तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : संसदीय चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी की झोली भर देने वाला जंगल महल चंद महीनों बाद ही इतना उदासीन क्यों है। इस उदासीनता का कैसा प्रभाव आसन्न विधानसभा चुनाव परिणाम पर पड़ेगा। जंगल महल की राजनीति में इन दिनों मुख्य रूप से इन्हीं सवालों के जवाब तलाशे जा रहे हैं। बता दें कि बगैर सांगठनिक ढांचे और जमीनी नेता के ही भाजपा ने जंगल महल की राजनीति में अपनी पैठ 2018 के पंचायत चुनाव में ही बना ली थी।
2019 के संसदीय चुनाव में भी भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से झाड़ ग्राम, बांकुड़ा, विष्णुपुर और पुरुलिया सीट अपेक्षाकृत काफी मजबूत तृणमूल कांग्रेस से छीन ली। इतनी भारी सफलता के बावजूद जंगल महल का मौजूदा रुख जहां अन्यान्य दलों का कौतूहल बढ़ा रहा है, वहीं सत्ता के सपने देख रही भाजपा को डरा भी रहा है। इसकी वजह पार्टी के स्टार प्रचारक माने जाने वाले शीर्ष नेताओं की सभा में भीड़ न जुटना है।
लालगढ़ में फरवरी में हुई परिवर्तन यात्रा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति के बावजूद करीब आधे घंटे की प्रतीक्षा के बाद भी शुरू नहीं हो सकी । क्योंकि सभा में कायदे की भीड़ ही नहीं जुट सकी थी । नेताओं ने इसे महज संयोग माना । लेकिन पिछले दिनों झाड़ ग्राम में आयोजित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा के अंतिम समय में वर्चुअल होने की वजह भी अपेक्षित भीड़ न जुटना मानी जा रही है । भाजपा नेताओं का दावा है कि हेलीकाप्टर में तकनीकी खराबी की वजह से शाह झाड़ ग्राम नहीं जा पाए , लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता इसके लिए भीड़ न जुटने को ही एकमात्र वजह बता रहे हैं।
खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपनी सभाओं में इस मुद्दे पर भाजपा को आड़े हाथों ले रही है। वहीं टीएमसी नेता दावा तो जंगल महल में हुई उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय आदित्य नाथ की सभाओं के भी फेल होने का कर रहे हैं। जबकि भाजपा नेताओं से इस पर जवाब देते नहीं बन रहा। जंगल महल का यह मिजाज किस बात का संकेत है इसका पता आगामी 2 मई को चुनाव परिणाम से ही लग पाएगा।