क्या होता है मांगलिक योग और इसका असर

वाराणसी । क्या होता है मांगलिक योग और इसका असर? जानिए मांगलिक योग कारण एवं निवारण :
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि ‘मांगलिक’ का सही अर्थ क्या है और यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है। वास्तव में किसी भी कुण्डली में ‘मांगलिक’ एक दोष नहीं है अपितु योग माना जाता है। परन्तु बहुत से ज्योतिषी ‘मांगलिक दोष’ कहकर लोगों के मनों को डर और वहम से भर देते हैं।

यदि मांगलिक के बारे में सही ढंग से पढ़ा और समझा जाये तो पता चलेगा कि ‘मांगलिक’ होना कोई दुःख वाली बात नहीं है। जब किसी माता-पिता को पता चलता है कि उनका पुत्र या पुत्री मांगलिक है, तो वें परेशान होने लगते हैं और डर जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति यह बात अवश्य जानना चाहता है कि इस मांगलिक योग को केवल विवाह के समय ही क्यों ध्यान में रखा जाता है। इसलिए इस बारे में विस्तारपूर्वक बात करना आवश्यक है।

कुण्डली में मांगलिक योग मंगल ग्रह की स्थित से ही देखा जाता है प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि मंगल ग्रह मानव के शरीर का प्रतीक माना जाता है और विवाह के सम्बन्ध में मानव शरीर की मुख्य भूमिका होती है क्यूंकि विवाह वह संस्था है जो हमारे शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करता है और भावी पीढ़ियों के जन्म में सहायक होता है और इन दोनों कार्यों के लिए स्वस्थ शरीर होना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सम्पूर्ण बनाने के लिए एक साथी की आवश्यकता होती है।

वास्तव में मांगलिक योग के बारे में न तो
– ऋगवेंद
– युजर्वेद, और न ही
– अथर्व वेंद में कुछ लिखा है।
मांगलिक योग के बारे में इन वेंद पुस्तकों की रचना के बाद ही लिखा गया है। इस योग के बारे में ‘फलित – ज्योतिष’, फलित – मरतुण्ड’ तथा ‘महुर्त – चिंतामड़ी’ में विवरण मिलता है।

मांगलिक को समझने से पहले हमें मंगल ग्रह के बारे में समझना होगा।
मंगल ग्रह :
मूल त्रिकोण राशि : मेष
उच्च राशि : मकर
नीच राशि : कर्क
रत्न : मूँगा
जात : क्षत्रिय
तत्व : अग्नि
रंग : लाल
पूर्ण का समय : दोपहर
मित्र ग्रह : सूर्य, चंद्र, बृहस्पति
सामान्य ग्रह : शुक्र
शत्रु ग्रह : बुध, शनि, राहु, केतु
दृष्टियां : चतुर्थ, सप्तम और अष्टम
अवस्था : युवा
स्वभाव : क्रोधी
कारक : जमीन, छोटा भाई
इष्ट देव : बजरंग बलि, शिव जी
मंगल ग्रह का लिंग : पुरुष
धातु : तांबा, कांस्य, सोना
दान-पुण्य की वस्तुए : ब्राउन शुगर, लाल कपडा, लाल फल, घी
वैदिक मंत्र : ॐ भौमाय नमः’ तथा हनुमान चालीसा का जाप
एक राशि में भ्रमण समय : 45 दिवस

मांगलिक योग :
यदि मंगल ग्रह कुण्डली के (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या बारहवें) भाव में पड़ा हो तो वह कुण्डली मांगलिक मानी जाती है।

मंगल – प्रथम भाव में :
यदि मंगल ग्रह कुण्डली के प्रथम भाव या लग्न भाव में पड़ा हो तो वह कुण्डली मांगलिक मानी जाती हैं।
प्रथम भाव में स्थित मंगल जातक के स्वभाव को उग्र बनाता है। जातक ऊर्जा तथा गुस्से से भरपूर होता है।
जातक अपनी माता के लिए परेशानी उत्पन्न करता है।
जातक और उसकी माता, दोनों ही एक दूसरे को नहीं समझते हैं।
दोनों छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते हैं।
जातक को जीवन में अपनी जमीन जायदाद बनाने में बहुत देरी होती है।
अलगाव वाले झुकाव के कारण मंगल ग्रह जातक के शारीरिक सुख भोगने में विघ्न उत्पन्न करते हैं।
जातक के विवाह में देरी होती है।
मंगल देवता स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करते हैं।
मंगल देवता जातक को जिद्दी बनाते हैं।
जिन जातको के लग्न में मंगल होता है, उनके विचार अपने जीवन साथी से नहीं मिलते हैं।
जीवन में अधिक समस्याएँ।
वैवाहिक जीवन में बाधाएं।
शरीर के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।

मंगल – चतुर्थ भाव में :
यदि कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल देवता स्थित हों तो, उस कुण्डली के जातक को मांगलिक माना जाता है।
मंगल देवता माता के साथ रिश्ते में समस्याएँ उत्पन्न करते हैं।
मंगल देवता जमीन जायदाद खरीदने या बनाने में समस्या उत्पन्न करते हैं।
मंगल देवता वाहन की खरीदारी में भी देरी उत्पन्न करते हैं।
जातक का स्वभाव थोड़ा डरपोंक होता हैं।
किसी के साथ भागीदारी में समस्या उत्पन्न होती है।
जीवन साथी के साथ समस्या
विवाह में समस्या
कामकाज में समस्या
जातक के व्यवहार में समस्या
जीवन शैली में समस्या उत्पन्न

मंगल – सप्तम भाव में :
यदि कुण्डली के सप्तम भाव में मंगल देवता स्थित हों तो, उस कुण्डली के जातक को मांगलिक माना जाता है।
स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी
जातक के दृष्टिकोण में समस्या
जातक के व्यवहार में गड़बड़ी
जातक का जिद्दी बनना
जातक की वाणी सम्बन्धी समस्या
जातक की भाषा या बोलचाल में गड़बड़
धन सम्बन्धी समस्या, कहीं धन फसने का योग बन जाता है
जातक का परिवार से दूर या अलग होना

मंगल – अष्टम भाव में :
यदि मंगल देवता कुण्डली के अष्टम भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक माना जाता है।
यहाँ चाहे मंगल देवता का विवाह या वैवाहित जीवन से सम्बन्ध नहीं बनता, परन्तु मंगल का हमारे शरीर का प्रतीक होने के कारण यह इस सम्बन्ध में विशेष भूमिका निभाता है।
विवाह में यदि शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है तो यह विवाह के सम्बन्ध में यह एक नकारात्मक बात हुई।
यदि मंगल ग्रह आठवें भाव में स्थित हों तो दोनों में से एक जीवनसाथी की मृत्यु भी हों सकती है (यदि वह कुण्डली के मारक ग्रह हों तो)।

मंगल बारहवें भाव में :
यदि मंगल देवता कुण्डली के बारहवें भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक माना जाता है क्यों कि मंगल देवता की आठवीं दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है तथा बारहवां भाव शैया सुख का भाव भी माना जाता है।
वैवाहिक-सुख सम्बन्धी समस्या
अनावश्यक खर्चे बढ़ना
जातक का परिवार से विमुख हों जाता है
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या
छोटे भाई-बहन से सम्बन्ध विच्छेद
तर्क-वितर्क की समस्या उत्पन्न होना
जातक के व्यवहार में खराबी
स्वास्थ्य में समस्या
दुर्घटना बीमारी का कारण
लम्बी बीमारी का कारण
मुक़दमे सम्बन्धी समस्या
विवाह होने में देरी होना
भागीदारी में रुकावटें
वैवाहिक जीवन में हलचल मचना

मंगली – भंग योग
अभी तक आपने जाना कि मंगल ग्रह से जातक कुण्डली के अनुसार मांगलिक कैसे होता है। परन्तु यह बात ध्यान देने योग्य है कि मांगलिक योग कुछ परिस्थियों के अनुसार भंग हों जाता है। परन्तु अल्प ज्ञानी ज्योतिष एवं पंडित मांगलिक दोष का परिहार कैसे होता है जानते ही नहीं हैं और लोगों को गुमराह करते हैं। शास्त्रों में बताये गए मंगली भंग योग की जानकारी लेकर आप पाएंगे कि कोई-कोई व्यक्ति ही मांगलिक होता है।

किन-किन स्थितियों में जातक मंगली नहीं होता :
1. जामित्रे च यदा शौरि लग्ने बा हिबुके जथा। अष्टमे, द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्यते।।
(ज्योतिष सर्वस्या)
अर्थात : यदि जन्म कुण्डली में लग्न में, चतुर्थ भाव में, सप्तम भाव में, अष्टम भाव में, द्वादश भाव में शनि देवता विराजमान हों, तो जातक का मंगली भंग योग बनता है या हम कह सकते हैं कि वह जातक मंगली नहीं होता है।

2. अजे लग्ने व्यये चावें पाताले वृश्चिके कुजे। धूने मृगे करकिचाष्टौ भौम दोषो न विद्यते।।
(मु० पारिजात)
अर्थात : मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक राशि का चतुर्थ भाव में, मकर राशि का सातवें, कर्क राशि का आठवें, धनु राशि का मंगल बारहवें स्थान में हो तो मंगली योग नहीं होता।

3. यदि मंगल किसी भी भाव में सूर्य से अस्त हो जाये तो जातक मांगलिक नहीं होता क्यों कि सूर्य से अस्त होने के कारण मंगल ग्रह की किरणे हमारे शरीर तक पहुँचती ही नहीं है।

4. यदि बृहस्पति देवता कुण्डली में कहीं से भी मंगल देवता पर दृष्टि डालें तो मंगल दोष का परिहार हों जाता है। क्यों कि बृहस्पति ग्रह सबसे शुभ ग्रह माना जाता है और उसकी किरणें या दृष्टि में मंगल के कुप्रभाव को सामान्य करने की क्षमता होती है।

5. यदि बृहस्पति मंगल के साथ युति में स्थित हो तो मंगल दोष का परिहार हों जाता है क्यों कि बृहस्पति देवता की शुभता मंगल के कुप्रभाव को सामान्य कर देती है।

6. यदि मंगल बलयुक्त चन्द्रमा की युति में हो तो मंगल दोष का समाप्त हो जाता है क्यों कि मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और चन्द्रमा जल तत्व वाला ग्रह है। जब ये दोनों ग्रह एक ही राशि में पड़े हों तो मंगल के कुप्रभाव सामान्य हो जाते हैं।

7. यदि कुण्डली में मंगल 0° या 29° पड़ा हो तो इसका अर्थ हुआ कि इस कुण्डली में मंगल किसी भी प्रकार का परिणाम देने में समर्थ नहीं है। संक्षेप में कहें तो मंगल दोष कुण्डली में विद्यमान ही नहीं है।

8. यदि मंगल देवता राहु देवता के साथ युति बनाकर कुण्डली में विराजमान हो तो भी मंगल दोष का परिहार होता है। क्यों कि राहु देवता की मंगल देवता से अति शत्रुता के कारण मंगल के कुप्रभाव शान्त हो जाते हैं।

9. कुण्डली मिलान में यदि 28 गुण मिल जाएँ तब भी मांगलिक दोष का परिहार होता है।

10. यह बात अक्सर सुनने में आती है कि यदि लड़की मांगलिक है तो उसका विवाह मांगलिक लड़के के साथ ही होना चाहिए, परन्तु यह बात बिल्कुल गलत है क्यूंकि लड़की की कुण्डली में जिस भाव में मंगल पड़ा हो, लड़के की कुण्डली में उसी भाव में कोई पापी ग्रह पड़ा हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।

11. यदि सातवें भाव का स्वामी कुण्डली में कहीं से भी अपने भाव को देखे तो मांगलिक दोष का परिहार होता है। क्यों कि यदि कोई भी ग्रह अपने भाव को देखता है तो इसका अर्थ होता है कि वह अपने भाव की रक्षा करेगा।

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पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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