विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ विदेश में हिंदी पत्रकारिता पुस्तक का लोकार्पण और मंथन

सत्ताइस देशों की पत्रकारिता पर केंद्रित डॉ. कर्नावट की पुस्तक विदेश में हिंदी पत्रकारिता का लोकार्पण एवं राष्ट्रीय विमर्श सम्पन्न, लेखक डॉ. कर्नावट का हुआ सारस्वत सम्मान

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला तथा ललित कला अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में विदेश में हिंदी पत्रकारिता पर केंद्रित राष्ट्रीय विमर्श आयोजित किया गया। देवास रोड स्थित वाग्देवी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध लेखक डॉ जवाहर कर्नावट भोपाल की पुस्तक विदेश में हिंदी पत्रकारिता का लोकार्पण एवं विमर्श हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व संभागायुक्त एवं पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त थे। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, विशिष्ट वक्ता प्रो. गीता नायक, डॉ. पिलकेंद्र अरोरा, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉ. हीरालाल कर्नावट, अहमदाबाद थे। लेखकीय वक्तव्य अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने दिया।

मुख्य अतिथि पूर्व संभागायुक्त एवं पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने कहा कि भाषा के बिना संस्कृति जीवित नहीं रह सकती। वर्तमान युग में भाषा की दासता से मुक्ति आवश्यक है। जवाहर कर्नावट की पुस्तक इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है। कर्नावट जी की इस पुस्तक के माध्यम विदेश में हिंदी की पत्रकारिता की चर्चा से सम्पूर्ण विश्व की यात्रा करवाती है। लेखक ने भारतीय संस्कृति की जड़ों को खोजने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है।

अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि डॉ. कर्नावट की पुस्तक पूरे विश्व में हिंदी की गौरव गाथा से साक्षात्कार कराती है। हिंदी के साथ हमें भारत की भाषाओं के प्रति गौरव का भाव उत्पन्न करना चाहिए। इस पुस्तक के माध्यम से विभिन्न विज्ञानों से जुड़े लोग भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विश्व फलक पर हिंदी पत्रकारिता भारतवंशियों की अस्मिता और अविराम संघर्ष का प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है। विदेश में हिंदी पत्रकारिता का प्रसार नस्लभेद, अमानवीय अत्याचार और सैन्य अभियानों के विरुद्ध महत्वपूर्ण रहा है। भारतवंशियों को एकता के सूत्र में बांधने के साथ विभिन्न देशों और संस्कृतियों के बीच सेतु बनाने का कार्य विश्व पटल पर हिंदी पत्रकारिता ने किया है। डॉ. कर्नावट की पुस्तक हिंदी पत्रकारिता के बहाने वैश्विक परिदृश्य में हुई महत्वपूर्ण सामयिक घटनाओं को सामने लाने का कार्य करती है।

इस पुस्तक में सत्ताइस से अधिक देशों में प्रकाशित हिंदी की सैकडों पत्र पत्रिकाओं के योगदान का परिचय मिलता है। पत्रिकाओं के समक्ष उपस्थित प्रसार संख्या, मौलिकता की कमी जैसे कई प्रश्नों को विदेश में बसे हिंदी पत्रों के संपादकों ने उभारा है। विदेश की हिंदी पत्रकारिता भारतीय संस्कृति और हिंदी की आवाज बनी थी, जिसे नए दौर में इंटरनेट की पत्रकारिता में भी देखा जा सकता है।

विशिष्ट वक्ता डॉ. पिलकेंद्र अरोरा ने कहा कि यह पुस्तक हिंदी पत्रकारिता के बहाने कई देशों की यात्रा करवाती है। डॉ. कर्नावट हिंदी के सच्चे सेवी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। भाषा, धर्म, साहित्य और संस्कृति की चेतना का प्रसार। विदेश की हिंदी पत्रकारिता ने किया है, जो इस पुस्तक में प्रमाणिक तथ्यों के साथ प्रस्तुत हुआ है।

प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि डॉ. कर्नावट की पुस्तक भारत के बाहर हिंदी पत्रकारिता के इतिहास से जुड़े मूल तथ्यों को सामने लाती है। यह पुस्तक पत्र पत्रिकाओं के संबंध में और गहरी जिज्ञासा उत्पन्न करती है।

डॉ. हीरालाल कर्नावट, अहमदाबाद ने कहा कि जवाहर कर्नावट की पुस्तक शोध के प्रति गहरी रुचि और परिश्रमशीलता का उदाहरण है। वे बहुत बड़ा विजन लेकर इस कार्य के लिए तत्पर हुए थे, यह कार्य और आगे जाएगा ऐसा विश्वास है।

प्रो. गीता नायक ने कहा कि हिंदी विश्वव्यापी हो रही है। भूमंडलीकरण के कारण हिंदी का विश्व स्तर पर प्रसार हुआ है। इस दौर में विदेश से प्रकाशित हिंदी पत्रकारिता पत्रिकाओं के सामने अनेक चुनौतियां हैं जिनके समाधान के लिए व्यापक प्रयास आवश्यक हैं।

लेखक डॉ. जवाहर कर्नावट ने इस पुस्तक की लेखन प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विश्व के अनेक देशों में हिंदी पत्रकारिता केवल कुछ पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन तक सीमित नहीं रही। वह भारतवंशियों के सुख दुख की आवाज भी बनी। इसका इतिहास उनके संघर्ष, पीड़ा और सुखद प्रतिष्ठापन तक के सफर का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स 2023 में भी स्थान प्राप्त हुआ है।

प्रारम्भ में वाग्देवी के पूजन के पश्चात अतिथियों द्वारा पुस्तक के लेखक डॉ. जवाहर कर्नावट को अंग वस्त्र, मौक्तिक माल एवं साहित्य भेंट कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया। कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा को अंग वस्त्र एवं साहित्य अर्पित कर उनके जन्म दिवस पर सारस्वत सम्मान किया गया। अतिथियों को विभाग के शिक्षकों द्वारा अंग वस्त्र एवं पुष्पमाल अर्पित कर उनका सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. कर्नावट द्वारा विदेश में हिंदी पत्रकारिता पर केंद्रित शोध एवं संग्रह कार्य के फोल्डर का विमोचन किया गया।

भारतीय भाषा संवर्धन एवं विस्तार अभियान के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम में कार्यक्रम में प्रो. हरिमोहन बुधौलिया, शांतिलाल जैन, किशोरी शरण श्रीवास्तव, मनोहर झाला, भगवान सिंह शर्मा, उदय सिंह राठौड़, डॉ. हरीश कुमार सिंह, डॉ. प्रभु चौधरी, संतोष सुपेकर, डॉ. मोहन बैरागी, डॉ. पांखुरी जोशी वक्त, सीमा कर्नावट, जीवन प्रकाश आर्य, डॉ. हीना तिवारी, लक्ष्मीनारायण सिंह रोड़िया, महिमा मरमट आदि सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जनों, गणमान्य नागरिकों, लेखकों एवं शोधकर्ताओं ने लिया। यह कार्यक्रम भारतीय भाषा मंच एवं आइक्यूएसी के सहयोग से आयोजित किया गया। संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो. गीता नायक ने किया।

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