तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : 47 वें अंतर्राष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले में कई उत्कृष्ट संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें जंगल महल के प्राचीन बांग्ला साप्ताहिक ‘विप्लवी संवाद दर्पण’ का साहित्य सम्मलेन कई मायनों में अनूठा रहा। इसमें जहाँ मातृ भाषा के प्रति अनुराग का भाव दिखा तो दूसरी ओर अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति गहरी संवेदनशीलता।
इस अवसर पर साहित्यकार देवरति मुखोपाध्याय, अभिनेता-निर्देशक तपन गांगुली, प्रसिद्ध कवि रतनतनु घट्टी और प्रसिद्ध कवि अरण्यक बसु, विद्यासागर विश्वविद्यालय के कुलपति सुशांत कुमार चक्रवर्ती, प्रसिद्ध परोपकारी डॉ. दीपक कुमार दासगुप्ता, डॉ. शुद्धसत्व चट्टोपाध्याय, नारायण भट्टाचार्य,
वरिष्ठ जनरल फिजिशियन, अपोलो अस्पताल, कोलकाता डॉ. शुद्धसत्व चट्टोपाध्याय, आईआरसीटीसी के पूर्व निदेशक देबाशीष, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ तथागत दत्ता, गांधी मिशन ट्रस्ट के अध्यक्ष नारायण भट्टाचार्य, भारतीय सांख्यिकी संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. बिमल रॉय,
सोमनाथ विश्वास इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और नेशनल रिकॉर्ड ड्राइंग आर्टिस्ट और दक्षिण पूर्व रेलवे के प्रख्यात सुभाष भट्टाचार्य, पूर्व पीआरओ और साहित्यकार पल्लव मुखोपाध्याय और दक्षिण पूर्व पीआरओ बिधान चंद्र, तारापीठ के मुख्य पुजारी और कवि साहित्यकार प्रबोध कुमार बंद्योपाध्याय,
कवि साहित्यकार सुवेंदु विकास चक्रवर्ती आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन पुस्तक विमोचन, साहित्यिक सम्मेलन और स्वागत समारोह के साथ हुआ। साहित्यिक कार्यक्रम के अतिथियों में से एक, वर्तमान बांग्ला साहित्य की सशक्त लेखक देवरति मुखोपाध्याय ने कहा, ‘दुनिया में 7 हजार से अधिक भाषाएं हैं। दुख की बात है कि हर 14 दिन में एक भाषा मर रही है। कृपया बांग्ला भाषा को मरने न दें।
आजकल कई माता-पिता गर्व से कहते हैं कि मेरे बच्चे बांग्ला नहीं बोल सकते। यह गर्व करने वाली बात नहीं है I अपने बच्चों को अपनी मां से प्यार करना सिखाएं ताकि वे दूसरों की मां से प्यार कर सकें।
बच्चों के लिए बांग्ला किताबें खरीदें, उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। तभी यह मधुर भाषा जीवित रहेगी।’ कवि अरण्यक बोस ने कहा, ‘नई और पुरानी किताबों की खुशबू महंगे इत्र से बेहतर होती है।’
क्या मृत्यु के समय मेरे हाथ में एक किताब हो सकती है I इस दिन कविता और कहानी की पुस्तकों के संग्रह के साथ-साथविप्लवी संवाद दर्पण के एक विशेष अंक का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम का संचालन दीपान्विता जाना ने किया।
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