सावित्रीबाई फुले जयंती पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना का आभासी संगोष्ठी संपन्न

शिक्षा, समानता और समाजसेवा की पक्षधर क्रान्ति ज्योति सावित्रीबाई फूले रही – डॉ. चौधरी

उज्जैन। क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा, समानता और स्वावलंबन को सर्वोपरि महत्व दिया। सावित्रीबाई फुले भारत की वह पहली महिला थी जिसकी सहायता से पहले बालिका स्कूल की स्थापना हुई। इन्हें मराठी काव्य का अग्रदूत भी कहा जाता है। जो शिक्षा के साथ विधवा विवाह, नारी उत्थान एवं समाजसेवा में अग्रणी रही। उक्त आशय का उद्गार राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की 282वीं आभासी संगोष्ठी में सावित्रीबाई फुले जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विशिष्ट वक्ता के रूप में व्यक्त किये गये। संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने बताया कि सावित्रीबाई फुले एक युग स्त्री थी, राष्ट्र की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री रही है। उनका मानना है कि शिक्षा ही मानव का गहना हैं सावित्रीबाई फुले ने मराठी समाज को जाग्रत किया तथा अस्पृश्यता, दहेज, विधवा समस्या पर महत्वपूर्ण कार्य किया।

विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से 6 बालिकाओं को पाठशाला में प्रवेश किया। दलित छात्राओं के लिये खोले गए उस विद्यालय से समाज में खलबली मचा दी। लोगों में विद्यालय खुलने से आक्रोश था। निम्न जाति की बालिकाएं पढ़ेगी और महिला शिक्षिका उन्हें पढ़ाएगी यह तो समाज के बिरूद्ध बतलाया परन्तु सावित्रीबाई अपने कार्य में डटी रही । धीरे-धीरे विरोध के पश्चात् सफलता मिली। विशिष्ट वक्ता डॉ. शहेनाज शेख राष्ट्रीय उप महासचिव नांदेड ने वक्तव्य में बताया कि शिक्षा स्वर्ग के द्वार खोलती है। उस समय समाज में उंचा जाति के लोगो द्वारा दलितो के प्रति दुर्व्यवहार से व्यथित रहे। फुले दम्पत्ति ने हिम्मत नहीं हारी अपने सुमार्ग पर आगे बढ़ते रहे। विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अरूणा शुक्ला ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने सन् 1854 में भारत का प्रथम अनाथ आश्रम और बालहत्या प्रतिबंधक ग्रह स्थापित किया। 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। दलित उत्थान में पूर्ण योगदान, विधवा पुनर्विवाह, कन्या शिशु हत्या और सतीप्रथा के विरूद्ध आवाज उठायी। विशिष्ट वक्ता डॉ. शाकिर शेख प्रदेश संयोजक महाराष्ट्र पुणे ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंग्रेजी हुकूमत का साहस से मुकाबला करते हुए तत्कालीन में बालविवाह, देवदासी प्रथा, जरठ विवाह, केशवपन जैसी कुरीतियों को समाप्त करने में अग्रणी रही।

विशिष्ट वक्ता राष्ट्रीय संयुक्त सचिव शैली भागवत इन्दौर ने बताया कि समाज सुधारक के रूप में सावित्रीबाई को अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा। संगोष्ठी के शुभारम्भ में सरस्वती वंदना की प्रस्तुति डॉ. संगीता पाल राष्ट्रीय उपमहासचिव ने दी। स्वागत भाषण डॉ. प्रिया मयेकर थाणे ने दिया एवं अतिथि परिचय संगीता केसवानी राष्ट्रीय कार्यालय सचिव ने दिया। संगोष्ठी की प्रस्तावना राष्ट्रीय सचिव रजनी प्रभा पटना ने देते हुए बताया कि सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के नयागांव में हुआ। आपका विवाह 9 वर्ष की आयु में ज्योतिराव फुले उम्र 13 वर्ष के साथ हुआ। पति की प्रेरणा से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा नारी शिक्षा में प्रमुख भूमिका निभायी। संगोष्ठी में रश्मि चौबे, अनसूया अग्रवाल, डॉ. अरूणा सराफ, डॉ. मुक्ता कौशिक आदि ने भी विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय सचिव श्वेता मिश्र ने किया एवं आभार शैली भागवत ने माना।

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