आखिर ऐसा करने की हिम्मत कहां से आती है?

डॉ. विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली। आखिर कैसे दुनियां में सर उठाकर हम सभी बोले की जात पात का भेदभाव अपने देश में अब नही है? वह शैतान सिगरेट का कश लेते हुए बड़ी ही बेफिक्री से पेशाब कर रहा था, एक जीते जागते इंसान के सिर से होती हुई शरीर पर उतर रही थी लेकिन वह ‘शैतान’ मदमस्त था। इससे अमानवीय तस्वीर और क्या होगी? आजादी के इतने वर्षो के बाद भी आखिर ऐसा करने की हिम्मत कहां से आती है? पीएम नरेंद्र मोदी खुद गरीबों-दलितों, आदिवासियों के उत्थान की बातें करते हैं, तो ऐसे शैतानों को संरक्षण कैसे मिल जाता है? मुझे कहते हुए शर्म आ जाएगी, आपको देखकर शर्म आ जाएगी लेकिन अहंकार में डूबे उन लोगों को नहीं आती जिन्हें सत्ता के करीब रहने का सुख मिल रहा है!

हमारा संविधान कहता है कि किसी के भी साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा क्योंकि यहां सभी लोग समान हैं। लेकिन 21वीं सदी के इस दौर में भी कई स्थानों से ऐसी खबरें हमेशा ही हमारे सामने आती रहती है जिसमें किसी न किसी के साथ धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर बुरा बर्ताव किया जाता है। कभी दूल्हे के घोड़ी चढ़ने पर तो कभी स्कूल में एक ही मटके से पानी पीने पर पिछड़े जाति के बच्चों के साथ अमानवीय बर्ताव सुनने को मिलता रहता है। तो किसी को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अलग अलग तरह की भेदभाव होता देखने को।

शहरों की अपेक्षा देश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह मुद्दा आज भी अहम बना हुआ है। हालांकि सरकारें व प्रशासन ऐसे मुद्दे को गंभीरता से लेते हैं और ऐसा कृत्य करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी की ही जाती है। इसके बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्रों में भेदभाव समाप्त होता नज़र नहीं आ रहा है। आखिर क्यों मानवता लोगों में मरती जा रही है। याद रहे इंसानियत व रोटी से बड़ा कोई जाति, धर्म नही हो सकता है।

डॉ. विक्रम चौरसिया, चिंतक/दिल्ली विश्वविद्यालय

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