीं। सभी माननीय अपने ही बनाये कानूनों से ऊपर हैं।
कोविड़19 के चलते अभी भी सभी रूटों की ट्रेनों का आवागमन सुचारू नहीं हो पाया है।

भीड़ कम करने के लिए कुछ बड़े स्टेशनों के प्लेटफार्म टिकट 50 रुपये कर दिया गया है अर्थात आपदा में अवसर! प्रधानमंत्री जी सभी जगहों पर पोस्टरों पर यह कहते नजर आते हैं कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। तो क्या वैक्सिनेशन का काम पूरा हो गया है देश में जो 5 राज्यों के चुनावी माहौल में इस प्रकार का नजारा देखने को मिल रहा है? यानी सभी दलों और नेताओं को जनता से कोई मतलब नहीं है सिर्फ और सिर्फ इन्हें अपनी सत्ता और राजनीति से मतलब है। आगे-आगे देखिए होता है क्या!

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