नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेंगे, पश्चिम बंगाल सरकार ने फिर कहा

कोलकाता : नई शिक्षा नीति में तीन भाषाई फॉर्मूले को लागू करना राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि अब बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाएंगे। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि 3 भाषाओं में से 2 भाषा भारतीय होनी चाहिए।

इस खास वजह से किया जा रहा है NEP 2020 का विरोध :
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर कई राज्यों में विरोध जारी (सांकेतिक)
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर कई राज्यों में विरोध का स्वर बना हुआ है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल नई शिक्षा नीति को लेकर लगातार बागी तेवर अपनाए हुए हैं। बंगाल के शिक्षा मंत्री ने फिर से दोहराया कि राज्य सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) थोपने के केंद्र के प्रयासों को कभी स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि बंगाल की अपनी संस्कृति और शिक्षा प्रणाली है।

पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने पिछले दिनों कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति थोपने के केंद्र के प्रयासों को राज्य सरकार स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि बंगाल की अपनी संस्कृति और शिक्षा प्रणाली है। साथ ही बसु ने चेतावनी दी कि चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है, इसलिए केंद्र को नई नीति के माध्यम से अपनी बात नहीं रखनी चाहिए। राज्य के शिक्षा मंत्री ने कहा कि संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में है। यह एक नाजुक विषय है। अगर भाजपा सरकार ‘तुगलकी’ दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश करती है तो हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। हमारे पास भी कहने के लिए कुछ है, हम अपने विचार रखेंगे और जो कुछ भी स्वीकार किया जा सकता है, हम उसे स्वीकार करेंगे। हम अपनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ेंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रखर आलोचकों में से एक ने बताया कि नई नीति में तकनीकी संस्थानों समेत सभी विषयों को मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर दिया गया है। साथ ही शास्त्रीय भाषा संस्कृत पर तनाव हानिकारक साबित हो सकता है। पिछले साल जुलाई में नई शिक्षा नीति-2020 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी। इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। हालांकि 1992 में इस शिक्षा नीति में कुछ संशोधन किए गए थे। अब 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लाई गई है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को लेकर विरोध के सुर बने हुए हैं।

केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति के तहत पुराने की जगह 5+3+3+4 की नई परंपरा की बात कर रही है और ये फॉर्मूला सरकारी और प्राइवेट सभी स्कूलों पर लागू होगा। वहीं स्कूली शिक्षा के दौरान भाषा के स्तर पर अहम बदलाव किया गया है। नई नीति में 3 लैंग्वेज फॉर्मूले की बात की है, जिसमें कक्षा 5 तक मातृ भाषा या लोकल भाषा में पढ़ाई की बात की गई है। इस नीति में यह भी कहा गया है कि 3 लैंग्वेज फॉर्मूले को कक्षा 8 तक अपनाया जाए। संस्कृत भाषा के साथ-साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ जैसी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई पर भी जोर दिया गया है। हालांकि सेकेंड्री सेक्शन में स्कूल के पास विदेशी भाषा के रूप में विकल्प देने का मौका होगा। लेकिन इसी को लेकर सबसे ज्यादा विरोध जताया जा रहा है।

तमिलनाडु सरकार ने भी इसी का विरोध किया। वह 3 लैंग्वेज फॉर्मूले का विरोध कर रही है। तमिलनाडु सरकार राज्य में 2 भाषा (तमिल और अंग्रेजी) की नीति लेकर चलना चाहती है। एमके स्टालिन से पहले की पलानीस्वामी सरकार ने भी इसका विरोध किया था। उन्हें डर है कि त्रिभाषाई फॉर्मूले के तहत राज्यों पर संस्कृत और हिंदी थोपी जा सकती है। सत्ता में आने से पहले विपक्ष में रहते हुए भी स्टालिन ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया था, और उनका कहना था कि केंद्र द्वारा नई नीति की सिफारिशें सिर्फ समाज में बैठे ऊंचे ओहदे के लोगों के लिए हैं और यह शिक्षा सिर्फ कुछ वर्गों तक ही सीमित रहेगी। स्टालिन ने तमिल और अन्य भाषाओं के ऊपर संस्कृत को वरीयता दिए जाने पर भी सवाल उठाए थे। स्टालिन सरकार का यह भी कहना है कि नई शिक्षा नीति के जरिए राज्य की शिक्षा नीति में हस्तक्षेप किया जा रहा है।

नई नीति से क्यों है दिक्कत?
नई शिक्षा नीति में 3 लैंग्वेज फॉर्मूले को लागू करना राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि अब बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाएंगे। नई नीति में कहा गया है कि 3 भाषाओं में से 2 भाषा भारतीय होनी चाहिए। जहां पर मातृभाषा में किताबें उपलब्ध नहीं होंगी वहां पर किताबें छपवाई जा सकती हैं। नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि देश में शिक्षा की गुणवत्ता में बढ़ावा देने के लिए शिक्षा मित्र, एडहॉक, गेस्ट टीचर जैसे पद धीरे-धीरे खत्म कर दिए जाएंगे और बेहतर चयन प्रक्रिया का गठन कर स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों में नियमित और स्थायी टीचर्स की नियुक्ति की जाएगी।

कह क्या रहे हैं विरोधी?

साथ ही विरोधियों का मानना है कि नई शिक्षा नीति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का एजेंडा है। आरएसएस की मांग के बाद ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर बार फिर पहले की तरह शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। वैदिक गणित, दर्शन और प्राचीन भारतीय परंपरा से जुड़े विषयों को अहमियत दिए जाने को लेकर विरोध किया जा रहा है। साथ ही यह आशंका भी जताई जा रही है कि इससे शिक्षा में कॉरपोरेटाइजेशन को बढ़ावा मिलेगा।

झारखंड की सरकार ने विरोध में कहा था कि नई नीति प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने वाली है। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले साल जुलाई में कहा था कि नई नीति व्यावसायीकरण और निजीकरण को प्रोत्साहित करती है। साथ ही केंद्र सरकार ने इसे तैयार करने से पहले राज्यों के साथ सलाह मशविरा नहीं किया, चूंकि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का हिस्सा होने के बावजूद, इसे लागू करने से सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुंचेगी।

शिक्षा नीति 2020 की कुछ खास बातें :
नई शिक्षा नीति में 5वीं कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे कक्षा 8 या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। जबकि विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी। हालांकि यह भी कहा गया कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा।

स्कूल पाठ्यक्रम के 10+2 की जगह अब 5+3+3+4 का नई संरचना लागू की जाएगी जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 उम्र के बच्चों के लिए है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। नई शिक्षा का लक्ष्य 2030 तक 3-18 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। नई शिक्षा नीति के तहत छात्रों को ये आजादी होगी कि अगर वो कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाखिला लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं।

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