Durga

देवियों को पूजने वाले बंगाल में जीवंत देवियों की स्थिति इतनी दयनीय क्यों हो गई

अनुराधा वर्मा “अनु”, कोलकाता। बंगाल, जिसे देवी दुर्गा की पूजा और शक्ति की आराधना के लिए जाना जाता है, एक ऐसा क्षेत्र है जहां सदियों से नारी शक्ति का सम्मान और आदर किया गया है। यहाँ नवरात्रि, दुर्गा पूजा और कई अन्य पर्वों के दौरान देवी की आराधना की जाती है, जिसे नारी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लेकिन इस क्षेत्र में, जहाँ देवी को पूजने की गहरी सांस्कृतिक परंपरा है, वहाँ जीवित महिलाओं की स्थिति में गिरावट एक बड़ा और जटिल सवाल उठाती है।

बंगाल में नारी को देवी के रूप में पूजा जाना एक पवित्र परंपरा है, लेकिन सामाजिक जीवन में महिलाओं की स्थिति इसके विपरीत दिखाई देती है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं वास्तविक जीवन के व्यवहार में अनुवादित नहीं हो पाती हैं। पूजा के समय नारी को देवी के रूप में सम्मानित किया जाता है, लेकिन समाज में उसकी भूमिका पारंपरिक और सीमित रहती है। यह विरोधाभास दिखाता है कि नारी के प्रति सम्मान केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित है और उसे समाज में समान अवसर और अधिकार नहीं दिए जाते हैं।

बंगाल में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा की कमी महिलाओं के शोषण का एक प्रमुख कारण है। शिक्षा का अभाव महिलाओं को उनके अधिकारों और स्वतंत्रता के बारे में जागरूक नहीं होने देता। शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता के बिना, महिलाएं अपनी आवाज उठाने या समाज में अपनी स्थिति को सुधारने के लिए सक्षम नहीं हो पाती हैं। यही कारण है कि बंगाल जैसे प्रगतिशील राज्य में भी महिलाओं को पारिवारिक और सामाजिक बंधनों में जकड़ा हुआ पाया जाता है।

बंगाल का समाज अब भी पितृसत्तात्मक ढांचे के तहत काम करता है, जहाँ महिलाओं की भूमिका पारंपरिक रूप से सीमित मानी जाती है। उनकी सामाजिक स्थिति का माप अक्सर उनकी घरेलू भूमिकाओं और शादी के बाद के जीवन से किया जाता है। इसके अलावा, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं की संख्या अब भी कम है। आर्थिक निर्भरता के चलते महिलाएं अक्सर घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा और शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं।

बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और शोषण की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, बलात्कार, और तस्करी जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। कानून होते हुए भी, न्याय पाने की प्रक्रिया धीमी और कठिन होती है, जिससे महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए मजबूरन चुप रहती हैं।

आज के समय में बंगाल जैसे राज्यों में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए समाज में समग्र बदलाव की आवश्यकता है। इसमें केवल सरकार की नीतियों का ही योगदान नहीं होना चाहिए, बल्कि परिवार, समुदाय और समाज के स्तर पर भी गहरे बदलाव जरूरी हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होंगी। महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना उनके सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम है। जब महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी, तो वे समाज में सम्मान और सुरक्षा प्राप्त कर सकेंगी।

महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाना जरूरी है। कानूनों के कड़ाई से पालन से महिलाओं को सुरक्षा का भाव मिलेगा। समाज में महिलाओं की भूमिका को लेकर जो पारंपरिक दृष्टिकोण हैं, उनमें बदलाव की आवश्यकता है। नारी केवल घरेलू कामकाज तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित कर सकती है। बंगाल में जीवंत देवियों की दयनीय स्थिति धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक यथार्थ के बीच एक गहरे विरोधाभास को दर्शाती है।

अनुराधा वर्मा “अन्नू”
लेखिका

महिलाओं को देवी मानने की परंपरा जितनी पुरानी है, उतनी ही पुरानी यह सोच भी है कि महिला को पुरुषों के अधीनस्थ रहना चाहिए। इस विरोधाभास को सुलझाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, कानूनी सुधार और सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव शामिल हों। तभी हम उस समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ नारी न केवल देवी के रूप में पूजी जाए, बल्कि उसे वास्तविक जीवन में भी उसका सम्मान और समानता मिले।

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