समय के साथ अगर कुछ बदला तो वो रही हमारी उम्र और देश व राज्य में सरकारें । लेकिन इसके अलावा और कुछ नहीं बदला । २०१४ के चुनाव से लेकर २०२१ तक कुछ ऐसा ही रहा । जब मैं २०१४ में १२ वीं कक्षा से पास आउट हुआ था तब मुझे लगा आगे मुझे कहीं ना कहीं नौकरी अवश्य मिल जाएगी । समय गुजरता रहा, और मैने अपने ग्रेजुएशन के साथ सरकारी नौकरियां की तैयारिया का भी स्टार्ट अप शुरू कर दिया की कहीं कोई नौकरी मिल जाए लेकिन अभी तक कोई उम्मीद नहीं जगी । २०१४ के चुनाव से मोदी जी के २ करोड़ रोजगार देने का वादा भी एक सपना रह गया। वैसे ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का भी रुख सामने आया ।
२०१९ के चुनाव में मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत का सपना ऐसा दिखाया जो आज तक तो युवा वर्ग को समझ नहीं आया ।आखिर युवा आत्मनिर्भर कैसे बने ।बिना पैसे बिना रोजगार देश का युवा आत्मनिर्भर नहीं हो सकता । मोदी जी ने ये वादा भी किया था कि युवा आत्मनिर्भर बनने के लिए उन्हें सरकारी बैंको से लोन इंस्टैंट दिया जाएगा लेकिन बैंको में आज तक वो लोन कभी किसी युवा को बिना झंझट के नहीं दिया गया ।मुझे आज भी लगता है कि बैंक द्वारा लोन की सुविधा सिर्फ विजय माल्या जैसे लोगो को ही इंस्टैंट मिला है ।
२०२० में जहां बिहार चुनाव का मुद्दा लाखो को रोजगार देना था तो बंगाल के चुनाव में मुद्दा बुआ नहीं बेटी ‘ के टैगलाइन के साथ होने जा रहा है । अभी भी चुनाव में कहीं भी रोजगार के लिए किसी भी पार्टी की तरफ से कुछ बोला नहीं गया है ।मुद्दा सिर्फ वहीं हिन्दू – मुस्लिम,राम मंदिर ,सड़क नाला,बिजली से ही भरा हुआ है ।
समय बीतता जाएगा चुनाव संपन होकर सरकार बन जाएगी लेकिन इस देश में बेरोजगारी का दर्द समझने वाली कोई भी सरकार नहीं आएगी लगता है । खाली जनता को एक भ्रम दिखा कर सरकार बन जाएगी । चुनाव से पहले नेताओं को अलग – अलग भाषा बोलने वालों की याद आ रही है । समस्याएं दूर की जा रही है और आगे दूर करने का वादा भी किया जा रहा है । लेकिन असली सवाल रोजगार का है । हर भाषा बोलने वाले युवा को प्रतियोगी परीक्षाओं में उसकी मातृभाषा में परीक्षा देने की छूट होनी चाहिए ताकि युवा केवल भाषा के चलते नौकरी पाने के अवसर से वंचित न रह जाए । मेरा मानना है कि इसके बगैर हर कवायद बेकार है ।