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पार्टिकुलेट मैटर से आगे की है बढ़ते शहरी वायु प्रदूषण की कहानी

निशान्त, Climateकहानी, कोलकाता। एक नए विश्लेषण में शहरी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) से आगे देखने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। जबकि बातचीत में अक्सर पीएम स्तर हावी रहते हैं, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और ओज़ोन जैसे प्रदूषक प्रमुख भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता चुनौतियों में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

व्यापक वायु गुणवत्ता विश्लेषण 

यह अध्ययन दिल्ली, चंडीगढ़, लखनऊ, वाराणसी, पटना, कोलकाता और मुंबई में किया गया, जिसमें 1 जनवरी से 29 फरवरी, 2024 तक की वायु गुणवत्ता डेटा का विश्लेषण किया गया। इस अवधि को आमतौर पर उच्च प्रदूषण स्तरों के लिए चुना गया था, जो प्रमुख वायु गुणवत्ता मुद्दों में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। परिणामों से चिंताजनक रुझान सामने आए हैं, जिसमें प्रमुख शहरी केंद्रों में कई प्रदूषकों की उच्च सांद्रता दिखी।

मुख्य निष्कर्ष: 

– दिल्ली: सबसे उच्च औसत PM2.5 (155.6 µg/m³) और PM10 (268.1 µg/m³) स्तरों के साथ-साथ महत्वपूर्ण NO2 (48.7 µg/m³) स्तरों को प्रदर्शित करता है।

– वाराणसी: तुलनात्मक रूप से कम प्रदूषण स्तर दिखाता है, जो प्रभावी स्थानीय प्रदूषण प्रबंधन रणनीतियों का संकेत है।

– पटना: चल रही निर्माण गतिविधियों के कारण PM10 स्तर (285.4 µg/m³) में वृद्धि का सामना कर रहा है।

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प्रतिकात्मक फोटो, साभार : गूगल

निष्कर्ष व्यापक प्रदूषण नियंत्रण उपायों की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं जो केवल पीएम ही नहीं बल्कि अन्य हानिकारक प्रदूषकों को भी संबोधित करते हैं। 

विशेषज्ञों की राय 

डॉ. विवेक पंवार, सहायक प्रोफेसर, वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय ने समग्र दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दिया: “वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए विभिन्न प्रदूषकों और उनके स्रोतों को संबोधित करना आवश्यक है ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके। यह समग्र दृष्टिकोण हमें क्षेत्र के भीतर प्रदूषण स्रोतों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।”

डॉ. पलक बालयन, रिसर्च लीड, क्लाइमेट ट्रेंड्स ने विभिन्न हस्तक्षेपों की आवश्यकता को इंगित किया: “हमारे पास पीएम स्तर को कम करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। हालांकि, अन्य प्रदूषकों के स्रोत अलग-अलग होते हैं और उन्हें अलग-अलग हस्तक्षेपों की आवश्यकता होती है। हमारा अध्ययन इन जटिलताओं को समझने और प्रदूषण स्तरों में समग्र कमी सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है।”

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव 

वायु प्रदूषण गंभीर जोखिम पैदा करता है, जिसमें श्वसन रोग, हृदय संबंधी समस्याएं और समय से पहले मृत्यु शामिल हैं। उदाहरण के लिए, स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में पाया गया कि 2021 में वायु प्रदूषण के कारण भारत में 170,000 बच्चों की मौत हुई। विश्लेषण का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य निर्णयों को सूचित करना, पर्यावरण नीतियों को आकार देना और वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाना है।

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प्रतिकात्मक फोटो, साभार : गूगल

पीएम से परे प्रदूषक: 

– NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड): मुख्य रूप से दहन प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है, यह श्वसन तंत्र को परेशान कर सकता है और ओज़ोन गठन में योगदान दे सकता है।

– SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड): औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित, यह श्वसन समस्याओं और अम्लीय वर्षा का कारण बन सकता है।

– CO (कार्बन मोनोऑक्साइड): अपूर्ण दहन से उत्पन्न होता है, उच्च सांद्रता में गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव पैदा कर सकता है।

– ओज़ोन: NOx और VOCs के साथ प्रतिक्रियाओं से बनता है, यह श्वसन समस्याओं और वनस्पति को नुकसान पहुंचा सकता है।

कार्रवाई के लिए आह्वान 

अध्ययन निरंतर निगरानी और बहुआयामी प्रदूषण चुनौतियों को संबोधित करने के लिए सक्रिय उपायों का आह्वान करता है। यह कड़े नियमों और लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता को उजागर करता है ताकि दिल्ली और पटना जैसे भारी शहरीकृत क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके।

आगे की बात  

यह बहुप्रदूषक विश्लेषण भविष्य के अध्ययनों और नीतियों के लिए एक मिसाल कायम करता है जिसका उद्देश्य सतत और स्वस्थ शहरी वातावरण बनाना है। वायु प्रदूषकों में स्थानिक और सामयिक विविधताओं को समझकर, हितधारक वायु प्रदूषण से व्यापक रूप से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियां तैयार कर सकते हैं।

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