महिला आरक्षण बिल – नारी शक्ति वंदन विधेयक संसद के विशेष सत्र में पेश

महिला आरक्षण के लिए 128वां संविधान संशोधन विधेयक 2023 संसद में पेश – पेंच फंसा, हंगामा हुआ
राष्ट्र की विकास यात्रा में नई मंजिलों को पाने महिलाओं के नेतृत्व की सहभागिता होना, समय की मांग है – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर हालांकि महिलाओं को विशेष दर्जा सुविधा, सम्मान भारत में अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त है परंतु अगर महिलाओं के नेतृत्व की बात आए तो हम उसमें पिछड़ते नजर आएंगे क्योंकि वर्तमान समय में भारत की लोकसभा में महिलाएं 543/82 यानें 15.21 प्रतिशत और राज्यसभा में 14 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है और ऐसे कई आंकड़े राज्यों के विधान सभाओं के भी हैं। परंतु इसकी तुलना अगर हम दुनियां के बढ़ते महिलाओं के नेतृत्व प्रभुत्व से भारत को खड़ा करें तो हम अपने आप को पीछे पाएंगे। क्योंकि अनेक विकसित, विकासशील देशों को देखें तो अमेरिका में 535 सदस्य जिनमें 100 अमेरिकी सीनेट में है, अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में 125 महिलाएं यानें 28.7 प्रतिशत है। अगस्त 2023 तक हाउस ऑफ कॉमंस में 223 महिलाएं थी जो पहली बार एक तिहाई से अधिक हैं। फ्रांस में 2022 में चुनाव में 37.3 प्रतिशत दक्षिण अफ्रीका में 40 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि और नेशनल काउंसिल ऑफ प्रोटीन में 36 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि हैं। पर सबसे बड़ी बात अफ्रीकी देश खांडा में 60 प्रतिशत से अधिक सीटों पर महिलाओं का कब्जा है। इस तरह यूरोप में अमेरिका में कैबिनेट मंत्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।

वैसे भी देखा जाए तो मेरा मानना है कि महिलाओं में जवाबदारी, जवाबदेही, जिम्मेदारी, लगन सहित नेतृत्व की योग्यताएं अपेक्षाकृत अधिक महसूस की जा सकती हैं। फिर यह जरूरी हो जाता है कि महिलाओं को नेतृत्व में आगे बढ़ाया जाए। जिसकी कोशिशें हम पिछले 27 वर्षों से कर रहे हैं और अब दिनांक 19 सितंबर 2023 को फिर एक बार सांसद ने महिला आरक्षण बिल के रूप में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया है। जिसके लिए 128वां संविधान संशोधन विधेयक 2023 लोकसभा में पेश किया गया। जिसमें एससी-एसटी महिलाओं को उन्हीं के कोटे में ही आरक्षण मिलेगा यानी इस वक्त लोकसभा में एससी, एसटी के लिए आरक्षित 131 सीटें हैं। अब आरक्षण लागू होने पर एक तिहाई यानी 44 सीटें महिला एससी-एसटी के लिए आरक्षित हो जाएगी। बाकी 87 सीटों पर महिला पुरुष कोई भी चुनाव लड़ सकता है और विशेष बात ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान बिल में नहीं है। बता दे यह महिला आरक्षण 33 परसेंट 15 वर्ष की अवधि तक ही लागू रहेगी उसके बाद इस पर फिर से विचार होगा। बता दें अभी लोकसभा में 540 सीटें हैं। महिला आरक्षण लागू होने के बाद एक तिहाई यानी 181 सीटों पर महिलाओं के लिए आरक्षित होगी।

फिर रोटेशन सिस्टम से हर अगले चुनाव में 181 सीटें बदल जाएगी परंतु इन सीटों पर महिलाएं ही चुनाव लड़ सकती हैं। जबकि अन्य बाकी सीटों पर भी किसी भी वर्ग की महिलाएं चुनाव लड़ सकती है यानी महिलाओं के दोनों हाथों में खुशी के लड्डू दिए जा रहे हैं। परंतु महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण नहीं मिलने से विपक्ष के नेता बड़ी पार्टी के अध्यक्ष बरस पड़े और उनके बयान को लेकर पेंच फंसा और हंगामा खड़ा हुआ और संसद की कार्यवाही 20 सितंबर 2023 सुबह 11:00 बजे तक के स्थगित की गई। वैसे भी अगर हम इस बिल में देखें तो बिल में स्पष्ट उल्लेखनीय है कि यह कानून बनने के बाद जनगणना होगी उसके आधार पर परिसीमन होगा और फिर आरक्षण लागू होगा। यानी 2024 में आरक्षण होने की चांस बिल्कुल नहीं है। 2029 में यह संभव होगा पूरे विश्व की नजरे इस महिला आरक्षण बिल पर लगी हुई है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे। राष्ट्र की विकास यात्रा में नई मंजिलों को पाने में महिलाओं के नेतृत्व की सहभागिता होना समय की मांग है।

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम आरक्षण बिल लोकसभा में पेश होने की करें तो, पीएम ने मंगलवार को नए संसद भवन में पहले कानून को पेश करने का एलान किया उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण के लिए सरकार नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश करने जा रही है। पीएम ने इसके लिए विपक्षी दलों से सहयोग मांगा और कहा कि 19 सितंबर का ये दिन इतिहास में अमर होने वाला दिन है। इसके बाद कानून मंत्री ने सदन में यह विधेयक पेश किया। इसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का एलान किया गया। बताया गया है कि लोकसभा में अब महिलाओं के लिए 181 सीटें आरक्षित होंगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं को लोकसभा और अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके कानून बनने के बाद सदन में महिलाओं की संख्या बढ़ जाएगी। महिला आरक्षण की अवधि फिलहाल 15 साल रखी गई है। इसकी अवधि बढ़ाने का अधिकार लोकसभा के पास होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि पहले कई बार विधेयक को जानबूझकर पास नहीं होने दिया गया।

साथियों बात अगर हम बिल पेश होने पर माननीय पीएम की करें तो उन्होंने कहा, हर देश की विकास यात्रा में ऐसे मील के पत्थर आते हैं, जब वह गर्व से कहता है कि आज के दिन हम सभी ने नया इतिहास रचा है। ऐसे कुछ पल जीवन में प्राप्त होते हैं। नए सदन के प्रथम सत्र के प्रथम भाषण में मैं विश्वास और गर्व से कह रहा हूं कि आज का यह पल और आज का यह दिवस संवत्सरी और गणेश चतुर्थी का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए इतिहास में नाम दर्ज करने वाला समय है। हम सभी के लिए यह पल गर्व का है। अनेक वर्षों से महिला आरक्षण के संबंध में बहुत चर्चाएं हुई हैं। बहुत वाद-विवाद हुए हैं। महिला आरक्षण को लेकर संसद में पहले भी कुछ प्रयास हुए हैं।

साथियों बात अगर हम महिला आरक्षण बिल के इतिहास की करें तो, भारत में महिला आरक्षण बिल की यात्रा काफी लंबी रही है। इतनी लंबी की इसमें 27 साल लग गए और 8 बार पेश करना पड़ा, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। यह बिल पहली बार देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा की सरकार में 12 सितंबर, 1996 को लाया गया था। ये 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश हुआ था। हालांकि, विधेयक सदन से पारित नहीं हो सका और लोकसभा भंग होने के साथ विधेयक भी लटक गया। इस कोशिश के करीब दो साल बाद, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 1998 में 12वीं लोकसभा में विधेयक को फिर पेश किया। वाजपेयी ने 1998 में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का जिक्र किया था।

हालांकि, इस बार भी बिल को पास होने के लिए जितने समर्थन की जरूरत थी उतना नहीं मिला और यह फिर से लटक गया। बाद में इसे 1999, 2002 और 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान ही फिर से पेश किया गया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार के दौरान महिला आरक्षण विधेयक की चर्चा ने फिर जोड़ पकड़ा। 6 मई, 2008 को ये विधेयक राज्यसभा में दोबारा पेश किया गया और इसके 3 दिन बाद, 9 मई को स्थायी समिति को भेज दिया गया। स्थायी समिति ने डेढ़ साल से भी ज्यादा समय लगाने के बाद 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट पेश की। इसे फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई और महिला आरक्षण विधेयक 9 मार्च, 2010 को 186-1 वोटों के साथ राज्यसभा में पास हो गया। हालांकि, इसे सरकार ने लोकसभा में दोबारा कभी विचार के लिए नहीं रखा और 2014 में लोकसभा के विघटन के साथ ही ये फिर से पास नहीं हो पाया। यानि ये विधेयक संसद में अब तक कुल 8 बार अलग-अलग समय पर पेश हो चुका है, लेकिन कानून नहीं बन पाया।

साथियों बात अगर हम महिला आरक्षण में परिवारवाद की करें तो, नेता की पत्नी या बेटियों का लोकसभा में दबदबा रहा है। लोकसभा में अभी 78 महिला सांसद हैं, लेकिन इनमें से 32 सांसद या तो नेताओं की पत्नी हैं या नेता पुत्री। राज्यसभा में भी नेताओं के परिवार का दबदबा है। पश्चिम बंगाल से सबसे अधिक महिला सांसद हैं, लेकिन वहां फिल्म अभिनेत्रियों का दबदबा है। ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि जो आंकड़े मिले वो चौंकाते हैं।वर्तमान में जो भी महिला सांसद हैं उनकी पृष्ठभूमि की तुलना में समाज के एक बड़े तबके की महिलाएं कफन की बुधिया, ईदगाह की अमीना और गोदान की धनिया जैसी महिलाओं की तरह संघर्ष कर रही हैं। ऐसे में लोकसभा की कुल 543 में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। हालांकि, सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इन सीटों से आम महिलाएं चुनकर संसद पहुंच पाएंगी? क्योंकि, वर्तमान में लोकसभा में महिला सांसदों को लेकर जो डेटा है, वो हैरान करने वाला है।

साथियों बात अगर हम सदन में बिल पर हंगामें की करें तो, रिपोर्ट्स के अनुसार, महिला आरक्षण विधेयक को लेकर विपक्षी गठबंधन में भी मतभेद उभर गए हैं। दरअसल इसकी वजह ये है कि कुछ विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि महिला आरक्षण विधेयक में एससी/एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए विशेष आरक्षण की मांग कर रही हैं। वहीं बड़ी पार्टी ने जो 2010 में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया था, उसमें किसी उप-आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया था। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि नए विधेयक पर विपक्षी पार्टियां कैसी प्रतिक्रिया दे रही हैं। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अनुसूचित जाति की महिलाओं की साक्षरता दर कम है और यही कारण है कि राजनीतिक दलों को कमजोर महिलाओं को चुनने की आदत है और वे उन लोगों को नहीं चुनते जो शिक्षित हैं और लड़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि वे हमें श्रेय नहीं देते, लेकिन मैं उनके ध्यान में लाना चाहता हूं कि महिला आरक्षण विधेयक 2010 में पहले ही पारित हो चुका था, लेकिन इसे रोक दिया गया था। विधेयक में 33 प्रतिशत कोटा के भीतर ही एससी एसटी, और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है। विधेयक में प्रस्तावित है कि हर आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को बदला जाना चाहिए। यानी इस बार अगर किसी 10 सीट को आरक्षित किया गया तो अगली बार किसी और 10 सीट को आरक्षित किया जाए। पहले वाली सीटों पर दोबारा आरक्षण लागू न हो।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि महिला आरक्षण बिल – नारी शक्ति वंदन विधेयक संसद के विशेष सत्र में पेश महिला आरक्षण के लिए 128 वां संविधान संशोधन विधेयक 2023 संसद में पेश – पेंच फंसा, हंगामा हुआ राष्ट्र की विकास यात्रा में नई मंजिलों को पानें महिलाओं केनेतृत्व की सहभागिता होना, समय की मांग है।

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