राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा 124ए को बरकरार रखने की सिफारिश
आईपीसी सहित भारतीय कानूनों की अनेक धाराओं में नीतिगत संशोधन करना वर्तमान समय की मांग – एडवोकेट किशन भावनानी
किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर जिस तेजी के साथ भारत अपने विज़न 2047 की ओर बढ़ रहा है, हमें बाबा आदम के ज़माने के भारतीय कानूनों को बदलने या संशोधित करने की ज़रूरत है ताकि अनेक महत्वपूर्ण और गंभीर कानूनों की आड़ में पहली बात किसी के हितों को दबाया ना जा सके या किसी कमजोर कानूनों उनकी धाराओं की आड़ में किन्हीं पर अत्याचार ना हो या किसी की प्रतिभा को अपनी उन्नति की बाधा की आड़ में कानूनों की धाराओं का दुरुपयोग नहीं किया जा सके। दूसरी बात सभी कानून की धाराओं को भारतीय संविधान के संज्ञान में भी लेने की ज़रूरत है, अन्यथा इसकी जरूरतों को महसूस करते हुए न्यायपालिका पर पिटिशंस का बोझ बढ़ता ही चला जा रहा है।
इस मामले में अगर हम आईपीसी की धारा 124ए देशद्रोह धारा का संज्ञान ले तो सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ़ अभी 10 याचिकाएं दाखिल है, जिसमें 11 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 124ए पर फिलहाल रोक रोक लगाते हुए आगे सुनवाई करने की बात की है। सरकार ने भी इस धारा पर पुनर्विचार की बात कोर्ट में कही थी और मामला 22 वें विधि आयोग हो भेजा था। चूंकि दिनांक 2 जून 2023 को विधि आयोग की रिपोर्ट विधि मंत्रालय को सौंपी गई है जिसमें इस धारा को बरकरार रखने की सिफारिश की है। इसलिए मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, इंडियन पेनल कोड की धारा 124ए देशद्रोह।
साथियों बात अगर हम विधि आयोग द्वारा दिनांक 2 जून 2023 को विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट की करें तो, राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा-124ए को बरकरार रखने की जरूरत है, हालांकि इसके इस्तेमाल के बारे में अधिक स्पष्टता के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। 152 साल पुराने देशद्रोह कानून को हटाने का कोई वैलिड रीजन नहीं है। हालांकि, कानून के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता बनी रहे इसके लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। आयोग ने कहा है कि धारा-124ए के दुरुपयोग को रोकने के लिए वह केंद्र सरकार द्वारा माडल गाइडलाइंस को जारी करने की सिफारिश करता है। उन्होंने रिपोर्ट में कहा है, इस संदर्भ में यह भी सुझाव दिया जाता है कि सीआरपीसी, 1973 की धारा-196(3) के अनुरूप सीआरपीसी की धारा-154 में एक प्रविधान जोड़ा जा सकता है, जो आइपीसी की धारा-142ए के तहत अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने से पहले आवश्यक प्रक्रियागत सुरक्षा उपलब्ध कराएगा।
आयोग का यह भी कहना है कि किसी प्रविधान के दुरुपयोग का कोई भी आरोप उस प्रविधान को वापस लेने का आधार नहीं हो सकता। साथ ही औपनिवेशिक विरासत होना भी इसे वापस लेने का वैध आधार नहीं है। रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून अपराध के उन सभी तत्वों को कवर नहीं करते, जिनका वर्णन आईपीसी की धारा-124ए में किया गया है। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्रारंभिक जांच अनिवार्य होने, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा में संशोधन समेत प्रावधान में संशोधन के संबंध में कुछ सिफारिशें भी की हैं। अनुच्छेद 19(2) के तहत राजद्रोह को उचित प्रतिबंध (रीजनेबल रिस्ट्रिक्शंस) बताते हुए विधि आयोग ने इशारा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124ए की संवैधानिकता पर विचार करते हुए यह व्यवस्था दी है कि जिस प्रतिबंध को लागू करने की इसमें मांग की गई थी वह एक रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन हैं, लिहाजा यह कानून संवैधानिक है।
इसमें कहा गया है, यूएपीए और एनएसए जैसे कानून खास हैं जो राज्य के प्रति होने वाले अपराधों को रोकना की कोशिश हैं। राजद्रोह कानून, कानून द्वारा, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार के हिंसक, अवैध व असंवैधानिक तख्तापलट को रोकना चाहता है। आयोग ने यह भी कहा है कि सिर्फ इसलिए कि यह कानून औपनिवेशिक काल का है, इसे खत्म करने का ‘वाजिब आधार’ नहीं है। इसमें कहा गया है, अगर राजद्रोह को औपनिवेशिक युग का कानून माना जाए तो इसके आधार पर फिर तो भारतीय कानूनी प्रणाली का पूरा ढांचा ही औपनिवेशिक विरासत का है। तथ्य केवल यह है कि यह मूलत: औपनिवेशिक है, जो कि इसे वास्तव में खत्म किए जाने के लिए मान्य नहीं हो सकता। इसमें आगे कहा गया है कि हर देश को अपनी खुद की वास्तविकताओं से जूझना पड़ता है और राजद्रोह कानून सिर्फ इसलिए नहीं खत्म किया जाना चाहिए कि बाकी देशों ने ऐसा किया है।
आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा, राजद्रोह कानून की व्याख्या, समझ और इस्तेमाल में अधिक स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के केदार नाथ फैसले को अपनाया जा सकता है। राजद्रोह के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश से पहले पुलिस अधिकारी सबूत के लिए केंद्र द्वारा मॉडल दिशानिर्देश को अपना सकते हैं। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है, राजद्रोह के लिए सजा से संबंधित प्रावधान को अधिनियम के पैमाने और गंभीरता के अनुसार अधिक मौका देने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए। कानून में संशोधन करने के लिए हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने की प्रवृत्ति को शामिल किया जाना चाहिए। संवैधानिक रूप से आईपीसी की धारा 124ए को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया था कि वह 124ए की फिर से समीक्षा कर रहा है और कोर्ट ऐसा करने में अपना कीमती समय न गंवाए और उसी के अनुसार 11 मई, 2022 को पारित आदेश को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारों को धारा 124ए से जुड़ी सभी जांचों को रद्द करते वक्त कोई भी एफआईआर दर्ज करने और कठोर कदम उठाने से बचने का निर्देश दिया था। इसके अलावा, इसने यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित मुकदमों, अपीलों और कार्यवाहियों को आस्थगित रखा जाए। विधि आयोग का यह भी कहना है कि किसी प्रावधान के दुरुपयोग का कोई भी आरोप उस प्रावधान को रद्द करने या वापस लेने का आधार नहीं हो सकता। इसके अलावा औपनिवेशिक विरासत होना भी इसे वापस लेने का वैध आधार नहीं है। रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून अपराध के उन सभी तत्वों को कवर नहीं करते जिनका वर्णन आईपीसी की धारा-124ए में किया गया है।
साथियों बात अगर हम आईपीसी की धारा 124ए की व्याख्या की करें तो, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। साथ ही इस धारा के तहत दोषी पाए जाने वाले शख्स की सजा और जुर्माना भी बताया गया है। इसके मुताबिक, जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा या अप्रीति प्रदीप्त करेगा या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
साथियों बात अगर हम 124ए के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं की करें तो, पांच पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में 10 याचिकाएं दाखिल कीं थी। इस मामले की सुनवाई सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है। जिसमें धारा 124ए पर रोक लगाई गई है। वहीं, इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं। इधर, कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय कानून मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए राजद्रोह, 22वें विधि आयोग ने राजद्रोह पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा 124 ए को बरकरार रखने की सिफारिश।आईपीसी सहित भारतीय कानूनों की अनेक धाराओं में नीतिगत संशोधन करना वर्तमान समय की मांग है।