अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के 14वें प्रधानमंत्री और एक महान अर्थशास्त्री का नाम उन नेताओं में गिना जाता है जिन्होंने देश की आर्थिक दिशा को बदलने में अहम भूमिका निभाई। 1991 में जब भारत आर्थिक संकट से गुजर रहा था तब वित्त मंत्री के रूप में डॉ. सिंह ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियां लागू की। इन नीतियों ने भारत को आर्थिक मंदी से उबारकर वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बना दिया।
हालांकि उनकी क्षमताओं और योग्यता के बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने का पूरा मौका नहीं मिला। डॉ. सिंह एक ईमानदार और सुसंस्कृत नेता थे, लेकिन उनकी सरकार पर कई बार पार्टी की सियासी मजबूरियों का दबाव रहा। उनकी नीतियों और फैसलों में कभी-कभी राजनीतिक हस्तक्षेप हावी हो जाता था, जो उनकी नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता था।
यदि डॉ. मनमोहन सिंह को स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर मिलता तो संभवतः भारत आज कहीं अधिक प्रगति कर चुका होता। उनकी गहरी आर्थिक समझ और लंबी अवधि की सोच भारत को सिर्फ एक आर्थिक महाशक्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में भी विश्वस्तरीय बना सकती थी। उन्होंने ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन इन पर पूरी तरह से अमल नहीं हो सका।
डॉ. सिंह के कार्यकाल के दौरान मनरेगा, खाद्य सुरक्षा अधिनियम और आधार योजना जैसी पहल हुई, जो आज भी देश की जरूरतमंद जनता के लिए एक महत्वपूर्ण सहारा है। लेकिन, उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों और राजनीतिक दबाव ने उनकी उपलब्धियों को धूमिल करने की कोशिश की। यदि उन्हें पूरी स्वतंत्रता और समर्थन मिलता, तो इन योजनाओं का क्रियान्वयन और भी प्रभावी हो सकता था।
डॉ. मनमोहन सिंह एक ऐसे नेता थे, जिनके पास न तो भाषणों में भावनाओं को जगाने की कला थी और न ही सियासी चतुराई। लेकिन उनकी सोच और काम करने का तरीका सदा भारत के भविष्य को ध्यान में रखकर रहा। उनके नेतृत्व में भारत ने कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की, लेकिन उनकी शालीनता और ईमानदारी को उनकी कमजोरी मान लिया गया।
आज जब हम डॉ. मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देते हैं, तो यह स्वीकार करना आवश्यक है कि उनकी विरासत केवल आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नेतृत्व, ईमानदारी और समर्पण का प्रतीक है। उनके जैसा नेता दुर्लभ होता है, और भारतीय राजनीति में उनकी कमी हमेशा खलेगी।
डॉ. मनमोहन सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी नीतियों और आदर्शों को समझें और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए काम करें। अगर उन्हें राजनीति के दबावों से मुक्त होकर काम करने का मौका मिला होता, तो आज का भारत कहीं अधिक समृद्ध और मजबूत होता।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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