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नई दिल्ली। सेना से जुड़ी किसी भी फिल्म में protagonist की इमेज larger than life दिखाई जाती है। उदाहरण के लिए अजय देवगन अभिनीत फिल्म ‘भुज, द प्राइड ऑफ इंडिया’ जिसमें नायक सब कुछ कर सकता है बल्कि करता भी है। जहाज भी वही उड़ाता है और तोप भी वही चलाता है। यहां तक कि प्लेन को हैंगर से टो करके बाहर भी वही लाता है। जब जो मन करे, यूनिफॉर्म पहन लेता है। साथियों को वही बचाता है और सिविलियन को भी। अकेले आतंकवादियों से भिड़ जाता है और सबको निपटा भी देता है।
इन्हीं सब कारणों से सत्य घटना पर आधारित फिल्म भी किसी परी कथा सी लगने लगती है। मैं तो अवॉयड करने लगा था। लेकिन कुछ चीजों को आप जितना अनदेखा करते हैं, वह उतनी तीव्रता के साथ आपका पीछा करती हैं। मेरा और एयर फोर्स पर बनी किसी फिल्म का भी कभी हेट तो कभी लव वाला रिश्ता रहा है। इसी रिश्ते के कारण ‘स्काई फोर्स’ देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया क्योंकि यह मूवी भी एयर फोर्स से जुड़ी है और एयर फोर्स से मेरे दिल के तार जुड़े हुए हैं।
‘स्काई फोर्स’ फिल्म 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सरगोधा एयरबेस पर भारत के पहले हवाई हमले पर आधारित है। विंग कमांडर अजय आहूजा का पात्र निभाने वाले अक्षय कुमार की एक्टिंग ठीक है, सारा अली खान को करने के कुछ अधिक है नहीं। टी. कृष्णा विजया ‘टैबी’ का किरदार निभाने वाले वीर पहाड़िया प्रभावित करते हैं। बाकी किरदार भी ठीक-ठाक हैं। मुझे तो किसी पात्र के बजाय फिल्म की कहानी ही मुख्य पात्र लगी।
फिल्म का पहला पार्ट ठीक है, फिल्म थोड़ी धीमे चलती है। इंटरवल के बाद वाला दूसरा पार्ट बेहतर, फास्ट और इंटेंस है। क्लाइमेक्स सुखद और मार्मिक बन पड़ा है। फिल्म है, सब एक्टिंग है; यह जानते हुए भी मैं बहुत सालों बाद किसी फिल्म को देखने के बाद इतना भावुक हुआ हूँ, बल्कि सिनेमा हॉल में रोया भी हूँ।
कोई दृश्य या वीडियो देखकर क्षणिक रूप से भावुक हो जाना, रोना अलग बात है। लेकिन मैं तो यह सोचकर अब भी रोता हूँ कि एक समय ऐसा भी था जब छोटे से भिखारी देश पापिस्तान के पास हमसे उन्नत फाइटर प्लेन थे। उनकी मारक क्षमता, स्पीड और हथियार ले जाने की क्षमता हमारे युद्धक विमानों से इक्कीस नहीं बल्कि इकतीस थी। वे रात में भी सफलता पूर्वक हवाई हमला कर सकते थे।
अतः अंधकार होते ही वे हमारे बेस, प्लेन तबाह करते रहे; सैनिकों की जान लेते रहें और हम उन अंधेरी काली रातों में देश को बर्बाद होते, अपने वीर सैनिकों को मरते, अपंग होते देखते रहे। काल्पनिक भजन ‘ईश्वर अल्ला तेरो नाम’ गाते हुए पूरी रात हाथ मलते रहे। जवाबी कार्रवाई के लिए यथार्थ का सूरज निकलने, पौ फटने का इंतजार करते रहे।
(विनय सिंह बैस)
एयर वेटरन
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(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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