नए जल प्रदूषण कानून में कैद की जगह जुर्माने का प्रावधान किया गया है
जल संशोधन विधेयक 2024 से प्रदूषण के खिलाफ संकल्प कमजोर होने की आशंका को रेखांकित करना जरूरी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के हर देश में जल ही जीवन है की विचारधारा को गंभीरता से रेखंकित किया जा रहा है, जो कि न सिर्फ बढ़ते जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से मानवीय जीवन में अनिवार्य संसाधनों को भारी नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इन संसाधनों में मानवीय के कारण भी बहुत विपरीत असर पड़ रहा है इसी को ध्यान में रखते हुए हर देश में जल और पर्यावरण सहित प्रकृति के जुड़े हर मसले पर सैकड़ो कानून बने हुए हैं इसके संबंध में भारत में भी जल प्रदूषण की (रोकथाम और नियोजन) अधिनियम 1977 में पर्यावरण के अनेक नियम व नियम कानून बने हैं, परंतु, चूंकि दिनांक 8 फरवरी 2024 को लोकसभा में जल प्रदूषण (निवाकर निराकरण तथा नियंत्रण) संशोधन विधेयक2024 पर पारित किया गया था जिसे उच्च सदन राज्यसभा ने भी पहले ही 6 फरवरी 2024 को पारित कर लिया था।
यह दोनों सदनों में पारित हो चुका है, मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि इस संशोधित विधेयक से जल प्रदूषण में छोटे अपराधियों को अब जेल की सजा नहीं होगी, उससे बाहर कर दिया गया है सिर्फ जुर्माना ही लगेगा, इस नई विचारधारा से नागरिक व्यवसाई और कंपनियां जिनकी तकनीकी या प्रक्रियात्मक चक्र के लिए बिना डर के कारण के काम करेगी जो कि प्रदूषण के खिलाफ संकल्प में बाधा उत्पन्न करने की संभावना को रेखांकित करता है, जिस पर पर्यावरण प्रेमियों की नजर है। अब जरूरत है इसे नियमित करने के लिए एक सख्त नियमावली बनाई जाए ताकि पर्यावरण व जल प्रदूषण के प्रति इनमें डर बना रहे क्योंकि जल संशोधन विधेयक 2024 में जल प्रदूषण के छोटे अपराधों को जेल से मुक्त रखा है व केवल जुर्माना किया गया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, जल संशोधन विधेयक 2024 से प्रदूषण के खिलाफ संकल्प कमजोर होने की आशंका को रेखांकित किया करना बहुत जरूरी है।
साथियों बात अगर हम जल संशोधन विधेयक 2024 की करें तो, पहले 6 को राज्यसभा में फिर 8 फरवरी 2024 को संसद में जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) संशोधन विधेयक 2024 को मंजूरी दी थी, जिसमें जल प्रदूषण से संबंधित छोटे अपराधों को जेल की सजा की श्रेणी से बाहर करने, केंद्र को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों की सेवा शर्तों को निर्धारित करने में सक्षम बनाने और औद्योगिक संयंत्रों की कुछ श्रेणियों को वैधानिक प्रतिबंधों से छूट देने का प्रावधान किया गया है।लोकसभा में आज विधेयक पर चर्चा और पर्यावरण मंत्री के जवाब के बाद इस विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दी गई। गत छह फरवरी को इसे राज्यसभा में पारित किया गया था। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए पर्यावरण मंत्री ने कहा कि राज्यों के प्रदूषण बोर्डों को किसी तरह का निर्देश नहीं दिया जा रहा है, बल्कि सिर्फ कुछ नियम तय किए जा रहे हैं। मंत्री ने कहा कि पारदर्शिता और आम लोगों की सहायता करने वाले दिशा निर्देश ही जारी किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सिर्फ हरित उद्योगों को इस कानून से छूट होगी, लेकिन वह नियमों के तहत होगी स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण को लेकर चेतना एवं जागरुकता फैलाने की जरूरत है।
सरकार नमामि गंगे परियोजना को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सभी को मिलकर इस परियोजना को एक जन आंदोलन बनाना चाहिए। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित किया।पर्यावरण, मंत्री ने विधेयक पर हुई चर्चा के जवाब में कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण एक साथ चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन जीने में आसानी और व्यापार करने में आसानी में सामंजस्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधेयक के प्रावधानों से जल प्रदूषण से संबंधित विभिन्न मुद्दों से निपटने में अधिक पारदर्शिता आएगी। विधेयक जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974 में संशोधन करेगा। यह अधिनियम जल प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना करता है।
विधेयक कई उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और जुर्माना लगाता है। यह शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा। अधिनियम के अन्तर्गत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाता है। विधेयक के प्रावधान के अनुसार, केंद्र सरकार अध्यक्ष के नामांकन के तरीके और सेवा की शर्तों को निर्धारित करेगी। विधेयक जल निकायों में प्रदूषणकारी पदार्थों के निर्वहन से संबंधित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दस हजार रुपये से 15 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए बदलाव लाए गए हैं।
साथियों बात अगर हम हम जल प्रदूषण के छोटे अपराधों को जेल शैली से हटाने की करें तो, जल प्रदूषण से संबंधित छोटे अपराधों में अब जेल की सजा नहीं होगी। राज्यसभा ने इससे संबंधित जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने विधेयक पर चर्चा के जवाब में संशोधनों से प्रदूषण के खिलाफ संकल्प कमजोर होने की आशंका को खारिज करते हुए कहा कि पुराने कानून में सामान्य नियमों के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान था और कुछ उल्लंघन अनजाने में हो जाते थे। इसे देखते हुए नए विधेयक में कैद की जगह जुर्माने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में आपराधिक प्रावधानों को तर्कसंगत बनाने और यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव है कि नागरिक, व्यवसाय और कंपनियां मामूली, तकनीकी या प्रक्रियात्मक चूक के लिए कारावास की सजा के डर के बिना काम करें। विधेयक में फैसला करने वाली इकाई का और उसके फैसले से संतुष्ट न होने की स्थिति में अपीलीय अथॉरिटी के रूप में एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दी जा सकती है।
दरअसल, अपराध की प्रकृति के अनुरूप ही दंड का प्रावधान होगा। संशोधन विधेयक में नियमों के उल्लंघन पर प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माने का प्रावधान है। इस राशि से एक विशेष कोष बनेगा, जिसका प्रयोग जल संरक्षण के लिए होगा। इसकी 75 फीसदी रकम राज्यों को दी जाएगी। इसके अलावा कई उल्लंघनों को आपराधिक श्रेणियों से हटाकर उसमें जुर्माने का प्रावधान किया गया है।राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से बिना अनुमति उद्योग स्थापित करने और संचालित करने पर छह साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। जुर्माना 10 हजार रुपये से लेकर 15 लाख रुपये तक हो सकता है।विपक्ष ने कहा है कि उद्योगों को ध्यान रखना चाहिए कि उनके इस्तेमाल में आ रहे पानी से प्रदूषण न फैले। तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार ने विधेयक में खनन जैसे विषय को लेकर स्थितियां स्पष्ट न होने के मुद्दे को उठाया। जल राज्य का विषय है, मिशन के तहत परिकल्पित विभिन्न निगरानी व्यवस्थाओं के माध्यम से रिपोर्ट किए गए आंकड़ों और जमीनी हकीकत में यदि कोई विसंगतियां पाई जाती हैं, तो उन्हें अपेक्षित तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों के साथ उठाया जाता है।
साथियों बात अगर हम इस अधिनियम के उद्देश्यों की करें तो अधिनियम में जल प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का प्रावधान है।
नए बदलाव अपराध मुक्तीकरण : छोटे मोटे अपराधों को अपराध मुक्त करना, निरंतर उल्लंघनों के लिए कारावास के स्थान पर आर्थिक दंड देना। नामित अधिकारी, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव या राज्य सरकार के सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे, दंड के निर्णय की निगरानी करेंगे।
आवेदन करने वाले राज्य : यह शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा। केंद्र सरकार अध्यक्ष के नामांकन के तरीके और सेवा की शर्तों को निर्धारित करेगी। अधिनियम के तहत, राज्य सरकार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष को नामित करती है।
जुर्माना : विधेयक जल निकायों में प्रदूषणकारी पदार्थों के निर्वहन से संबंधित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दस हजार रुपये से 15 लाख रुपये के बीच जुर्माना लगाता है। ये बदलाव औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए लाए गए हैं। विधेयक नए आउटलेट, डिस्चार्ज और सीवेज निपटान से संबंधित नियमों का पालन न करने पर सख्त दंड लगाता है। एकत्र किए गए जुर्माने को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत स्थापित पर्यावरण संरक्षण कोष के लिए नामित किया गया है। इस अधिनियम में 1988 में संशोधन किया गया था। जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) उपकर अधिनियम 1977 में अधिनियमित किया गया था, ताकि कुछ प्रकार की औद्योगिक गतिविधियों को संचालित करने वाले और संचालित करने वाले व्यक्तियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी पर उपकर लगाने और संग्रह करने का प्रावधान किया जा सके। यह उपकर जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत गठित जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्रीय बोर्ड और राज्य बोर्डों के संसाधनों को बढ़ाने की दृष्टि से एकत्र किया गया है। अधिनियम को आखिरी बार 2003 में संशोधित किया गया था।
अतः अगर हम अपरूप पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जल प्रदूषण के छोटे अपराध अब जेल की सजा की श्रेणी से बाहर हुए, सिर्फ जुर्माना लगेगा। जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) संशोधन विधेयक 2024 अब जेल की जगह जुर्मानें का प्रावधान, जल संशोधन विधेयक 2024 से प्रदूषण के खिलाफ संकल्प कमजोर होने की आशंका को रेखांकित करना जरूरी है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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