पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : प्रत्येक मास 2 चतुर्थी मनाई जाती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी और विनायक चतुर्थी कहते हैं। पौष मास में शुक्ल पक्ष की विनायक वरद चतुर्थी 6 जनवरी को मनाई जाएगी। वरद चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी की पूजा-उपासना करने का विधान है। भगवान गणेश को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का अवतरण हुआ था। इसी कारण चतुर्थी, भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय रही है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करते हैं। इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है। गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला तथा विघ्नहर्ता माना जाता है। जो भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं उनके घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
वरद चतुर्थी की तिथि :
चतुर्थी तिथि आरंभ: 5 जनवरी, बुधवार दोपहर 02: 34 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त: 6 जनवरी, गुरुवार दोपहर 12: 29 मिनट पर
पूजा मुहूर्त : 6 जनवरी, गुरुवार प्रातः11:15 मिनट से दोपहर 12: 29 मिनट तक
वरद विनायक चतुर्थी व्रत कथा : एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। समय व्यतीत करने के लिए पार्वती माता ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने के लिए कहा। माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हार-जीत का फैसला कौन करेगा, तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाया और उस पुतले से कहा कि हम चौपड़ खेल रहे हैं, तुम यहां पर बैठकर हमारी हार-जीत का फैसला करना और यह बताना हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता। उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती चौपड़ खेलने लगे। यह खेल तीन बार खेला गया और तीनों ही बार माता पार्वती जीत गई। खेल समाप्त हो गया उसके बाद बालक से कहा गया कि बताएं कि कौन हारा है और कौन जीता है। उस बालक ने महादेव को विजयी घोषित किया। बालक की यह बात सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई उन्होंने बालक को लंगड़ा और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया।
यह सुनकर बालक माता पार्वती से क्षमा मांगने लगा तब माता पार्वती ने उस बालक से कहा कि यहां पर गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती भगवान शिव जी के साथ कैलाश पर्वत पर लौट गईं। एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं ने उस बालक को श्री गणेश जी के व्रत की विधि बताई। उस बालक ने 21 दिन तक लगातार गणेशजी का व्रत किया। बालक की भक्ति को देखकर भगवान गणेश प्रसन्न हो गए और उन्होंने बालक से कहा कि वह वरदान मांगे उस बालक ने भगवान श्री गणेश से कहा “हे विनायक मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों पर चल कर अपने माता- पिता के पास कैलाश पर्वत पहुंच सकूं और वे यह देखकर प्रसन्न हो। तब से यह व्रत सभी मनोकामना को पूरा करने वाला माना जाता है।
वरद चतुर्थी पूजा विधि : चतुर्थी वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगाजल मिश्रित पानी से स्नान करें।
इसके उपरांत व्रत संकल्प लें।
इसके बाद पंचोपचार विधि से पूजा करें।
श्री गणेश को फल, पुष्प, मोदक आदि अर्पित करें।
इसके उपरांत इस मंत्र का उच्चारण करें-
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
यदि आप उपवास रखना चाहते हैं तो फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं।
सायंकालीन आरती के उपरांत आप व्रती उद्यापन कर सकते हैं।
जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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