दार्जिलिंग का घुम है देश में सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन का नाम
प्रख्यात अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन ने भी ट्वाय ट्रेन की प्रशंसा की थी…
श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ । चलिए आज मैं इस श्रृंखला में आपको पर्वत-रानी दार्जिलिंग के घुम रेलवे स्टेशन के चंद जाने-अनजाने तथ्यों से अवगत कराता हूं… घुम, पहाड़ की गोद में बसा एक गांव। कहते हैं कि जाड़े के दिनों में यहां इतना गहरा घना कोहरा छा जाता है कि बिल्कुल सामने खड़ा आदमी भी दिखाई नहीं देता, ओझल हो जाता है, गुम हो जाता है। इसलिए इस जगह का नाम गुम पड़ा और कालांतर में गुम बदलकर घुम बन गया। आज यह स्थान घुम नाम से जाना जाता है। आपको जानकर अचरज हो सकता है कि घुम रेलवे स्टेशन दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन से भी ऊंचे स्थान पर अवस्थित है। दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन समुद्र तल से 2,042 मीटर की ऊंचाई पर है, जबकि घुम रेलवे स्टेशन 2,258 मीटर की ऊंचाई पर है।
बताता चलूं कि घुम रेलवे स्टेशन भारत में सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है। साथ ही दुनिया का दूसरा ऐसा रेलवे स्टेशन है जहां इतनी ऊंचाई पर आज भी भाप के इंजन द्वारा रेलगाड़ी (ट्वाय ट्रेन) चलती है। यह ट्वाय ट्रेन सन् 1881 से चली आ रही है और इसे 5 दिसंबर सन् 1999 में यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में भी शामिल किया जा चुका है। इस रेलवे का आधिकारिक नाम दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (डीएचआर) है।
यह ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक 88 किलोमीटर की दूरी तय करती है। इनके बीच कुल 12 रेलवे स्टेशन हैं। इस विश्व प्रसिद्ध ट्वाय ट्रेन में सफ़र करने पर अद्भुत एवं अपूर्व आनंद का अनुभव होता है। जिसे सफ़र करने वाला लंबे समय तक अपनी यादों में संभाल कर अवश्य रखता है।
प्रख्यात अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन जब सन् 1896 में दार्जिलिंग आए थे तब उन्होंने ट्वाय ट्रेन के सफर का आनंद लिया था। सफ़र के बाद उन्होंने कहा था, “It is the most enjoyable day I have spent on earth.” (यह सबसे सुखद दिन है जो मैंने पृथ्वी पर बिताया है)। कभी समय निकालकर दार्जिलिंग आइएगा तभी ढेरों सुखद अनुभवों से गुजरिएगा और आप मेरी पंक्तियों की सच्चाई जान पाएंगे।