कोलकाता। यूनिसेफ और पश्चिम बंगाल सरकार ने नवजात शिशुओं के स्तनपान को प्रोत्साहित करने में पिता की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है। इस पहल का उद्देश्य नवजात शिशुओं की माताओं को उनके पहले छह महीनों में स्तनपान के लिए प्रेरित करना है।
महिला और बाल विकास एवं सामाजिक कल्याण विभाग की मंत्री डॉ. शशि पांजा के अनुसार, इस योजना के तहत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने नवजात शिशुओं के पिता और अन्य परिवार के सदस्यों के साथ स्तनपान के फायदों पर चर्चा शुरू कर दी है।
डॉ. पांजा ने कहा, “स्तनपान केवल माताओं के साथ चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए। इस जागरूकता अभियान को बच्चे के गर्भधारण के समय से ही शुरू करना चाहिए ताकि पूरा परिवार मां को स्तनपान के लिए सहज बनाने में सहयोग कर सके।”
उन्होंने बताया कि राज्य का महिला, बाल विकास और सामाजिक कल्याण विभाग इस दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इसके पीछे की मुख्य वजह यह है कि 53 प्रतिशत माताओं को अब भी पहले छह महीनों में अपने बच्चों को पूरी तरह से स्तनपान कराने की आवश्यकता है।
डॉ. पांजा ने इस बात पर भी जोर दिया कि डॉक्टरों और नर्सों को जन्म के पहले घंटे के भीतर शिशु को कोलोस्ट्रम (पहला दूध) देने के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने में विशेष भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सी-सेक्शन के मामलों में भी, जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करना आवश्यक है, चाहे वह सरकारी हो या निजी अस्पताल, इसमें लेबर रूम या ऑपरेशन थिएटर में मौजूद अन्य लोगों का सहयोग जरूरी है।
यूनिसेफ के पश्चिम बंगाल प्रमुख, डॉ. मोहम्मद मंज़ूर हुसैन ने नवजात शिशुओं की देखभाल में पिता की भागीदारी बढ़ाने का एक दिलचस्प उदाहरण साझा किया। उन्होंने बताया, “कुछ साल पहले दक्षिण-पूर्व एशिया के एक देश में, पिता से शिशुओं की देखभाल के लिए अपनी छाती का उपयोग करने के लिए कहा गया था।
ताकि उनकी भागीदारी बढ़ाई जा सके। स्तनपान एक मां और बच्चे के बीच एक मानसिक बंधन बनाता है और यह गैर-मानव दूध को उबालने के लिए ईंधन जलाने से होने वाले अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन को भी रोकता है।”
बंगाल ऑब्सटेट्रिक और गायनकोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष, डॉ. बसाब मुखर्जी ने कहा कि स्तन का दूध बच्चे का “पहला टीका” है, क्योंकि यह पोषक तत्वों और एंटीबॉडी से बेहद समृद्ध होता है।
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