अमितेश कुमार ओझा, खड़गपुर : टोक्यो में आयोजित ओलंपिक का समापन बहुत ही धूम धाम के साथ विगत ८ अगस्त को हो गया। लेकिन उसके एक दिन पहले भारत वासियों के दिल में खेल के प्रति आखिर एक ऐसी रुचि देखने को मिली जो मैंने आज तक नहीं देखी थी। नीरज चोपड़ा जिन्होंने भाला फेंक में भारत को गोल्ड मेडल दिला कर हमें गौरान्वित किया। उनके साथ साथ भारत के हिस्सों में कुल ७ मेडल आए , जिसमे २ सिल्वर समेत ४ कांस्य भी शामिल हैं।
नीरज चोपड़ा के गोल्ड मेडल जीतने के बाद शीघ्र ही फेसबुक, वॉट्सएप समेत अन्य सोशल साइट्स में स्टेटस की लड़ी देखने को मिली जिसमे किसी ने नीरज चोपड़ा के भाला फेकते हुए तस्वीरों को साझा किया तो किसी ने उनके गोल्ड मेडल लेते हुए राष्ट्रीय गान के समय के वीडियो को साझा किया । सरकार द्वारा लगातार विजेता खिलाड़ियों के लिए राशियों समेत सरकारी सुविधाओं की भी घोषणा होती रही लेकिन बात एक दिन या एक हफ्ते की नहीं है, अगर देश वासियों ने इतनी रुचि के साथ इस गौरवान्वित पल को अपने जीवन में देखा है तो अपने अंदर भी खेल के प्रति रुचि बढ़ाने की आवश्यकता है।
सरकार को भी इस विषय में ध्यान देना चाहिए कि विजेता खिलाड़ी को निरंतर जनता के सामने एक प्रेरणा स्रोत के रूप लाना चाहिए ,जिससे देश के सभी बच्चों समेत सभी लोगो में खेल के प्रति जीवट भावना जगे। मुझे तो लगता है कि नीरज चोपड़ा के विजेता बनने से पहले बहुत ही कम लोग उन्हें जाना करते थे , आज भी देश में ऐसे कई खिलाड़ी है जिन्हे ना ही जनता द्वारा और ना ही सरकार द्वारा आगे लाया जा रहा है।
हमारे देश के ही धावक मिल्खा सिंह जिनका हाल में ही निधन हो गया, उनके मृत्यु के बारे में बहुत से कम लोग ही जान पाए होंगे। अगर उनके स्थान में कोई देश के नेता या किसी राज्य के मंत्री का भी निधन होता तो पर पूरे देश में शोक मनाया जाता लेकिन ठीक उसके विपरीत मिल्खा सिंह जैसे महान धावक की मृत्यु के बाद उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। मुझे लगता है कि मौन साधना करते हुए देश का मान बढ़ाने वालों को सबसे अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए।