अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : प्यार का धर्म बंधन

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। प्रेम फूल है तो कांटे भी है, प्रेम खुशी है तो गम भी है, प्रेम खुदाई है तो जुदाई भी है, प्रेम एक अदा है तो सजा भी है, प्रेम एक तोहफ़ा है तो रुसवा भी है, प्रेम को शब्दों में वयां नही किया जा सकता।एक समय था जब जमीला बिना बंदिश के आलोक से मिला करती थी, दोनों एक दूसरे के लिए जान लुटाते थे।जिसके प्यार की चर्चा सरेआम होती थी। जमीला के पिता एक धार्मिक व्यक्ति थे और वो मस्जिद में अज़ान पढ़ने का कार्य करते थे। जिससे उनका परिवार चलता था। लोग उन्हें जुम्मन चाचा कहा करते थे जो स्वभाव से सरल सीधे थे। उनके लिए मानव धर्म से बड़ा कोई धर्म नही था। उन्हें पता था की जमीला एक हिंदू लड़के आलोक से प्यार करती है फिर भी वो उसे नजरअंदाज करते, उनका कहना था की बेटी को घर में ताउम्र रखा नही जा सकता। अगर मेरी बेटी आलोक के साथ हीं खुश रहना चाहती है तो मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता किंतु ये बात उनके धर्म के ठेकेदारों को अच्छी नहीं लगती, अतः वो अपनें कौम के लोगों के साथ जुम्मन चाचा पर दबाव बनाने लगे थे।

उनका कहना था की अगर आपकी बेटी उस हिंदू लड़के आलोक के साथ शादी करती है तो आपको इस्लाम से बेदखल होना पड़ेगा। उसके बाद से जुम्मन चाचा अपनें बेटी जमीला को कैद में रखने लगे। इधर अचानक आलोक का जमीला से मिलना जुलना बंद हो गया जो दोनों के लिये किसी सजा से कम नहीं थी। दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए तड़प जाते और समय गुजरता चला गया। एक दिन आलोक को पता चला की जमीला अपनें माता पिता के साथ सपरिवार अपनें गांव जा रही है।आलोक यह खबर पा कर तड़प सा गया। उसे लगा अब ताउम्र हम एक दूसरे से नही मिल पाएंगे। वो कुछ दूर पर एक कोने में खड़ा होकर जमीला को देखे जा रहा था। लोगों की भीड़ जमा थी। जमीला मुहल्ले के महिलाओं से मिल रही थी किंतु उसकी निगाहें भीड़ में एक झलक पानें के लिये आलोक को खोज रही थी। तभी उसकी नजर आलोक पर पड़ी, वो बुत बन कर आंखों में आसूं लिये जमीला को देख रहा था।

जमीला किसी की परवाह न कर आलोक के पास पहुंच गई और आलोक के आसूं को अपनें दुपट्टे से पोछते हुए कहने लगी, अपना ख्याल रखना, मेरा प्यार झूठे धर्म बंधन में बंध गया है। ये धर्म के ठेकेदार मेरा शरीर तुमसे अलग कर सकते है किंतु ये मन हमेशा तुम्हारे पास रहेगा। मैं जब तक जिंदा रहूंगी हर रूप में तुम्हारा चेहरा देखूंगी, जिस पर किसी का बस नही चलेगा। तभी जमीला की मां वहां पहुंची और जमीला का हाथ पकड़ कर कहने लगी – ये कलमुही हम लोगों की इज्जत आबरू सब खत्म कर दी है और उसे खींच कर अलग करते हुए गाड़ी में बैठाने लगी। आलोक दिल को पत्थर बना कर हाथ हिलाकर जमीला को बिदा कर रहा था। आखों में आसूं लिये जमीला भी हाथ हिला रही थी और गाड़ी चल पड़ी।

कुछ दिनों तक आलोक को ये विश्वास था की जमीला एक ना एक दिन जरूर उससे मिलने आएगी और दो वर्ष निकल गये।अचानक किसी से खबर मिली कि जमीला की शादी 2 फरवरी 1992 को हो गई। और वो अपनें पिता के यहां से अपनें ससुराल चली गई। वो कहां गई किसके साथ उसकी निकाह हुई कुछ पता नहीं चला। समय गुजरता गया और जमीला की शादी के पांच साल हो गए थे तभी आलोक के एक दोस्त ने खबर दी की जमीला फिर से परिवार सहित यहां आ गई है और अब वो यहां ही रहेगी। अब तक जमीला के दो बच्चे भी हो चुके थे। यहां आने के बाद जमीला आलोक का सामना नहीं करना चाहती थी। ऐसे भी वो आलोक का सामना करती भी कैसे? आलोक ने कहा था अगर घर वाले नही चाहते है की हम दोनों की शादी एक दूसरे से हो तो हम लोग भाग कर शादी कर लेते है, किंतु जमीला को ये पसंद नही था। वो चाहती थी की दोनों की शादी ससम्मान हो, वो भाग कर दिनों परिवार को लांक्षणित नही करना चाहती थी।

आलोक के दिमाग में अब ये बात घर कर गई की आखिर क्या हो गया जो जमीला अपनें शौहर को छोड़ कर यहां आ गई। वह सम्मान से रहने वाली लड़की है वो किसी को छोड़ नही सकती। उसका शौहर ही छोड़ा होगा तरह-तरह के प्रश्न आलोक के मन में उठ रहे थे। अब तक आलोक की भी शादी हो चुकी थी किंतु इतने दिनों के बाद भी जमीला को देख कर आलोक का प्यार फिर से जगने लगा था। वो केवल जमीला से उसके साथ गुजरे लम्हों के बारे में जानना चाहता था।आज आलोक गंगा के घाट पर दुनियां से अंजान गंगा के लहरों के अटखेली को निहार रहा था। उसे वो दिन भी याद आ रहे थे जब जमीला और वो गंगा तट पर घंटों बातें किया करते थे। पता ही नहीं चलता था की कब संध्या से रात हो गई।

वो सोच ही रहा था की उसके बगल से किसी के आने की आहट सुनाई दी। आलोक घुमा तो जमीला खड़ी थी। आज वर्षों बाद जमीला को अपनें इतना करीब देख कर उसके समझ में नहीं आ रहा था की वो किन बातों से जमीला का स्वागत करे। तभी जमीला ने कहा – कैसे हो आलोक? बहुत दिनों बाद तुझे देख रही हूं, कोई बदलाव नहीं आया है तुझमें।
आलोक ने भी एक टक जमीला को निहारते हुए कहा – मैं ठीक हूं! तुम कैसी हो?
मैं भी ठीक हूं!
सुना है अब तुम यहीं रहने आ गई हो, आलोक ने कहा।
नही-नही ऐसी कोई बात नही, कुछ दिन के लिए आई हूं। अब तुम बतलाओ, तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी कैसे चल रही है? जमीला आखों में आसूं लिए हुए आलोक से पूछ रही थी।

ये ज़िंदगी है जमीला किसी ना किसी के साथ तो कटना ही पड़ेगा, फिर भी ठीक है समझदार है वो, जिसके बारे में तुम जानना चाहती हो। अब तुम बताओ तुम्हारा वो कैसा है?
कैसा रहेगा, सबकी सोच एक जैसी थोड़ी होती है। मेरे रहते हुए वो दहेज के लोभ में एक और उठा लाया है।
मतलब – आलोक ने जमीला से जानना चाहा।
तभी जमीला ने डबडबाई आखों से कहा – मतलब क्या, मेरी सौतन! अच्छे घर से है पैसे वाली है।
क्या उसके घर वालों को पता नहीं था की तुम्हारा शौहर पहले से शादीशुदा है?
सब पता है किंतु हमारे धर्म में एक से अधिक विवाह की प्रथा जो है!
फिर क्या हुआ?
होता क्या, मैं अपने अब्बा के घर अपनें बच्चों को लेकर आ गई, इन्हीं शोक में मेरी मां का भी इंतकाल हो गया।
वो – क्या चाची अब नही है? आलोक चौक गया।

नही आलोक यही कारण है की मैं पूरी तरह टूट चुकी हूं। मां यहां से जाने के बाद हमेशा कहती थी की धर्म अगर बीच में दीवार न बना होता तो मेरे बेटे की जिंदगी खराब नही होती! मेरे अब्बा ने कोर्ट में केस कर दिया है। आखिर मैं इस उम्र में मैं दो दो बच्चों को लेकर कहां जाऊंगी, अब तो अब्बा की भी उम्र हो गई है और ऐसे भी मस्जिद से उन्हें इतना नही मिल पाता की सबका पेट वो भर सकें, खैर! छोड़ो इन सब बातों को अब बताओ मेरी याद तुझे आती थी की नहीं?
पगली हो! ये क्या पूछने वाली बात है। यही बात अगर मैं पूछूं तो?
तभी जमीला भाऊक होकर कहने लगी, इतनी जल्दी भूल गए आलोक, मैंने जाते वक्त क्या कहा था! जमीला के आखों से आंसू निकल आए थे उसने खुद को संभालते हुए कहा – मुझे पता था मेरे जाते ही तुम मुझे भूल जाओगे।
तभी आलोक ने कहा तुम्हारे उन बातों के सहारे ही तो मैं आज तक जी रहा हूं। तुम्हारी एक एक बात रोज मुझे याद आते है और रातों को जागते है। दोनों के आसूं छलक गये थे। जब भी रातों को मेरी आंखें घर के छत को निहारती है मेरी पत्नी समझ जाती है और मुझे समझा कर सुला देती है।

क्या? तुम्हारे पत्नी को मेरे और तुम्हारे संबंधों के बारे में पता है! हां जमीला सब पता है, वो कहती है की जो लड़की हमारे अनुपस्थिति में मेरे पति की देखभाल की वो, पूरे ख्याल से जिसके सलामती की दुआ मांगती हो वो मेरे लिए बुरा कैसे हो सकती है। इन बातो को केवल एक औरत ही सहन कर सकती है।
आलोक, मेरे पति को जब तुम्हारे और हमारे संबंधों के बारे में पता चला तो वो उस दिन से ही हमे रोज पिटता है, तुम तो उसके सपनों में भी आते हो! जब मैं कही जाती और लेट हो जाती तो वो पिटता कहता आ गई मिलकर अपनें यार से, उसे क्या पता की हम लोग आज 15 सालों से एक दूसरे का शक्ल भी नही देखे, सबसे बड़ी ये बात की वो अब तक 4 औरतों के साथ निकाह किया और एक दो साल रख कर फिर तलाक दे दिया। जिसकी मुखालिफत करने की क्षमता भी मेरे पास नही है। जब भी मैं कुछ बोलती पीटी जाती। छोड़ो उन सब बातों को वो अपने दुपट्टे से आखों को पोछते हुए बोली!

एक बात बताओ आलोक, वो दिन याद है जब हम और तुम इसी जगह पर अक्सर मरने जीने की कसमें खाया करते थे, हां मुझे याद है किंतु नियति को कौन रोक सकता है। हमनें तो कभी सोचा भी नही था की हम दोनों जुदा होंगे, तब तो वो भी बातें याद होंगी जब तुम मेरे लिए मुगलई पराठा लाए थे और हम बातों में ही उलझे रह गए और पड़ोस का बच्चा आ कर चुपके से सब खा गया और तुम मुंह बनाकर बैठ गई, दोनो हंसने लगे। किंतु मैं अब सोचने लगी हूं की अब जीवन कैसे चलेगा, अकेले कितने दिनों मैं अपनी जिंदगी काटूंगी।

इस लिए कहता हूं की तुम पगली हो! अरे इस में अकेले रहने जैसी बात कहां से आ गई, तुझे पता नही मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं जितना पहले करता था। मुझे ये भी पता है जमीला की मुझसे दूर रहना तेरी मजबूरी थी चाहत नहीं और आलोक के कंधे पर जमीला अपनी सर रख कर रोने लगी। मुझे विश्वास था आलोक की तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, मगर प्यार में धर्म बंधन ने मेरी जिंदगी उजाड़ दी, तुम चिंता मत करो जमीला जब तक मैं हूं तुझे किसी चीज की कमी नही होगी।
मुझे तुमसे यही आशा थी आलोक, तुम भी चिंता मत करना मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी मैं भी कुछ ना कुछ करूंगी जिससे मेरा और मेरे बच्चो का परवरिश हो सके। अब चलती हूं अंधेरा छा गया है।

जाते जाते आलोक जमीला के सर को चूम रहा था और वो आंखे बंद कर आलोक के बाहों में सिमट गई थी।दोनों अपने अपने घर चल पड़े थे। कुछ दिनों के लिए आलोक बाहर चला गया, जब वो पुनः अपनें घर लौटा तो पता चला की जमीला फिर अपनें अब्बा के साथ कहीं चली गई और आलोक रोज उसका इंतजार करने लगा किंतु उसके गये हुए आज 16 साल हो गये किंतु आज भी आलोक की निगाहें जमीला को ढूंढती है मगर वो कहीं नहीं दिखती, क्या पता वो किस हालत में कहां और कैसे होगी। किंतु विश्वास है वो एक दिन जरूर दिखेगी और आलोक के मन को शांति मिलेगी।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक /कवि

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