सुवर्ण प्राशन क्या है? जाने, कोलकाता के जाने माने आयुर्वेदिक डॉ. जयेश ठक्कर से

कोलकाता : सुवर्ण प्राशन बच्चों को दी जाने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिससे बच्चों का इम्युनिटी हेल्थ अच्छा होता हैं। आयुर्वेद के कश्यप संहिता में इसका उल्लेख हैं की “वर्ण मेधा आयु वर्धनम।” आज के आधुनिक युग में इसके बहुत सारे अच्छे परिमाण देखने को मिलते हैं। बच्चों के जन्म के बाद दी जाने वाली इस दवा में मुख्यत: शोधित सुवर्ण भस्म, मधु, गौ घृत और कुछ वनस्पतियां होती है। इसे पुष्य नक्षत्र में दिया जाना लाभजनक पाया गया है। हर 28 दिन में पुष्य नक्षत्र आता है, यानि महीने में एक बार इसे दिया जाता है, पूर्ण कोर्स डोज में और बाकी दिनों में अल्प मात्रा में पूरा महीना भी दिया जा सकता है, अच्छे परिणाम के लिए। इसका तीन से छह महीने का कोर्स गैप या जरूरत के हिसाब से आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए।

यह सुरक्षित प्रिवेंटिव दवाई हैं, इसमें स्वर्ण यानि सोना (रसशास्त्र के ज्ञान से शोधित भस्म होता है, जिसमे कोई फ्री मेटल नहीं होता लैब द्वारा प्रमाणित) प्राशन या चटनी के माध्यम से दिए जाते हैं इसलिए स्वर्ण प्राशन या स्वर्ण बिंदु भी कहा जाता है। यह ड्रॉप्स की तरह भी आयुर्वेद दवाई दुकानों में उपलब्ध होता है। आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन की तरह इसका प्रयोग साधारणत: होता है। कोरोना के इस संक्रमण काल में आयुर्वेद की यह दवा बच्चों में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देखा गया है कि जो बच्चे स्वर्ण प्राशन लेते हैं वो मौसम बदलने से बार-बार बीमार नहीं पड़ते हैं तथा उनकी वजन और हाइट भी ठीक रहता है। इस दवाई को विशेषत: खाली पेट दिया जाता है, आधा घंटे के बाद बच्चे को कुछ दे सकते हैं। वैद्य (आयुर्वेदिक रजिस्टर्ड डॉक्टर) को अगर लगता है कि बच्चे को ब्राह्मी घृत या मुलेठी इत्यादि संयोग करना है तो वो बच्चे का जांच करके साथ में देते हैं। आटिज्म, मंद बुद्धि के बालको में विशेष योग दिए जाते हैं। बच्चे के उम्र के हिसाब से तय किया जाता है। यह दवा 16 साल की उम्र तक लिया जाता हैं।

सीधे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जैसे बड़ों के लिए च्यवनप्राश है, वैसे ही बच्चो के लिए सुवर्ण प्राशन है। सुवर्ण प्राशन षोडस संस्कार में आता है। हमारी वैदिक संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक की जीवन यात्रा में 16 संस्कार होते हैं। सुवर्ण संस्कार जन्म से शुरू होकर बाल्यावस्था तक चलता हैं। समय की कसौटी में यह संस्कार फिर से उभर आया। हज़ारो वर्षो से आयुर्वेदाचार्य इसका प्रयोग करते आ रहे हैं। वर्तमान समय में हमलोग भूल गए परंतु शास्त्र याद कराता रहता है। आयुर्वेद स्वस्थ्य रहने की पद्धति तो है ही, रोगी को रोग मुक्त करने की पद्धति भी है। भारत सरकार, मिनिस्ट्री ऑफ़ आयुष से BAMS कोर्स आयुर्वेद डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन कराती है। पुरे भारत में अनेकों आयुर्वेद हॉस्पिटल और सेंटर हैं।

दिल्ली की आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद के निर्देश में बच्चों के पोषण और स्वर्ण प्राशन की जानकारी दी जाती है। पुरे भारत में अनेक जगहों जैसे हसन आयुर्वेद हॉस्पिटल कर्नाटक में लाखो बच्चों के रिकार्ड्स रखे गए हैं, वैसे ही गुजरात में डॉ. हितेश जन आयुर्वेद व्यासपीठ से अनेक स्कूलों में बच्चो पर अध्ययन कर चुके हैं। लखनऊ के किंग जॉर्ज कॉलेज के सहयोग से भी देखा गया कि इसे देने से मौसमी संक्रमण की बीमारी बच्चों में पहले से काफी कम हुई है।
साधारणत: सभी आयुर्वेदिक क्लिनिक हॉस्पिटल में इससे दिया जाता है। आज जैसे पुष्य नक्षत्र हैं इसके बारे में ख़ास जानकारी दी जा रही है, हमारे सभी पाठक बंधुओं के लिए।

डॉ. जयेश ठक्कर, आयुर्वेद चिकित्सक जय आयुर्वेद, भवानीपुर, कोलकाता
Dr. Jayesh Thakkar, Ayurvedacharya (B.A.M.S.)
Ayurveda Clincian and Consultant
* Ex-House-Physician, Dept of Kaya Cikitsa (Medicine),
Patipukur Ayurvedic Hospital, Kolkata – 48

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 + seventeen =