डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया

लिए कटोरा हाथ में, दर दर भटके पाक।
पाप न पीछा छोड़ता, हाथ आ रही खाक।।
हाथ आ रही खाक, मियाँ लो झाँक गिरेबाँ।
भस्मासुर दो छोड़, करेंगे चाक गिरेबाँ।।
कह डीपी कविराय, छोड़ बारूदी झोरा।
वरना खाली हाथ, लौटना लिए कटोरा।।

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