30 वां एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन 11 -17 नवंबर 2023 अमेरिका-चीन की वार्ता से ख़ास बना
वैश्विक तनाव कम कर, शांति स्थापित करने, बड़े देशों की द्विपक्षीय सकारात्मक वार्ता होना वर्तमान समय की मांग – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर आज दुनियां में ताकतवर देश के बीच तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है जो तीसरे विश्व युद्ध का रास्ता तैयार कर रहा है, क्योंकि वैश्विक परिस्थितियों में स्थिति ऐसी बन रही है कि गुटबाजियों को बल मिल रहा है और विकसित ताकतवर देश अपना वर्चस्व स्थापित करने सामने या फिर पर्दे के पीछे अपना डंका जरूर बजाने की कोशिश करते हैं, जो उकसाने की कार्यवाही के रूप में परिभाषित हो जाती है। यही से लड़ाई का पहिया पड़ जाता है जो विश्वयुद्ध की लड़ाई में तब्दील हो जाता है। पृथ्वी पर दो महाविश्वयुद्ध हो चुके हैं और अब रूस यूक्रेन इसराइल हमास युद्ध अमेरिका – रूस – चीन की लुका छिपी, भारत पाकिस्तान चीन की जद्दोजहद अनेक देशों की सेना द्वारा सत्ता पलट कर काबिज सहित अनेक उदाहरण हम देख सकते हैं।
जिससे विश्व शांति को ठेस पहुंचती है, इसे समाप्त करने के लिए ताकतवर देश पड़ोसी देशों सहित आपसी मतभेदों वाले देशों को आपस में मिल बैठ मतभेदों के मुद्दों पर चर्चा करके वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करना वर्तमान समय की मांग है, जिसकी शुरुआत हो गई है क्योंकि दिनांक 11 – 17 नवंबर 2023 को अमेरिका के सेंट फ्रांसिस्को में हुए एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन में धुर विरोधी अमेरिका चीन ने वैश्विक मुद्दों पर विपक्षीय वार्ता कर दुनियां को चौंका दिया है और संदेश भी दिया है कि आपसी वार्ता कितनी महत्वपूर्ण है, चूंकि एपीईसी में यह शुरुआत हो चुकी है जिससे मौजूदा तनावपूर्ण माहौल पर पानी के छीटें मारने का काम किया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे। वैश्विक तनाव कम कर शांति स्थापित करने बड़े देशों की द्विपक्षीय सकारात्मक वार्ता होना वर्तमान समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम 15 नवंबर 2023 को एपीईसी के 30 वें शिखर सम्मेलन में अमेरिका और चीन के समकक्ष राष्ट्रपतियों द्वारा द्विपक्षीय वार्ता की करें तो अमेरिकी राष्ट्रपति और चीनी राष्ट्रपति की बुधवार को हुई मुलाकात कई वजहों से अहम रही। अव्वल तो इसने दुनिया के मौजूदा तनावपूर्ण माहौल पर पानी के छींटे मारने का काम किया है। दूसरी बात यह कि दुनिया के दो सबसे ताकतवर देशों के प्रमुखों की इस मुलाकात के दौरान कूटनीतिक संतुलन साधने की कुशलता अपने बेहतरीन रूप में नजर आई। दोनों नेता ऐसे समय में मिल रहे थे, जब दुनिया रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास युद्ध की दोहरी चुनौतियों से जूझ रही है और दोनों ही मामलों में चीन और अमेरिका की सहानुभूति परस्पर विरोधी खेमों के साथ जुड़ी है। जहां अमेरिका खुलकर यूक्रेन का साथ दे रहा है, वहीं चीन रूस का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है।
दूसरी ओर, अमेरिका इस्राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का मुखर प्रवक्ता बना हुआ है तो चीन गाजा में नागरिक आबादी पर हमले की निंदा करने में आगे है। इन तात्कालिक मुद्दों के अलावा भी पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर दूरी इतनी बढ़ गई कि उसे दुनिया की दो सबसे बड़ी इकॉनमी के बीच ट्रेड वॉर कहा गया। साउथ चाइना सी और ताइवान जैसे मसलों पर चीनी आक्रामकता और उस पर रोक लगाने की कोशिशें तो अपनी जगह थीं ही। इन सबके कारण दोनों पक्ष आपसी दूरी को कम करना जरूरी समझ रहे थे। जैसा कि मुलाकात के बाद जारी बयान में संकेत दिया गया कि ताइवान, टेक्नॉलजी, साउथ चाइना सी या रूस को चीनी सहायता जैसे मसलों पर तनाव को बढ़ने देने से उसके संघर्ष का रूप लेने का खतरा है। इसी खतरे को टालने की दिशा में एक ठोस प्रगति यह हुई कि बैठक में सर्वोच्च स्तर पर बातचीत का चैनल हमेशा खुला रखने का फैसला किया गया। तय हुआ कि जब भी जरूरत होगी दोनों राष्ट्रपति फोन पर एक-दूसरे से बात कर लिया करेंगे।
ऐसे संकेत मिले कि खास तौर पर आर्थिक मसले पर दोनों देशों के बीच पिछले कुछ वर्षों में उभरे मतभेद आने वाले समय में कुछ कम होते दिखेंगे। मगर इस बीच अंतरराष्ट्रीय सामरिक समीकरण जो रूप ले चुके हैं उसे देखते हुए न तो ये दोनों देश एक-दूसरे के ज्यादा करीब आ सकते हैं और न ही ऐसा परसेप्शन बनने दे सकते हैं। इस बात को लेकर सतर्कता भी चार घंटे चली इस मुलाकात के दौरान साफ नजर आई। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन अच्छे मेजबान की भूमिका में रहे और यह बताया कि कैसे शी चिनफिंग के साथ उनके बरसों पुराने रिश्ते हैं, लेकिन उन्हें पुराना दोस्त बताने की रवायत से सचेत रूप में बचे रहे। यही नहीं, इस मुलाकात के कुछ घंटे के अंदर ही मीडिया कर्मियों से बातचीत करते हुए शी चिनफिंग को तानाशाह बताने वाला अपना पुराना बयान भी दोहरा दिया। साफ है कि दोनों महाशक्तियों के रिश्तों के समीकरणों में तत्काल कोई नाटकीय बदलाव नहीं आने वाला।
साथियों बात अगर हम दोनों ताकतवर देशों की वार्ता से संबंधों में खटास कम होने की करें तो, अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से संबंधों में खटास बनी हुई है। दोनों देशों के बीच कुछ तनाव और दूरियों को कम करने के मकसद से इस साल पहली बार चीनी राष्ट्रपति और अमेरिकी राष्ट्रपति की सैन फ्रांसिस्को में मुलाकात हुई। इस दौरान दोनों राष्ट्रध्यक्षों ने जहां आपसी सौहार्द को बढ़ाने से लेकर इजरायल हमास युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध और ताइवान के तनाव आदि जैसे खास मुद्दों पर बातचीत की लेकिन इस मुलाकात को ताइवान के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। इस मुलाकात के दौरान यूएस प्रेजिडेंट ने अपने चीनी समकक्ष के साथ कई वैश्विक मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता की। इन नेताओं की द्विपक्षीय रणनीतिक वार्ता पर भारत समेत पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं। दुनियां के अलग-अलग देशों इस रणनीतिक वार्ता के अलग-अलग मायने भी निकाले हैं।
वैश्विक तनावों और क्षेत्रीय सुरक्षा व शांति की स्थिरता के मद्देनजर इस वार्ता को खास माना गया है। इन ताकतवर नेताओं के बीच हुई वार्ता को ताइवान के मुद्दे को लेकर अलग नजरिये से देखा जा रहा है। ताइवान के मुद्दे कोचीन ने भी अमेरिका-चीन संबंधों के लिए महत्वपूर्ण बताया है। चीन ने अमेरिका से ताइवान की स्वतंत्रता के संबंध में प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने का आग्रह किया। चीन ने ताइवान के साथ शांतिपूर्ण पुनर्मिलन का समर्थन तो किया लेकिन ताइवान पर बल प्रयोग से इंकार नहीं किया। दूसरी तरफ यूएस राष्ट्रपति ने क्षेत्रीय शांति के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता पर बल दिया कि पिछले 50 सालों या उससे अधिक समय में चीन अमेरिका संबंध कभी भी सुचारू नहीं रहे हैं। दोनों को हमेशा किसी न किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता रहा है।बावजूद इसके उतार-चढ़ाव के बीच आगे बढ़ता रहे। दुनिया के दो बड़े देशों का एक-दूसरे से मुंह मोड़ना कोई विकल्प नहीं है।
साथियों बात अगर हम अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा अपने बयान में तानाशाह शब्द का प्रयोग करने की करें तो, हाल ही में चीन के राष्ट्रपति और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात हुई थी। इस दौरान अपने एक बयान में बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति को तानाशाह बता दिया था। जिस पर विवाद हो गया, चीन ने बाइडन के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई। अब अमेरिका के विदेश मंत्री ने बयान का बचाव किया है और कहा है कि यह कोई ढकी-छिपी बात नहीं है। वे बोले यह कोई गुप्त बात नहीं दरअसल पत्रकारों ने उनसे राष्ट्रपति के बयान को लेकर सवाल किया कि क्या यह अमेरिकी सरकार का स्टैंड है? इस पर सफाई देते हुए कहा खैर, यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। हम दोनों देश बिल्कुल अलग व्यवस्थाएं हैं। उन्होंने कहा राष्ट्रपति ने हम सभी की तरफ से वह बात कही थी। राष्ट्रपति हमेशा खुलकर बात करते हैं और यही वजह रही कि उन्होंने हम सभी की तरफ से वह बात कही थी। हम आगे भी ऐसी बातें करते रहेंगे, जो शायद चीन को पसंद ना आएं।
साथियों बात अगर हम एपीईसी को समझने की करें तो एशिया- प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र, निष्पक्ष और खुले व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने और समावेशी और सतत विकास को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने का एक प्रमुख मंच है। एक क्षेत्रीय आर्थिक मंच की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी, इस समूह का उद्देश्य एशिया-प्रशांत की बढ़ती निर्भरता का लाभ उठाना और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के माध्यम से क्षेत्र को समृद्ध बनाना है। इसमें 21 सदस्य देश हैं, इसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, सिंगापुर, थाईलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, पेरू और चिली हैं। इस समूह में ताइवान और हांगकांग भी शामिल हैं जो चीन से अलग आजाद तौर पर इसके शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेते हैं। बैठक में सैन्य संघर्ष, नशीली दवाओं की तस्करी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर दोनों देशों के बीच टेंशन कम करने पर चर्चा हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति जो , एक साल के अंतरराष्ट्रीय तनाव को कम करने के प्रयास में चीनी राष्ट्रपति के साथ बैठे थे, इस बैठक को व्यापक रूप से शिखर सम्मेलन के केंद्र बिंदु के रूप में देखा गया था।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि एपीईसी शिखर सम्मेलन में अमेरिका-चीन की वैश्विक मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता से दुनियां हैरान। 30 वां एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन 11 -17 नवंबर 2023 अमेरिका चीन की वार्ता से ख़ास बना। वैश्विक तनाव कम कर, शांति स्थापित करने, बड़े देशों की द्विपक्षीय सकारात्मक वार्ता होना वर्तमान समय की मांग है।