किरण नांदगाँवकर, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) : टोक्यो ओलंपिक शुरु होने से पहले मैने अखबार में उड़न परी पीटी उषा का कॉलम पढ़ा था। उसमें उड़न परी ने साफ लिखा था की हमें इस बार के ओलंपिक में भी देश के खिलाड़ियों से ज्यादा पदक की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। लेकिन उन्होंने यह जरुर लिखा था की अब तक का हमारा ओलंपिक में जो सबसे बेस्ट 6 पदक का प्रदर्शन रहा है उससे दुगने पदक इस बार टोक्यो ओलंपिक में मिलने की संभावना है। उडन परी ने निशानेबाजी, बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और एथलेटिक्स में पदकों की उम्मीद जताई थी।
निशानेबाजी में उषा ने चार पदक की जीत की उम्मीद लगाई थी। अब आज ओलंपिक के नौवे दिन के खेल खत्म हो चूके है और भारत के नाम है सिर्फ 1 पदक। भारत आज पदक तालिका में 60 वे स्थान पर है। यह स्थान प्रतिदिन नीचे खिसकता जा रहा है। पीटी उषा हो या कोई अन्य भारतीय खेल सैलिब्रिटी सभी के अनुमान, आकलन औंधे मुंह गिरे हैं एक बार फिर इस ओलंपिक में।
पदकों की उम्मीद यदि थी भी तो कोई दो दर्जन पदक इसी ओलंपिक में हमकों मिल जाऐंगे यह किसी को भी नहीं थी। क्योंकि उंगली पर गिने-चूने ऐसे खिलाड़ी हमारे पास है जिनसे पदक की उम्मीद थी। वैसे तो भारत की ओर से ओलंपिक में 128 खिलाडियों का दल गया है, लेकिन उम्मीद पदक की ढंग से दस-बारह खिलाडियों से भी नहीं थी, हमे ही नहीं जिन स्टार खिलाडियों ने इससे पूर्व के ओलंपिक में भाग लिया था उनको भी और हुआ वही।
आज की तारीख तक सिर्फ एक पदक टिमटिमा रहा है हमारे महान देश के नाम के आगे। ओलंपिक के दूसरे ही दिन जिसे किसी ने भी नोटिस नहीं किया उस छुटकी सी मीराबाई चानू ने सीधे रजत दिलवा दिया। उसके बाद जिन गिने-चुने धुरंधरों से आकाश भर उम्मीद थी वे एक के बाद एक ओलंपिक में हारते गए और जो एक दर्जन पदक की आशा थी वो अब चार-छह पदक की भी नहीं बची है।
मनू भाकर, सौरभ चौधरी, वलारिवान, यशस्विनी देसवाल ने निशानेबाजी में, मेरी कॉम, अमित पंघाल ने मुक्केबाजी में, दीपिका ने तीरंदाजी में उम्मीद से कहीं अधिक निराशाजनक प्रदर्शन किया और ये लगभग तय पदक हाथ से निकल गए। बाकी मनिका बत्रा, सुतिर्था मुखर्जी, शरत कमल (टेबल टेनिस), सुमित नागल (टेनिस), भवानी देवी तलवारबाजी, सानिया मिर्जा, अंकिता रैना (टेनिस), अतानु दास (तीरंदाजी), पूजा रानी, सतिश कुमार (बॉक्सिंग) जैसे कई खिलाड़ी
पहले-दूसरे राउंड तक जीत कर हल्की सी आंस जगाकर उम्मीद के मुताबिक हार कर बाहर हो कर रोज निराश करते रहे। अब भारतीय खेल प्रेमियों की उम्मीदें पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। आज सबसे ज्यादा निराशा स्टार शट्लर पीवी सिंधू के गोल्ड, सिल्वर मेडल चूकने से हुई।
शुरुआत में लगभग एक दर्जन पदक की उम्मीद रखने वाले हम सभी इतना होकर भी अब भी रोज़ टीवी के सामने यह उम्मीद लेकर बैठते है की आज तो कोई ना कोई पदक तो मिलेगा या आगे के लिए तय हो जाऐंगा, लेकिन शाम तक आस टूट जाती है। अब फिर वही बात, बचें आठ दिनों के ओलंपिक में जो आस बची है उसमें अभी भी कुश्ती में बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट से पदक की उम्मीद है।
ये दोनों गोल्ड लाने का माद्दा रखते है लेकिन आशाएँ टूटने से बेहतर है उस दिन का इंतजार करें जब ये कुश्ती खेलने उतरेंगे। सिंधू से अभी भी कांस्य की उम्मीद बाकी है। पुरुष और महिला हॉकी ने भी क्वार्टरफाइनल तक पहुंच कर पदक की आंस जगाए रखी है। एक जो अप्रत्याशित परिणाम देखने मिला वो डिस्कस थ्रो में है। इसमें कमलप्रीत फाइनल में पहूँच गई है और उन्होंने फिर एक मेडल की उम्मीद जगा दी है।
इस सबसे बढकर मुक्केबाजी में लवलिना बार्गोहिन ने सेमीफाइनल में प्रवेश कर ना केवल सबको चौंकाया अपितु खुद के लिए और देश के लिए कम से कम एक कांस्य पदक पक्का कर लिया है। इस तरह अब मेडल के नाम पर दो मेडल तो तय है। एक चानू को मिला हुआ और एक लवलिना का जो मिलना तय है।
बाकी कुश्ती, हॉकी, बेडमिंटन, डिस्कस थ्रो के मेडल मिलना अब भी दूर की कौडी है। मतलब यदि ये मेडल मिलते भी है तो भी संख्या चार-पाँच से ज्यादा नहीं होंगी। यदि इसमें एक या दो गोल्ड आ गए (कुश्ती) तो मेरे देश के खेल प्रेमी इतने भावूक है की उसका ऐसा जश्न मनेंगा की हम पदक तालिका और भारत का फिसड्डी स्थान भूलकर खुद को तुर्रम समझने लगेंगे।
लेकिन यह भी सोचना अभी किसी “मुंगेरीलाल के सपने” से कम नहीं है। ओलंपिक में गए सवा सौ खिलाडियों का शर्मनाक प्रदर्शन से चाहे मन शर्मसार होता हो या ना होता हो लेकिन कभी-कभी ओलंपिक में सतत् घटिया प्रदर्शन देखकर मन करता है खुद ही, मतलब खेल प्रेमियों को चूल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।