जाने कहां खो गए ऐसे लोग

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

नहीं आज उनका किसी का भी कोई जन्म दिन नहीं है न ही उनकी निजि ज़िंदगी की बात है। मगर ये दिन उनकी याद के बिना पूरा नहीं हो सकता है। आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के बहाने ऐसे कई लोग याद आये हैं। 25 जून 1975 को आपत्काल घोषित हुआ उस से अधिक महत्व इस बात है कि आज़ादी के पहली बार किसी ने अपने देश की अपनी ही चुनी हुई सरकारों के ख़िलाफ़

शांतिपूर्वक अंदोलन करने की राह दिखलाई थी और दूर से तमाशा देख कर नहीं खुद इक ज्वाला में कूदकर उस आग को जलाया था जो आज भी हमारे सीनों में जलती है दुष्यंत कुमार के शब्दों में। मुझे अफ़सोस होता है जब लोग गांधी नेहरू भगत सिंह लक्ष्मी बाई जैसे कितने महान लोगों की बात करते हैं मगर जेपी कौन थे उन जैसे कितने लोग जो हमेशा अपने आदर्शों विचारों की कठिन डगर पर बिना किसी स्वार्थ चलते रहे जीत हार की चिंता नहीं की न ही कौन साथ चलता है कौन छोड़ जाता है इसकी परवाह की।

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है।
सारी दुनिया में गरीबों का लहू बहता है
हर ज़मीं मुझको मेरे खून से तर लगती है।

Rekhta रेख़्ता में मुझे तलाश करने पर जाँनिसार अख़्तर के ये अल्फ़ाज़ नहीं मिले। आपको जावेद अख़्तर को लेकर मालूम है उनके वालिद क्योंकि शोहरत और सफ़लता की बुलंदी पर नहीं थे लोग नहीं जानते हैं।

कुछ ऐसा ही मजाज़ लखनवी जी को लेकर है। असरार उल हक़ मजाज़ , महिलाओं के लिए उनसे अच्छा पैग़ाम किसी ने दिया हो मुझे नहीं दिखाई दिया मीर ग़ालिब से आज तक। दो शेर उनकी नज़्म से भी पढ़ते हैं।

तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल को इक परचम बना लेती तो अच्छा था।
तेरा ये ज़र्द रुख ये खुश्क लब ये वहम ये वहशत
तू अपने सर से ये बदल हटा लेती तो अच्छा था।

आपको तो उन सत्येंद्र दुबे का भी नाम याद नहीं जो सच की खातिर क़त्ल कर दिया गए। ये 2003 की बात है 27 नवंबर को 30 साल की आयु में अपने जन्म दिन को ही। कारण उन्होंने इक पत्र लिखा था अटल बिहारी वाजपेयी जो को पीएमओ से गोपनीय खत पहुंचा भ्रष्टाचार करने वालों तक जिन्होंने उनको क़त्ल कर अपना रास्ता साफ कर दिया। राष्ट्रीय राजमार्ग योजना की बात है जिन बड़े खुली सड़कों पर आज भी आप शान से चलते हैं कभी सोचा किसी ईमानदार आईएएस अधिकारी का खून बहा होगा उन्हीं पर।

कोई यकीन करेगा ऐसे लोग जो उसूलों की राह पर बिना डरे बिना विचलित हुए चलते रहे जबकि उनको खुद कोई पद कोई तमगा कोई भी सत्ता का अधिकार नहीं चाहिए था। जयप्रकाश नारायण जी को कितने बड़े बड़े पद प्रस्ताव सामने रखे गए मगर उनको कोई पद नहीं चाहिए था। उनको देश की गरीबों की शोषण की सत्ता के अनुचित आचरण के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करनी थी। जो सोये हुए हैं उनको जगाना था मगर क्या हम जागे हैं या फिर किसी नशे की गहरी नींद में बेसुध हैं।

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