कानूनी फैसला पारित करने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास होती है
किसी भी घटना पर आरोपियों को मौत या फांसी की सजा का आश्वासन कोई कैसे दे सकता है? क्या पूरी न्यायिक प्रक्रिया को कोई अनदेखा कर सकता है?- एड. के.एस. भावनानी
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पूरी दुनियां में है। विशेष रूप से हर भारतीय नागरिक को न्यायपालिका पर पूरा भरोसा होता है, जहां हर नागरिक को सामान न्याय की उम्मीद रहती है। हम देखते हैं कि न्यायपालिका इमेज की आंखों पर पट्टी बंधी रहती है व हाथ में तराजू के दोनों पलड़े बराबर स्तर पर होते हैं। यानें राजा से रंक तक के लिए न्याय समान रूप से होता है, इसलिए ही आंखों पर पट्टी बंधी रहती है, कि न्यायपालिका कभी भी देखकर न्याय नहीं करती। पूरे सबूत के आधार पर एक जजमेंट कॉपी बनी हुई होती है जो हजारों पन्नों से अधिक भी हो सकती है। पूरी प्रक्रिया के साथ ही सजा का ऐलान होता है फिर उस जजमेंट के अपील की व्यवस्था भी उसके ऊपर के कोर्ट में होती है। फिर रिवीजन पिटिशन से लेकर राष्ट्रपति के पास माफी की अपील भी होती है। यही न्यायिक व संवैधानिक प्रक्रिया होती है। आज हम इस प्रक्रिया की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि रविवार दिनांक 1 सितंबर 2024 को काउंसिल आफ महाराष्ट्र और गोवा (बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र गोवा) वकीलों की महाराष्ट्र स्तरीय संस्था का पुणे में एक सम्मेलन हुआ जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दो माननीय न्यायमूर्ति भी शामिल हुए व सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि, कानूनी फैसलों की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास ही होती है, फिर भी एक भीड़ तंत्र बनाया जा रहा है। मेरा मानना है कि यह सही है कि हम अक्सर अनेक बड़ी-बड़ी घटनाओं में देखते हैं कि वहां एक के बाद एक बड़े-बड़े राजनीतिक लीडर पहुंचते हैं व उस घटना के संदर्भ में जनता या भीड़ से कहते हैं हम उन आरोपियों को फांसी दिला देंगे, मौत की सजा दिला देंगे या कोई उस भीड़तंत्र में से कहता है, अभी के अभी फांसी दो तो हम आंदोलन समाप्त कर देंगे इत्यादि अनेक बयान आते हैं। जबकि यह सर्वविदित है कि किसी भी अपराध के बाद एक न्यायक प्रक्रिया होती है जो जुडिशल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास से लेकर अपीलों का दौरा जिला न्यायालय, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, रिवीजन, पिटिशन, अपील इत्यादि की जाती है तथा मौत की सजा का माफ़ी नामा राष्ट्रपति तक भी जाता है, यही तो न्यायक व संवैधानिक प्रक्रिया है, जो पीड़ित या आरोपी दोनों के लिए है, यह तो करना ही होता है। यह पूरा मामला अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल में व महाराष्ट्र के बदलापुर में घटित दो घटनाओं के संदर्भ में संज्ञान लेकर आ रहा है, जो फांसी या मौत की सजा दिलाने की बात कहीं ना कहीं राजनीतिक फायदा उठाने के लिए भी की जा सकती है? क्योंकि कानूनी फैसला पारित करने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास होती है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, किसी भी घटना पर आरोपियों को मौत या फांसी की सजा का आश्वासन कोई कैसे दे सकता है? क्या पूरी न्यायिक प्रक्रिया को कोई अनदेखा कर सकता है?
साथियों बात अगर हम बार काउंसिल आफ महाराष्ट्र और गोवा के पुणे सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के संबोधन की करें तो, उन्होंने इस सम्मेलन में जोर देते हुए कहा कि भले ही कानूनी फैसले पारित करने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास है, बावजूद इसके एक भीड़ तंत्र बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमने एक भीड़ तंत्र बना दिया है। जब कोई घटना होती है, तो राजनीतिक लोग इसका फायदा उठाते हैं। नेता उस विशेष स्थान पर जाते हैं और लोगों को आश्वासन देते हैं कि आरोपियों को मौत की सजा दी जाएगी। जबकि निर्णय लेने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास है। अपने संबोधन में उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने और त्वरित, न्यायपूर्ण निर्णय देने के महत्व पर भी जोर दिया, उनकी टिप्पणी कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ दरिंदगी और हत्या की घटना और महाराष्ट्र के बदलापुर के एक स्कूल में दो लड़कियों के कथित यौन शोषण के संदर्भ में आई है। ऐसा मानने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इन दोनों घटनाओं में कई राजनेताओं ने दोषियों को मृत्युदंड देने की मांग की है। इस दौरान न्यायमूर्ति ने संविधान का पालन सुनिश्चित करने में वकीलों और न्यायपालिका के बीच संवेदनशीलता की महत्वपूर्ण भूमिका को भी बताया उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का सम्मान करना है तो उसकी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहनी चाहिए। संविधान का पालन तभी होगा जब वकील और न्यायपालिका संवेदनशील रहेंगे। न्यायपालिका को बनाए रखने में वकीलों की बड़ी भूमिका होती है और उन्हें यह जिम्मेदारी निभानी होगी अन्यथा लोकतंत्र नष्ट हो जाएगा। इस दौरान उन्होंने कुछ मामलों में जमानत देने को लेकर न्यायपालिका की बिना किसी कारण के आलोचना का भी मुद्दा उठाया। वहीं सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति ने इसी कार्यक्रम में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे मूल्यों को संरक्षित करना और कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है। हमारे संविधान को जानना या पढ़ना ही केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके बारे में जागरूक होने की जरूरत है।महिलाओं के उत्पीड़न को देखते हुए न्यायमूर्ति वराले ने लड़कों को लड़कियों और महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि अब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की जरूरत नहीं है, बल्कि बेटा पढ़ाओ का नारा देना भी अब महत्वपूर्ण है।
साथियों बात अगर हम भीड़ तंत्र की सोच की करें तो, सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ने रविवार को कहा कि समाज में ‘भीड़ तंत्र’ पैदा हो रहा है। जब कोई हादसा होता है, तो नेता इसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। वे उस जगह जाते हैं और जनता से वादा करते हैं कि आरोपी को फांसी की सजा दी जाएगी, लेकिन ये तय करना उनका काम नहीं है। ये फैसला लेने की ताकत सिर्फ न्यायपालिका के पास है। यहां उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने और त्वरित और न्यायपूर्ण फैसले सुनाने की अहमियत पर अपनी बात रखी। उन्होने कहा ज्यूडिशियरी की आजादी बनाए रखनी होगी। उन्होंने कहा कि अगर ज्यूडिशियरी का सम्मान करना है, तो इसकी स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी। संविधान का पालन सिर्फ तब होगा जब वकील और ज्यूडिशियरी संवेदनशील रहेंगे। कॉन्फ्रेंस में मौजूद सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ने शिक्षा और जागरूकता के जरिए संविधानिक मूल्यों को बनाए रखने की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अपने मूल्यों को बनाए रखने और कड़ी मेहनत करने से ही सफलता मिलती है। सिर्फ संविधान को जानने या पढ़ने से काम नहीं चलता, हमें इसके प्रति जागरूक भी होना होगा।
साथियों बात अगर हम भीड़ तंत्र में नेताओं की बयान बाजी की करें तो, मानव एक सामाजिक प्राणी है और समूह में रहना हमेशा से मानव की एक प्रमुख विशेषता रही है जो उसे सुरक्षा का एहसास कराती है। लेकिन आज जिस तरह से समूह एक उन्मादी भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं उससे हमारे भीतर सुरक्षा कम बल्कि डर की भावना बैठती जा रही है। भीड़ अपने लिये एक अलग किस्म के तंत्र का निर्माण कर रही है, जिसे आसान भाषा में हम भीड़ तंत्र भी कह सकते हैं। भीड़ के हाथों लगातार हो रही हत्याएँ देश में चिंता का विषय बनता जा रहा है। आए दिन कोई-ना-कोई व्यक्ति हिंसक भीड़ का शिकार हो रहा है। पश्चिम बंगाल सीएम ने कहा था- रेप कानूनों में बदलाव करेंगे, ताकि अपराधियों को फांसी मिलेमॉब रूल की टिप्पणी करते वक्त जस्टिस ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब कोलकाता रेप-मर्डर और महाराष्ट्र के बदलापुर में दो स्कूली छात्राओं के यौन शौषण के मामले सामने आने के बाद अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा सुनाए जाने के मांग उठ रही है। शनिवार (31 अगस्त) को ही एक केंद्रीय मंत्री ने कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर में शामिल अपराधियों के लिए फांसी की सजा की मांग की थी। इससे कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने वादा किया था।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि समाज में भीड़ तंत्र बनाकर राजनीतिक फायदा उठाने का प्रचलन बढ़ रहा है।कानूनी फैसला पारित करने की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास होती है। किसी भी घटना पर आरोपियों को मौत या फांसी की सजा का आश्वासन कोई कैसे दे सकता है? क्या पूरी न्यायिक प्रक्रिया को कोई अनदेखा कर सकता है?
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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