ट्रंप शासन 2.0 अमेरिकी फर्स्ट- अमेरिका का चला आर्थिक हंटर- पूरी दुनिया को आर्थिक सहायता देने पर रोक!

अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने विदेशों को दी जाने वाली सभी आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है
अमेरिकी राष्ट्रपति अपने चुनावी वादों को पूरा करते हैं तो वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव होने की संभावना- अधिवक्ता के.एस. भावनानी

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनिया के हर देश की नजर अमेरिका के ट्रंप शासन 2.0 की नीतियों रणनीतियां व अमेरिकी पर लगी हुई है, क्योंकि ट्रंप ने जो चुनावी प्रचार के समय वादे किए थे उन्हें अमली जान जामा पहनाने के लिए रूपरेखा तैयार कर आदेशों पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। वे अमेरिकी फर्स्ट की नीतियों पर तेजी से काम कर रहे हैं, जिससे हम देख रहे हैं कि कई देशों के शेर धड़ाम हो रहे हैं। अब दो दिन पूर्व ही ट्रंप शासन 2.0 अमेरिकी फर्स्ट की नीति अनुसार आर्थिक हंटर चलाकर मिस्त्र व इसराइल को छोड़कर, पूरी दुनिया की आर्थिक सहायता रोक दी है, इसे आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने विदेशों को मिलने वाली सभी प्रकार की मदद रोक दी है। ट्रंप अपने चुनावी वादों को पूरा करते हैं तो वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

साथियों बात अगर हम ट्रंप प्रशासन 2.0 द्वारा दुनिया की आर्थिक मदद बंद करने की करें तो, अमेरिका दुनिया भर के करीब 180 देशों को किसी ना किसी रूप में आर्थिक मदद करता रहा है, ये आर्थिक मदद सैन्य सपोर्ट से लेकर मानवीय मदद और इकोनॉमिक डेवलपमेंट फंड्स को लेकर होती रही है। वर्ष 2022 में अमेरिकी ने इस मदद के तौर पर पर करीब 64,000 करोड़ बांटे लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप ने इसे बंद करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि अमेरिका केवल इजरायल और मिस्र की ही आर्थिक मदद जारी रखेगा बाकि सभी देशों को ये मदद बंद कर दी जाएगी। अब सवाल ये उठता है कि आखिर अमेरिका ने इन दोनों देशों को ही वित्तीय मदद बंद क्यों नहीं की, इजरायल से तो अमेरिका की बेहतरी समझ में आती हैं, लेकिन मिस्र से ऐसा याराना क्यों? ये सवाल तो उठता ही है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री ने अधिकांश विदेशी सहायता निलंबित करने की घोषणा की लेकिन महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में इजरायल और मिस्र दोनों को सैन्य सहायता से छूट दी।

अमेरिका हर साल मिस्र को करीब 1.3 बिलियन डॉलर सैन्य निधि के तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए देता है। दोनों देश मध्य पूर्व में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अमेरिका ईरान और विभिन्न आतंकवादी समूहों से होने वाले खतरों का मुकाबला करने के लिए सैन्य सहायता को महत्वपूर्ण मानता है, जिससे ये देश हर तरह के आतंकवाद का सामान कर सकें। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने कुछ क्षेत्रों को इन पाबंदियों से छूट दी है, जैसे आपातकालीन खाद्य सहायता और इसराइल व मिस्र को दी जाने वाली सैन्य मदद, विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी अधिकारियों और दूतावासों को इस संबंध में नोटिस भेजा है, यह नोटिस ट्रम्प के शपथ ग्रहण के बाद जारी किए गए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के बाद आया है, इसमें विदेश नीति की समीक्षा करने तक 90 दिनों के लिए विदेश में दी जाने वाली सभी तरह की मदद पर रोक लगा दी गई है।

साथियों बात अगर हम मिस्त्र व इसराइल को सहायता शुरू रखने की करें तो, अमेरिका ने पूरी दुनिया की वित्तीय सहायता रोकी लेकिन इजरायल और मिस्र को इससे अलग रखा इसकी मध्य पूर्व में अमेरिकी हित और इसे देखते इन दोनों देशों का रणनीतिक महत्व है। अमेरिका इजरायल को सालाना करीब 3.3 बिलियन डॉलर की मदद देता है, ये आर्थिक मदद सैन्य सहायता से भी जुड़ी है।1979 में मिस्र की इजरायल के साथ शांति संधि हुई, जिससे इस अस्थिर क्षेत्र में इजरायल को मिस्र का ये भरोसा मिला कि वो उस पर कार्रवाई नहीं करेगा, इससे मध्य पूर्व अमेरिकी प्रभाव को मजबूत करने में भी मदद मिली। मिस्र के लिए अमेरिकी सैन्य सहायता चरमपंथ से लड़ने और आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के उसके प्रयासों का समर्थन करती है, जो राष्ट्रीय स्थिरता और क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ व्यापक लड़ाई दोनों के लिए महत्वपूर्ण है,मिस्र को अमेरिकी सैन्य सहायता मिस्र और इजरायल के बीच शांति संधि से निकटता से जुड़ी हुई है, जो 1979 में हस्ताक्षर किए जाने के बाद से क्षेत्रीय शांति की आधारशिला रही है।

ये संबंध अरब राज्यों और इजरायल के बीच शत्रुता को रोकने में मदद करता है, जिससे व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान मिलता है। अमेरिकी सैन्य सहायता मिस्र के सशस्त्र बलों को मजबूत बनाती है, जिससे वे अमेरिकी सैन्य इकाइयों के साथ प्रभावी ढंग से काम कर पाते हैं, यह सहायता मिस्र की सेना के आधुनिकीकरण में मदद करती है, जिससे उसे उन्नत हथियार और तकनीक हासिल करने में मदद मिलती है। सैन्य सहायता अमेरिका और मिस्र के बीच एक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करती है, जो मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों के लिए महत्वपूर्ण है। क्षेत्र में अमेरिकी रसद और सैन्य अभियानों के लिए मिस्र का सहयोग महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से स्वेज नहर तक पहुंच और अमेरिकी बलों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ओवर फ़्लाइट मार्गों के संबंध में, यह सहायता मिस्र के आंतरिक सुरक्षा तंत्र का भी समर्थन करती है, जिससे राजनीतिक अशांति और सामाजिक चुनौतियों के बीच व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती है।

साथियों बात अगर हम विशेष रूप से बांग्लादेश की आर्थिक सहायता बंद करने की करें तो, अब सवाल है कि इस फैसले के बाद बांग्लादेश के विकास पर कितना बड़ा असर पड़ेगा?अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की सरकार ने रविवार को बांग्लादेश को दी जाने वाले सभी तरह की मदद बंद करने का फैसला किया है। यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट ने बांग्लादेश में अपनी सभी परियोजनाओं को बंद करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने विदेशी देशों को मिलने वाली सभी मदद पर रोक लगा दी है। इसमें बांग्लादेश भी शामिल है जो फिलहाल आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ट्रंप सरकार के इस आदेश के बाद दुनियाभर में स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास, रोजगार से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स के बंद होने का खतरा बढ़ गया है। दरअसल, अमेरिका इन सभी विदेशी प्रोजेक्ट्स के लिए सबसे ज्यादा फंड्स मुहैया कराता है। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने कुछ क्षेत्रों को इन पाबंदियों से छूट दी है, जैसे आपातकालीन खाद्य सहायता और इसराइल व मिस्र को दी जाने वाली सैन्य मदद।

विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी अधिकारियों और दूतावासों को इस संबंध में नोटिस भेजा है। यह नोटिस ट्रम्प के शपथ ग्रहण के बाद जारी कए गए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के बाद आया है, इसमें विदेश नीति की समीक्षा करने तक 90 दिनों के लिए विदेश में दी जाने वाली सभी तरह की मदद पर रोक लगा दी गई है। आर्थिक संकट से जूझ रहा है बांग्लादेश को मदद ऐसे समय में रोकी गई है जब बांग्लादेश आर्थिक तंगी से जूझ रह है। वर्ल्ड बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए बांग्लादेश के लिए जीडीपी ग्रोथ के पूर्वानुमान को 0.1 प्रतिशत घटाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया है। महंगाई दर 10 प्रतिशत के करीब पहुंच गई है, लगातार बढ़ता बजट घाटा, घटता विदेशी मुद्रा भंडार, करेंसी की वैल्यू में गिरावट और बढ़ती आय असमानता जैसे संकट पहले से बांग्लादेश के लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं। ऐसे में जानकारों का कहना है कि अमेरिकी मदद बंद होने से बांग्लादेश की मुसीबत और ज्यादा बढ़ सकती हैं। यहां कुछ बेहद अहम प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जैसे खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रम, जो दुनिया भर में मशहूर हैं, इसके साथ ही लोकतंत्र और सुशासन, बुनियादी शिक्षा और पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों पर भी काम हो रहा है।

साथियों बात अगर हम ट्रंप की अमेरिकी फर्स्ट की नीति की करें तो, आज जब डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से अमेरिका की कमान संभाल ली है, तो उनके प्रशासन के जिस पहलू पर बारीकी से नजर रखी जाएगी। वो उनकी विदेश नीति है, अपनी चुनावी रैलियों, मीडिया के साथ संवाद और कैबिनेट के लिए चुने गए साथियों के जरिए ट्रंप ने एक अपेक्षित विश्व दृष्टि और ख़ास तौर से अमेरिका के प्रमुख प्रतिद्वंदी चीन के प्रति नजरिए को सामने रखा है। हालांकि, जब बात अमेरिका की अगुवाई वाली कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय विकास की परियोजनाओं को लेकर ट्रंप के रुख़ की बात है, तो उनका नजरिया साफ नहीं है।

हालांकि, विश्लेषकों के लिए ट्रंप का पहला कार्यकाल एक ऐसा असरदार ढांचा है, जिसके माध्यम से वो विदेशी सहायता और कनेक्टिविटी को लेकर ट्रंप की नीतियों और उन नए व्यापारिक मार्गों की प्रासंगिकता का अंदाजा लगा सकते हैं, जिनमें अमेरिका शामिल है। ट्रंप अपने चुनावी वादों को लागू करने में जुट गए हैं। उनका सबसे प्रमुख वादा है अमेरिका को फिर से महान बनाना। अगर ट्रंप पूरे दमखम से इस वादे को पूरा करने का प्रयास करते हैं तो यह तय है कि वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव होंगे। यह बदलाव आर्थिक, रक्षा के साथ कूटनीतिक रिश्तों को भी नए सिरे से परिभाषित करेंगे। अमेरिका के प्रमुख रणनीतिक सहयोगी और उभरती वैश्विक ताकत के तौर पर भारत को भी इस बदलाव से गुजरना होगा। बता दें दिनांक 27 जनवरी 2024 को ही ट्रंप मोदी की संचार माध्यमों से बातचीत हुई है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ट्रंप शासन 2.0 अमेरिकी फर्स्ट-अमेरिका का चला आर्थिक हंटर- पूरी दुनिया को आर्थिक सहायता देने पर रोक! अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने विदेशों को मिलने वाली सभी आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है, अमेरिकी राष्ट्रपति अपने चुनावी वादों को पूरा करते हैं तो वैश्विक परिदृश्य में बड़े बदलाव होने की संभावना हैं?

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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