वैश्विक स्तरपर बढ़ते जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर डब्लयूएमओ की चिंता लाज़मी है – एडवोकेट किशन भावनानी
एडवोकेट किशन भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर हम जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से दुनिया के लगभग सभी देश जूझ रहे हैं, क्योंकि हर देश में अब चार चरणों के मौसम का महत्व व सीजन कम होते जा रहा है, क्योंकि चारों मौसमों का अब कोई ठिकाना नहीं रह गया है जो अपनी समायाविधि तक सीमित रहे! अब कोई भी मौसम कभी भी आ जाए भरोसा नहीं है! यही जलवायु परिवर्तन का प्रथम लक्षण है। दूसरा प्राकृतिक आपदाएं विपदाएं भी जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है कि भयंकर बाढ़, आग, हीट वेव, जंगलों में आग, फसलों की कम पैदाइश सहित अनेक कमजोरियां इसका ही विशेष कारण है। वैसे तो हम कई बार जलवायु परिवर्तन के अनेक मुद्दों पर आर्टिकल, डिबेट, चर्चाएं व वेबीनार करते रहते हैं। परंतु चूंकि अभी संयुक्त राष्ट्र की विश्व मौसम विज्ञान संगठन शाखा ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट एनुअल रिपोर्ट 2022, दिनांक 21 अप्रैल 2023 को जारी कर दी है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे कि, वैश्विक स्तरपर बढ़ते जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर डब्लयूएमओ की चिंता लाजिमी है।
साथियों बात अगर हम इस रिपोर्ट की करें तो, 21 अप्रैल, 2022 को जारी स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 रिपोर्ट ने एक बार फिर जलवायु में आते बदलावों को लेकर दुनिया को आगाह किया है। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2022 में कई जलवायु रिकॉर्ड बने बिगड़े थे।वहीं साथ ही जलवायु में आते बदलावों का कहर जारी रहा, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि मानव इन बदलावों के आगे कितना बेबस है वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पहाड़ की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई तक, जलवायु परिवर्तन ने 2022 में अपनी प्रगति बरक़रार रखी। सूखा, बाढ़ और गर्मी की लहरों ने हर महाद्वीप पर समुदायों को प्रभावित किया और इनसे निपटने में कई अरब डॉलर खर्च किए गए। अंटार्कटिक समुद्री बर्फ रिकॉर्ड स्तर पर, अपनी सबसे निचली सीमा तक गिर गई और कुछ यूरोपीय ग्लेशियरों का पिघलना तो गिनती से भी बाहर हो गया।
इस बारे में रिपोर्ट जारी करने वाले संस्थान ने चेतावनी दी है कि मौसम और जलवायु से जुड़ी घटनाओं ने पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण को प्रभावित करने के साथ-साथ इंसानों के लिए भी कई मानवीय पैदा किए हैं। डब्ल्यूएमओ के महासचिव ने अपने एक बयान में कहा कि, जबकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि और जलवायु में होता बदलाव जारी है, ऐसे में दुनिया भर में आबादी चरम मौसमी और जलवायु घटनाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। इस बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु में समुद्रों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। महासागरों में बढ़ती गर्मी और जमा ऊष्मा 2022 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। रिपोर्ट में आगाह किया है कि चूंकि ग्रीनहाउस गैसों द्वारा बढ़ती इस गर्मी का 90 फीसद हिस्सा समुद्रों द्वारा सोख लिया जाता है। ऐसे में यह बढ़ता तापमान समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2022 में पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा पड़ा। वहीं पाकिस्तान में रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई, जबकि चीन और यूरोप भी इसके कहर से नहीं बच सके और रिकॉर्ड लू की चपेट में रहे। इससे न केवल करोड़ों लोग प्रभावित हुए, बल्कि साथ ही खाद्य असुरक्षा और बड़े पैमाने पर पलायन भी हुआ। आर्थिक रूप से देखें तो जलवायु के इस कहर ने अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचाया। यह नई रिपोर्ट एक स्टोरी मैप के साथ है, जो नीति निर्माताओं के लिए जलवायु परिवर्तन संकेतकों की भूमिका के बारे में जानकारी प्रदान करता है, और जो यह भी दर्शाता है कि कैसे बेहतर तकनीक रिन्यूबल एनेर्जी को अपनाने को सस्ता और पहले से कहीं अधिक सुलभ बनाती है।जलवायु संकेतकों के अलावा, यह रिपोर्ट प्रभावों पर भी केंद्रित है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पूरे साल , खतरनाक जलवायु और मौसम संबंधी घटनाओं ने लोगों के विस्थापन को बढ़ावा दिया और साल की शुरुआत में पहले से ही विस्थापन में रह रहे 95 मिलियन लोगों में से कई के लिए स्थिति और खराब हो गई।
साथियों बात अगर हम इस रिपोर्ट की 10 बड़ी बातों की करें तो – (1) डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में यूरोप में कम से कम 15,700 मौतों के पीछे कारण हीटवेव रहा है। इसके साथ ही कहा गया है कि बाढ़ और गर्मी ने हर महाद्वीप पर समुदायों को प्रभावित किया. इससे निपटने के लिए भरसक प्रयास किए गए, अब अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं लेकिन हालात में बहुत बदलाव देखने को नहीं मिला है।
(2) रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मी में फंसने वाली ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर ने वैश्विक स्तर पर सूखे, बाढ़ और गर्मी में वृद्धि की है।पिछले आठ वर्षों में वैश्विक औसत तापमान रिकॉर्ड में सबसे अधिक रहा है। साल 2022 में यह 1850-1900 के औसत से 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
(3) डब्ल्यूएमओ के महासचिव ने आज एक बयान में कहा कि जैसे-जैसे ग्रीनहाउस गैस एमिशन में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे जलवायु में परिवर्तन गति पकड़ रहा है। इससे दुनिया भर की आबादी गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।
(4) उदाहरण के लिए, 2022 में, पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा, पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और चीन और यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया। जिससे फसलों की उपज प्रभावित हुई।
(5) 2022 में तीन ग्रीनहाउस गैसों – कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर में वृद्धि जारी है।
(6) द स्टेट ऑफ़ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 नाम की यह रिपोर्ट, गर्मी सोखने वाली ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के कारण भूमि, समुद्र और वातावरण में वैश्विक स्तर के बदलाव को दर्शाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले आठ वर्षों में वैश्विक औसत तापमान रिकॉर्ड में सबसे अधिक रहा। गौरतलब है 2022 में ग्लेशियरों का पिघलना और समद्र के स्तर में वृद्धि फिर से रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
(7) रिपोर्ट के अनुसार, 2021 तक, 2.3 बिलियन लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जिनमें से 924 मिलियन लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में 767.9 मिलियन लोग कुपोषण का सामना कर रहे हैं, जो वैश्विक आबादी का 9.8 फ़ीसदी है, इनमें से आधे एशिया में और एकतिहाई अफ्रीका में हैं।
(8) गर्मियों के दौरान रिकॉर्ड तोड़ लू ने यूरोप को बुरी तरह प्रभावित किया। कुछ इलाकों में अत्यधिक गर्मी के साथ असाधारण शुष्क परिस्थितियां भी थीं। यूरोप में गर्मी से जुड़ी अतिरिक्त मौतें स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और पुर्तगाल में कुल मिलाकर 15 हज़ार से अधिक हो गईं।
(9) भारत और पाकिस्तान में 2022 प्री-मॉनसून सीज़न में हीटवेव के कारण फसल की पैदावार में गिरावट आई। इसके साथ ही जुलाई और अगस्त में रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर दी, जिसमें 1,700 से अधिक मौतें हुईं, और 33 मिलियन लोग प्रभावित हुए, वहीं लगभग 8 मिलियन लोग विस्थापित हुए।
(10) रिपोर्ट के अनुसार, 2021 तक, 2.3 बिलियन लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा, जिनमें से 924 मिलियन लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में 767.9 मिलियन लोग कुपोषण का सामना कर रहे हैं, जो वैश्विक आबादी का 9.8 फ़ीसदी है। इनमें से आधे एशिया में और एक तिहाई अफ्रीका में हैं।