कुरूक्षेत्रःमेरी नजर से अभिमन्यु सर्ग (द्वितीय भाग) : प्रमोद तिवारी

कुरूक्षेत्रःमेरी नजर से
अभिमन्यु सर्ग (द्वितीय भाग)

सुभद्रा को खबर हुई,
पांचाली भी विकल हुई,
बनवारी दूर आज हैं,
और पार्थ उनके साथ है,
चिंता मे मग्न थी पडी,
वो जोडती है हर कडी,
न बीतती है ये घडी,
दिलासा देती आपको,
थी सौंपती मुरारी को,
कवच है साथ आपका,
जो नाहीं कभी व्यर्थ हो।

जो याद आया टूटना,
रक्षा कवच का छूटना,
शंका मे साहस टूटता,
पर आस नाही छूटता,
गिरधारी को पुकारती,
क्या उत्तरा भी जानती?

क्यों जोड मैं न पाई थी,
समय न क्यों मै पाई थी,
सखा भी क्या ये चाहते?
क्या वे न ईष्ट जानते?
क्या होगा उनके लाल को,
चिंता है दोनो मात को।

नटवर का प्रिय पात्र है,
अभिमन्यु वो सुपात्र है,
ये बात सभी जानते,
संशय पर न टालते।

भीषण रण था चल रहा,
तांडव वहाँ मचा रहा,
ज्यों रौद्र रुप हो धरा,
प्रमाण इसकी ये गिरा,
जिसकी न की थी कल्पना,
ये द्रोण की थी जल्पना।

अमोघ बाण छोडता,
ब्रह्मांण था ज्यों कांपता,
बहरी सी सेना हो गई,
कौरव की श्री थी सो गई,
न भागने को मार्ग था,
न माँगने पे त्राण था,
हर जगह विद्यमान था,
सुभद्रा का वो लाल था।

बारिश से बाण बरसते,
कट कट के मस्तक उछलते,
यों रूधिर नदी बह चली,
हर तरफ मची खलबली,
संजय महल से देखते,
पर बात इक न बोलते,
उद्वेग मे धृतराष्ट्र है,
संजय से हाल पूछता,
कुरूक्षेत्र का क्या हाल है,
निर्मिमेष संजय देखते,
न बोल उनके फूटते,
अपार शौर्य बाल का,
अर्जुन के प्रिय इस लाल का,
वो काल बनके डोलता,
था यम के द्वार खोलता,
नटवर निमग्न देखते,
प्रलय का उनको भान है,
अर्जुन को इसक ज्ञान है?
चहुँओर द्रोण देखते,
थे शौर्य उसका मापते,
पर कर्ण रहा देखता,
मन मे ही खुद कोसता,
क्या अभिमन्यु मोह मे पडा,
दुर्योधन मार्ग मे खडा।

पहुँचे जब पांडव व्यूह द्वार,
अभिभन्यु ने की गर्जन अपार,
संग करे भीम भीषण हुंकार,
दल बल संग यहाँ पांडव थे चार,
ज्यों यम आये हों उनके द्वार।

छोडा वीर ने अग्नि बाण,
पत्तों सा बिखरा प्रथम द्वार,
अरि सेना करती थी गुहार,
नभ मंडल सुर करते मंगलाचार,
माधव क्या न करते विचार?

नभ मंडल रज से भरा हुआ,
दस दिशा प्रकंपित हुई आज,
महारथी दल भी डरा हुआ,
कब अमोघ बाण का हो अगाज।

अनुसरण थे करते पांडु वीर,
सामने खडा अभिमन्यु धीर
जयद्रथ तभी निकल आया,
उसको भी रण मे श्री हीन किया,
युद्ध कौशल वो सिखलाता था,
मृत्युंजय भी नत होता था,
वह घुसा व्यूह भीतर सशान,
उसके सर पर थे कृपानिधान,
पर पांडुपुत्र सब चूक गये,
व्यूह के बाहर ही उलझ गये,
भीतर केवल वो तेजवान।

प्रमोद तिवारी

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