विनय सिंह बैस की कलम से…

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। मेरा दृढ़ विश्वास है कि देश के सभी नागरिकों को फौज की नौकरी जरूर करनी चाहिए और किसी कारणवश अगर सेना की सेवा करने का सौभाग्य न भी मिल पाए तो “ऑल इंडिया सर्विस लायबिलिटी” वाली सेवा को प्राथमिकता देना चाहिए।

ऐसा मैं चेन मार्केटिंग में फंस गए लोगों की तरह इसलिए नहीं कह रहा कि -‘मैं फंस गया तो तुम भी फंस जाओ।’ बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि पूरे देश को समझने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आप देश के विभिन्न हिस्सों में रहें, वहां के रीति-रिवाज, बोली- भाषा, खान-पान, रहन-सहन, संस्कृति को समझें।

अब देखो न, कल फसल पकने की खुशी में मनाया जाने वाला दक्षिण भारत का प्रसिद्ध त्यौहार ओणम था। जिन लोगों ने ‘ऑल इंडिया सर्विस लायबिलिटी’ वाली नौकरी नहीं की है , उनमें से बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह त्यौहार किसी देवता को समर्पित नहीं है बल्कि इस दिन दानव राजा बलि की पूजा की जाती है।

यह किसी धर्म विशेष का त्यौहार भी नहीं रह गया है। अब इसे हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन सभी धर्मावलंबी बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। हां, इसे क्षेत्र विशेष का त्यौहार जरूर कह सकते हैं। अब क्षेत्र विशेष के त्यौहार की बात चल ही निकली है तो मैं भी अपनी एक राम कहानी सुनाते चलूं।

हुआ यूं कि मैं वायु सेना में सेवा के दौरान हैदराबाद के अन्नाराम सिविल एरिया में फैमिली के साथ किराए पर रह रहा था। मेरे घर के पीछे रहने वाले एक सज्जन एक दिन मेरे घर आए और बोले कि-“साआर! मेरा लड़की का तबीयत बहुत खराब है। ₹200 दे दीजिए, काल वापस कर दूंगा। ”

मैंने उन पर तरस खाते हुए तुरंत ₹200 दे दिए। महीनों बीत गए लेकिन भाई साहब पैसे वापस करने का नाम ही नहीं ले रहे थे। आसपास के लोगों से पता किया तो बोले कि उन्हें दारू पीने के लिए घर के किसी सदस्य को बीमार करना ही पड़ता है। लोकल में सभी लोग उनके लक्षण जानते हैं इसलिए कोई उन्हें एक धेला भी नहीं देता। एयर फोर्स के लोग आते-जाते रहते हैं, इसलिए यह इनका आसान शिकार हैं। मैं मन ही मान चुका था कि मेरे पैसे पानी में जा चुके हैं।

एक रोज भाई साहब गलती से मुझसे टकरा गए, तो मैंने उनसे पूछा कि आपकी बच्ची का इलाज हुए तो महीनों बीत गए लेकिन आपने पैसे अब तक वापस नहीं किए। उन महोदय ने बड़ी मासूमियत से कहा कि
“साआर !! ईद से पहले दे दूंगा।”

मैंने आपत्ति जताई कि ईद आने में तो अभी कई महीने बाकी हैं।
“नहीं साआर, 10 दिन बाद ही तो ईद है। ”
“आंय!! 10 दिन बाद कौन सी ईद है?? मैंने आश्चर्य व्यक्त किया।
“अरे साआर, 30 अक्टूबर को ईद है न!” भाई साहब पूरे विश्वास से बोले।
“30 अक्टूबर को ईद नहीं, दीपावली है। उस दिन भगवान राम पापी रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे।” मैंने उन्हें ज्ञान दिया।

“अरे साआर!! हम तेलंगाना के लोग सभी त्यौहारों को ईद ही कहते हैं।” भाई साहब ने उल्टे मेरा ज्ञानवर्धक कर दिया। लेकिन इस ज्ञान को पाकर मैं कुछ सोच में पड़ गया। फिर जरा गंभीर होकर उनसे कहा-
“हमें अपने त्योहारों को ईद न कहना पड़े। पड़ोसी को अब्बा न बोलना पड़े, इसके लिए ही हमारे पुरखे लड़ते, मरते, कटते रहे और जिन्होंने भय या लालच के कारण ईद मनाना स्वीकार कर लिया, वह अब ‘हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं है’ जैसे आलाप कर रहे हैं।”

इससे पहले कि मैं और गंभीर होता, भाई साहब मौका देखकर निकल लिए फिर न कभी ईद आई, न भाई साहब मिले। मैं जरूर हैदराबाद से बैरकपुर पहुंच गया।

खैर, चलिए वर्तमान में वापस आते हैं और सभी देशवासियों विशेषकर दक्षिण भारतीयों और उसमें से भी विशेष रूप से मल्लू भाइयों को ओणम की एक दिन देर से ही सही हार्दिक बधाई तो दे ही देते हैं।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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