एकादशी व्रत पूजा विधि : व्रतों में प्रमुख व्रत होते हैं नवरात्रि के, पूर्णिमा के, अमावस्या के, प्रदोष के और एकादशी के। इसमें भी सबसे बड़ा जो व्रत है वह एकादशी का है। माह में दो एकादशी होती है। एकादशी का व्रत रखते हैं तो इसका उचित समय पर पारण भी करते हैं और इससे पहले पूजा भी करते हैं। यदि आप श्रीहरि विष्णु जी के साथ ही इन 3 की पूजा भी करेंगे तो माता लक्ष्मी का घर में स्थायी निवास हो जाएगा।
शालिग्राम : शालिग्राम को विष्णुजी का साक्षात विग्रह रूप माना गया है। देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के साथ इनकी पूजा और विवाह कराया जाता है। मान्यता है कि घर में भगवान शालिग्राम हो, वह तीर्थ के समान माना जाता है। स्कंदपुराण के कार्तिक महात्म्य में शिवजी ने भी शालिग्राम की स्तुति की है। विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
तुलसी : तुलसी माता पूर्व जन्म में जलंधर की पत्नी विष्णुभक्त वृंदा थीं। जलंधर का देवताओं से युद्ध चल रहा था और वह वृंदा के व्रत के कारण जीतता जा रहा था। सभी देवताओं के आग्रह पर श्रीहरि ने जालंधर बनर छल से वृंदा व्रत भंग करा दिया था जिसके चलते जलंधर का वध हो गया। यह देखकर वृंदा ने विष्णुजी को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया। बाद में देवताओं के कहने पर श्राप वापस ले लिया और वह खुद सती हो गई। वृंदा की राख से तुलसी का पौधा जन्मा। विष्णुजी ने उसका नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं पत्थर रूप में इनके साथ ही रहूंगा। इसी तरह तुलसी और शालिग्राम की साथ में पूजा होती है।
माता लक्ष्मी : एकादशी के दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी करना चाहिए। लक्ष्मी नारायण रूप की विधिवत पूजा करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और घर में मां लक्ष्मी का स्थाई वास होता है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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