क्या है रूद्राभिषेक? कैसे किया जाता है? क्यों किया जाता है? भोलेनाथ के पवित्र मास श्रावण में एक उपयोगी एवम विस्तृत प्रस्तुति

वाराणसी। रुद्राभिषेक का महत्त्व तथा लाभ- भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही ग्रह जनित दोषों और रोगों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद अनुसार शिव हैं सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। भगवान शंकर सर्व कल्याणकारी देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी पूजा, अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।

भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा –
यजुर्मयो हृदयं देवो यजुर्भिः शत्रुद्रियैः।
पूजनीयो महारुद्रो सन्ततिश्रेयमिच्छता।।

शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है ।जाबालोपनिषद में याज्ञवल्क्य ने कहा – शतरुद्रियेणेति अर्थात शतरुद्रिय के सतत पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

परन्तु जो भक्त यजुर्वेदीय विधि-विधान से पूजा करने में असमर्थ हैं या इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान शिव के षडाक्षरी मंत्र– ॐ नम: शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।
महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होते है। शिव भक्त इस दिन अवश्य ही शिवजी का अभिषेक करते हैं।

क्या है रुद्राभिषेक? अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है- स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।

रुद्राभिषेक क्यों करते हैं? रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ? प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार : एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है?
भगवान शिव ने कहा- हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।
जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है? शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।

रुद्राभिषेक के लाभ : वैसे तो रुद्रभिषेक के बहुत सारे लाभ हैं। जिनमे कुछ निम्न प्रकार से हैं- भगवान शिव चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करते हैं। चंद्रमा ज्योतिष मे मन का कारक है। किसी भी प्रकार के मानसिक समस्या को दूर करने मे रुद्रभिषेक सहायक सिद्ध होता है। चंद्रमा को जब क्षय रोग हुआ था तो सप्तऋषि ने रुद्रभिषेक किया था। चंद्रमा के पीड़ित होने से क्षय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। यह ज्योतिषीय नियम है की कुंडली मे अगर चंद्रमा पाप गृह से पीड़ित हो तो क्षय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

1) अगर कोई इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित है तो रुद्राभिषेक करवाना लाभप्रद होता है।
2) गंभीर किस्म के बीमारियों को दूर करने हेतु एवं उनके होने से बचने हेतु रुद्रभिषेक करवाना लाभप्रद होता है।
3) कुंडली मे मौजूद ग्रह अगर मारक प्रभाव दिखा रहे हों तो उनके दुष्प्रभाव को दूर करने हेतु रुद्रभिषेक करना लाभदायक होता है।
4) घर का कोई व्यक्ति नकारात्मक बाते करने लगा हो। घर की शांति मे बाधा आ रही हो। आस पड़ोस के लोगो से झगड़ा निरंतर चल रही हो।
5) मुकदमे मे विजय प्राप्ति हेतु।

6) धन की प्राप्ति हेतु, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु।
7) अकाल मृत्यु से बचने हेतु। दुर्घटना से बचने हेतु।
8) शत्रु से छुटकारा पाने हेतु। शत्रु से शत्रुता नष्ट होजाएगी।
9) घरेलू समस्या से छुटकारा हेतु। एवं घर मे शांति हेतु।
10) नशे से मुक्ति एवं माता का स्वस्थ्य संबंधी समस्या एवं उनके साथ हो रहे मनमुटाव दूर करने के लिए रुद्रभिषेक करना रामबाण साबित होगा।

रुद्रभिषेक कैसे करें : शुभ मुहूर्त के चुनाव के बाद योग्य विद्वानो और वेदपाठी ब्राह्मण से ही पुजा करवाएँ। क्योंकि इनमे वैदिक मंत्रों का प्रयोग होता हैं इस कारण खुद करना आसान नहीं होगा।
संस्कृत श्लोक :
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।

अर्थात –
जल से रुद्राभिषेक करने पर- वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर- रोग, दुःख से छुटकारा मिलता है।
दही से अभिषेक करने पर- पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर- लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर- धन वृद्धि के लिए।
तीर्थ जल से अभिषेक करने पर- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से- बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेक करने से- पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से- ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से- सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से- वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से- रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से- पाप क्षय हेतू।

इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद से समृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।

रुद्राभिषेक का महत्व : भगवान् शिव को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है और ऐसा माना जाता है की इससे सभी प्रकार की मनोकामना को पूरा किया जा सकता है। जीवन के समस्याओं को दूर करने का एक सशक्त तरीका है रुद्राभिषेक। इससे नकारात्मक उर्जाओं से सुरक्षा होती है। ये पापो का क्षय करता है। रुद्राभिषेक से जीवन में शांति और समपन्नता आती है। ये बीमारियों को दूर करने में मदद करता है। जो लोग नौकरी ढूँढ रहे हैं उनके लिए नए मार्ग खुलते हैं। जो लोग जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं उनके लिए रास्ते खुलते हैं। कुंडली के दोषों को दूर करने का भी ये एक अच्छा तरीका है। वास्तु दोषों को भी दूर किया जा सकता है इस प्रयोग के द्वारा।

अगर कोई कानूनी समस्याओं से जूझ रहा हो तो भी रुद्राभिषेक इसमे बहुत मदद कर सकता है। जहा भी रुद्राभिषेक होता है वह से नाकारात्मक ऊर्जा पलायन कर जाती है। इसके अध्यात्मिक और भौतिक, दोनों लाभ होते हैं। अगर आप भगवान् शिव के उपासक है तो रूद्र पूजा करना चाहिए। अगर आप अपने व्यक्तिगत और कामकाजी जीवन में परेशानी का सामना कर रहे हैं तो भी आपको रूद्र पूजा करना चाहिए। अगर आप जीवन के परेशानियों को दूर करना चाहते हैं तो मंत्रो द्वारा रूद्र पूजा करना चाहिए। आप निश्चित ही लाभान्वित होंगे। अपने आसपास सकारात्मक वातावरण का निर्माण करने के लिए भी ये पूजा आपके लिए बहुत अच्छी है।

ज्योतिष भी इस पूजा के लिए सलाह देते है। समय-समय पर रूद्र पूजा करना चाहिए। महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है रुद्राभिषेक, ज्योतिष के जानकारों की मानें, तो सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप शिव से मनचाहा वरदान पा सकते हैं, क्योंकि शिव के रुद्र रूप को बहुत प्रिय है अभिषेक, भोलेनाथ सबसे सरल उपासना से भी प्रसन्न होते हैं, लेकिन रुद्राभिषेक उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है। कहते हैं कि रुद्राभिषेक से शिव जी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव करने की शक्ति पा सकते हैं, तो आप भी सही समय पर रुद्राभिषेक करिए और शिव कृपा के भागी बनियें, रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं, शिव जी की कृपा से सारे ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता हैं।

शिवलिंग पर मंत्रों के साथ विशेष चीजें अर्पित करना ही रुद्राभिषेक कहा जाता है, रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं, सावन में तो रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है, रुद्राभिषेक करने से मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं, रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है।

अलग-अलग शिवलिंगों और अलग-अलग स्थानों पर रुद्राभिषेक करने का फल भी अलग होता है, आप पढ़िये और समझियें कि कौन से शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना ज्यादा फलदायी होता है, मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना बहुत उत्तम होता है, इसके अलावा घर में स्थापित शिवलिंग पर भी अभिषेक कर सकते हैं। रुद्राभिषेक घर से ज्यादा मंदिर में, नदी तट पर और सबसे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है, शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं, रुद्राभिषेक में मनोकामना के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, ज्योतिष मानते हैं कि जिस वस्तु से रुद्राभिषेक करते हैं, उससे जुड़ी मनोकामना ही पूरी होती है।

तो आप भी जानिये कि कौन सी वस्तु से रुद्राभिषेक करने से पूरी होगी आपकी मनोकामनायें, घी की धारा से अभिषेक करने से वंश बढ़ता है, इक्षुरस से अभिषेक करने से दुर्योग नष्ट होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं, शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने से इंसान विद्वान हो जाता है, शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां नष्ट हो जाती हैं। गाय के दूध से अभिषेक करने से आरोग्य मिलता है, शक्कर मिले जल से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति सरल हो जाती हैं, भस्म से अभिषेक करने से इंसान को मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, कुछ विशेष परिस्थितियों में तेल से भी शिव जी का अभिषेक होता है। कोई भी धार्मिक काम करने में समय और मुहूर्त का विशेष महत्व होता है, रुद्राभिषेक के लिए भी कुछ उत्तम योग बनते हैं।

हम जानते हैं कि कौन सा समय रुद्राभिषेक करने के लिए सबसे उत्तम होता है, रुद्राभिषेक के लिए शिव जी की उपस्थिति देखना बहुत जरूरी है, शिव जी का निवास देखे बिना कभी भी रुद्राभिषेक न करें, बुरा प्रभाव होता है, शिव जी का निवास तभी देखें, जब मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक करना हो, शिव जी का निवास कब मंगलकारी होता है?
देवों के देव महादेव ब्रह्माण्ड में घूमते रहते हैं, महादेव कभी मां गौरी के साथ होते हैं, तो कभी-कभी कैलाश पर विराजते हैं, ज्योतिषाचार्याओं की मानें तो रुद्राभिषेक तभी करना चाहिये जब शिवजी का निवास मंगलकारी हो, हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी को शिवजी मां गौरी के साथ रहते हैं।

हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी शिवजी मां गौरी के साथ रहते हैं, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी को महादेव कैलाश पर वास करते हैं, शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि को भी महादेव कैलाश पर ही रहते हैं, कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी को शिवजी नंदी पर सवार होकर पूरा विश्व भ्रमण करते हैं।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि को भी शिव जी विश्व भ्रमण पर होते हैं, रुद्राभिषेक के लिए इन तिथियों में महादेव का निवास मंगलकारी होता है, यह भी जानना अति आवश्यक है कि शिवजी का निवास कब अनिष्टकारी होता है? शिव आराधना का सबसे उत्तम तरीका है रुद्राभिषेक, लेकिन रुद्राभिषेक करने से पहले शिव के अनिष्‍टकारी निवास का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

कृष्णपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भगवान शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं, शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और पूर्णिमा को भी शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं, कृष्ण पक्ष की द्वितीया और नवमी को महादेव देवताओं की समस्यायें सुनते हैं, शुक्लपक्ष की तृतीया और दशमी में भी महादेव देवताओं की समस्यायें सुनते हैं। कृष्णपक्ष की तृतीया और दशमी को नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं, शुक्लपक्ष की चतुर्थी और एकादशी को भी नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं, कृष्णपक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी को रुद्र भोजन करते हैं, शुक्ल पक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भी रुद्र भोजन करते हैं, इन तिथियों में मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक नहीं किया जा सकता है।

कुछ व्रत और त्योहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं, उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है, शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार को शिव के निवास पर विचार नहीं करते। सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी शिव के निवास पर विचार नहीं करते। रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय दोनों हमेशा मंगलकारी होते हैं, शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होंगी, आपके मन में जैसी कामना हो, वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शुभ और मंगलमय बनाइए।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

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