कोलकाता। एक जनहित मामले की सुनवाई के दौरान बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाई कोर्ट को बताया कि महाप्रभु चैतन्य देव की जन्मस्थली नवद्वीप में वह बूचड़खाना बनाने के लिए इच्छुक नहीं है। इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। इस लिहाज से उसने इस मद में केंद्र की ओर से आवंटित पैसे को लौटा दिया है। दरअसल सत्ता में आने के बाद केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अवैध बूचड़खानों को बंद करने का फैसला किया था। इसके साथ ही राज्य सरकार की देखरेख में जिलों में कुछ बूचड़खाने खोलने की अनुमति दी गई थी।
इस कड़ी में 2017 राज्य सरकार की सहमति के बाद केंद्र ने नवद्वीप नगर पालिका क्षेत्र एक बूचड़खाना बनाने की अनुमति दी थी। केंद्र के फैसले के खिलाफ नवदीप के एक संत भक्तिसाधन तत्पर महाराज ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने कोर्ट से अपील की कि अगर बूचड़खाना कहीं और बनता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन नवद्वीप नगर पालिका क्षेत्र में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। भविष्य में अशांति का खतरा है।
कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य अभियोजक ने अदालत को बताया कि नवद्वीप नगर पालिका के आयुक्त से रिपोर्ट ले ली गई है। चैतन्य देव का जन्म वहीं हुआ था। उस स्थान पर महाप्रभु के विभिन्न दार्शनिक विचारों का परिचय मिलता है। नतीजतन शहर की अपनी परंपरा और महिमा है। इसलिए राज्य वहां बूचड़खाना नहीं बनाना चाहता। परियोजना के लिए आवंटित धन केंद्र को वापस कर दिया गया है। नतीजतन उच्च न्यायालय ने मामले के निपटारे की घोषणा की।