भ्रष्ट+अचार @भ्रष्टाचार- लोकनिर्माण, सरकारी टेंडर, गृह, परिवहन मंत्रालयों को आखिर क्यों मलाई वाला विभाग कहा जाता है?

विभागों की मलाई पर तकरार- भ्रष्टाचार पर कैसे होगा वार?
भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं ऑफीसरों, बाबुओं द्वारा रिश्वत लेना ही नहीं, बल्कि स्वार्थ सिद्धि द्वारा किया गया हर गलत आचरण ही भ्रष्टाचार है- अधिवक्ता के.एस. भावनानी

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर आज सारी दुनिया कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार के दंश से अर्थव्यवस्था में कमजोरी महसूस कर रही है, क्योंकि यह भ्रष्टाचार रूपी काली कमाई भ्रष्टाचारियों द्वारा बेहद सस्पेंस वाली जगह पर छुपा कर रखा जाता है, जो अर्थव्यवस्था के सरकुलेशन में काम नहीं आती। मसलन 2000 के नोटों की लंबी राशि चलन में नहीं आ रही थी यानी मतलब साफ है भ्रष्टाचारियों के पास लॉक हो गई थी, नतीजा नोटों की नोटबंदी ही पर्याय था। परंतु बहुत ताजुब की बात है एक ओर जहां सरकार भ्रष्टाचार जीरो टॉलरेंस करने कमर कसकर भिड़ी हुई है दूसरी ओर हमेशा देखा जाता है की राजनीति में सहयोगी पार्टी या पार्टी के अंदर ही पार्टी के कद्दावर नेताओं में मंत्रालय के विभागों की मलाई पर तकरार होती है, यानी सरकारी टेंडर में प्रतिशत के मामले होते हैं, इसीलिए ही 40 या 50 प्रतिशत के आरोप प्रत्यारोप राजनीति में सभी एक दूसरे के ऊपर लगाते रहते हैं।

अक्सर चुनाव जीते हुए व्यक्तियों से लेकर मंत्री व चपरासी से लेकर उच्च पदासीन अधिकारी इसमें शामिल होते हैं तो फिर भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस नीति का क्या अर्थ हुआ? जो रेखांकित करने वाली बात है। जिसका सटीक उदाहरण महाराष्ट्र के एक नेता पर गृहमंत्री होने के बावजूद 100 करोड़ प्रतिमाह का आरोप लगा था वो जेल भी गए थे। ऐसे अनेक आरोप राजनीतिज्ञों मंत्रियों पर लगते रहते हैं जो रेखांकित करने वाली बात है, जिससे साफ होता है कि भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर नीचे की ओर चलता है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे विभागों की मलाई पर तकरार, भ्रष्टाचार पर कैसे होगा पलटवार! तथा भ्रष्ट प्लस अचार एट द रेट ऑफ भ्रष्टाचार, लोक निर्माण, सरकारी टेंडर, गृह, परिवहन मंत्रालयों को आखिर क्यों मलाई वाला विभाग कहा जाता है?

साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार के अर्थ को समझने की करें तो, भ्रष्टाचार शब्द दो शब्दों की संधि से बना है- भ्रष्ट+आचार, जिनके निम्न अर्थ हैं- भ्रष्ट=दूषित, गंदा, अनैतिक, गलत, आपराधिक, आचार = आचरण, व्यवहार, कार्यकलाप तो सीधे शब्दों में कहें तो भ्रष्टाचार का तात्पर्य उस कार्य से है जो गलत हो, अनैतिक हो, आपराधिक हो या दूषित हो। हमारे राजनेताओं की कृपा से आजकल यह शब्द मुख्यत: राजनैतिक संदर्भ में प्रयोग होता है लेकिन सामान्यत: हर वह आचरण भ्रष्टाचार है जो कि किसी गलत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनैतिक ढंग से और दुर्भावना से किया जाए।

केवल सरकारी कार्यों में घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि अपने आदर्शों से समझौता करना और निजी लाभ के लिए किसी अन्य को पीड़ा पहुंचाना भी भ्रष्टाचार है। दूधवाले का दूध में पानी मिलाना भी भ्रष्टाचार है और शिक्षक का कक्षा में ना पढ़ाना भी भ्रष्टाचार है। अधिकारी का काम ना करना भी भ्रष्टाचार है और काम के बदले रिश्वत मांगना भी भ्रष्टाचार है। टैक्स चोरी करना भी भ्रष्टाचार है और यातायात के नियमों को ना मानना भी भ्रष्टाचार है। सीमित शब्दों में कहें तो भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं में घोटाले करना ही नहीं है बल्कि निजी स्वार्थ सिद्धि हेतु किया गया हर गलत आचरण ही भ्रष्टाचार है।

साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार से आर्थिक दुष्प्रभाव की करें तो, भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है, मसलन, भ्रष्टाचार के चलते सड़क कमजोर बनायी जाती है, जिससे वह जल्दी टूट जाती है, इस फॉर्मूले के अनुसार भारत और चीन की विकास दर कम होनी चाहिए थी, क्योंकि ये देश ज्यादा भ्रष्ट हैं, परंतु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।भारत और चीन की विकास दर अधिक है। भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि भ्रष्टाचार से प्राप्त रकम का उपयोग किस प्रकार किया जाता है। मान लीजिए एक करोड़ रुपये के सड़क बनाने के ठेके में से 50 लाख रुपया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, सड़क घटिया बनी। प्रश्न उठता है कि घूस की 50 लाख की रकम का उपयोग किस प्रकार हुआ?

यदि इस रकम को शेयर बाजार में लगाया गया तो भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव कुछ घटता है। दक्षिणी अमेरिकी देशों एवं भारत में यह अंतर साफ है। दक्षिण अमेरिका के नेताओं ने घूस की रकम को स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा करा दिया। नतीजा विकास में गिरावट आयी, परंतु भारतीय नेताओं ने स्विस बैंकों में जमा कराने के साथ-साथ घरेलू उद्यमियों के पास भी रकम जमा करायी। यदि घूस की रकम का निवेश किया जाये, तो अनैतिक भ्रष्टाचार का आर्थिक सुप्रभाव भी पड़ सकता है।मान लीजिए सरकारी निवेश में औसतन 70 फीसदी रकम का सदुपयोग होता है, जबकि निजी निवेश में 90 फीसदी का, ऐसे में यदि एक करोड़ रुपये को भ्रष्टाचार के माध्यम से निकाल कर निजी कंपनियों में लगा दिया जाये, तो 20 लाख रुपये का निवेश बढ़ेगा। अर्थशास्त्र में एक विधा ‘बचत की प्रवृत्ति’ के नाम से जानी जाती है।

अपनी अतिरिक्त आय में से व्यक्ति कितनी बचत करता है उसे ‘बचत की प्रवृत्ति’ कहा जाता है। गरीब की 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो, तो वह 90 रुपये की खपत करता है और 10 रुपये की बचत। तुलना में अमीर को 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो, तो वह 10 रुपये की खपत करता है और 90 रुपये की बचत करता है। मान लीजिए अमीर इंजीनियर ने गरीब किसान से 100 रुपये की घूस ली। गरीब की आय में 100 रुपये की गिरावट आयी, जिसके कारण बचत में 10 रुपये की कटौती हुई। परंतु अमीर इंजीनियर ने 100 रुपये की घूस में 90 रुपये की बचत की। इस प्रकार घूस के लेनदेन से कुल बचत में 80 रुपये की वृद्घि हुई। अमीर द्वारा गरीब का शोषण सामाजिक दृष्टि से गलत होते हुए भी आर्थिक दृष्टि से लाभकारी हो गया।भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार के कारणों को समझने की करें तो, हम सभी ने कहीं ना कहीं इसे सिस्टम का हिस्सा मान कर अपना लिया है। हम भ्रष्टाचारियों को कोसते हैं पर वही अपना काम जल्दी कराने के लिए हम खुद उसे बढ़ावा भी देते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस जल्दी नहीं बन रहा, थोड़ा खिला देंगे। पासपोर्ट के लिए पुलिस वेरिफिकेशन में समय लगेगा, चलो थोड़ा साहब को खर्चा पानी दे देंगे। हेलमेट नहीं पहना है, गाड़ी के कागज नहीं है, ट्रैफिक पुलिस वाले को 100-50 दे कर बच जायेंगे। सरकारी टेंडर हमें ही मिले इसके लिए सरकारी बाबू को थोड़ा मिठाई भिजवा देते है और फिर जो पैसा उनकी खातिरदारी में खर्च होगा वो हम काम की गुणवत्ता कम करके खानापूर्ति कर लेंगे। हमारा इन सब को ले कर सब ठीक है ही, इस सब का जिम्मेदार है। सिर्फ सरकारों को कोसने से कुछ नहीं होगा, पहला बदलाव हमें खुद से शुरू करना होगा, अपनी सोच में परिवर्तन करके।

साथियों बात अगर हम मलाई वाले विभाग को समझने की करें तो, पुलिस विभाग इतना भ्रष्ट नहीं है, जितना एक दूसरा विभाग है। आज के घोटालों में इस विभाग का बड़ा हाथ होता है, साथ ही यह विभाग इसके संपर्क में आने वाले किसी भी शख्स को नहीं नहीं छोड़ता है। खनन विभाग सबसे भ्रष्ट विभाग है। यही एकमात्र विभाग है, जिसमें घोटाले का प्रश्न हमेशा उठता है, यही वह विभाग है जिसका चपरासी से आयुक्त तक नौकरशाह और विभाग का मंत्री जेल की हवा खा चुका है। इसी विभाग में होने वाले घोटाले की राशि अखबार में छपने पर आम आदमी किसी संख्या के पीछे के शून्य कम से कम तीन बार गिनता है। खनन घोटाले के लिए कई नेता और मंत्री भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए वही कई पर आरोप लगे!

इनमें गायत्री प्रजापति, बीएस येदियुरप्पा, जनार्दन रेड्डी और श्रीनिवास रेड्डी, रमेश पोखरियाल निशंक, जयललिता, सीबू सोरेन और दिगंबर कामत जैसे कई नाम शामिल हैं। इस विभाग के कई आईएएस भी घोटाले में लिप्त पाए जाने से जेल पहुंचे उनमे अशोक सिंघवी और चन्द्र कला प्रमुख हैं। बड़े अंको के घोटाले देने के लिए प्रसिद्ध है, 2012 कोयला का कोयला खदान आवंटन घोटाला 10.7 लाख करोड़ का घोटाला मामले में था, जो अब तक का सबसे बड़ा भारत में होने वाला घोटाला है। खनन विभाग के कर्मचारी खदान आवंटन की प्रक्रिया से खनन और विक्रय रॉयल्टी तक में भ्रष्टाचार के नये तरीके निकाल लेते हैं! खनन विभाग के कार्य बालू मिट्टी से सोने का खनन तक है! खनन विभाग ही एकमात्र विभाग है जो मिट्टी के खनन में भ्रष्टाचार की जड़े जमाकर मिट्टी से पैसे बना लेता है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भ्रष्ट+अचार @ भ्रष्टाचार- लोकनिर्माण, सरकारी टेंडर, गृह परिवहन मंत्रालयों को आखिर क्यों मलाई वाला विभाग कहा जाता है? विभागों की मलाई पर तकरार- भ्रष्टाचार पर कैसे होगा वार? भ्रष्टाचार केवल सरकारी योजनाओं, ऑफीसरों, बाबुओं द्वारा रिश्वत लेना ही नहीं, बल्कि स्वार्थ सिद्धि द्वारा किया गया हर गलत आचरण ही भ्रष्टाचार है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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