नई दिल्ली। Corona in India : सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 की दूसरी लहर को ‘राष्ट्रीय संकट’ करार देते हुए शुक्रवार को अधिकारियों को फटकार लगाई। कोर्ट ने पूछा, ‘हाशिये पर रह रहे लोगों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी का क्या होगा?क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?’ कोर्ट ने कहा कि 70 सालों में हमें जो स्वास्थ्य सेक्टर मिला है, वह अपर्याप्त है और स्थिति खराब है।
पीठ ने कहा कि छात्रावास, मंदिर, गिरिजाघरों और अन्य स्थानों को कोविड-19 मरीज देखभाल केंद्र बनाने के लिए खोलना चाहिए। साथ ही, केंद्र सरकार को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीके के लिए भुगतान करने में सक्षम नहीं होगा।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘सूचना का निर्बाध प्रवाह होना चाहिए, हमें नागरिकों की आवाज सुननी चाहिए। यह राष्ट्रीय संकट है। कोई इस तरह की सोच नहीं होनी चाहिए कि इंटरनेट पर की जाने वाली शिकायतें हमेशा गलत होती हैं। सभी पुलिस महानिदेशकों को कड़ा संदेश जाना चाहिए कि किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।’
‘हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकती केंद्र सरकार’
शीर्ष अदालत ने दिल्ली को ऑक्सीजन की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित न करने पर केंद्र की खिंचाई की। पीठ ने कहा, ‘आप हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकते। मेरी अंतरात्मा हिल गई है। हम आपके हाथों 500 लोगों की मौत नहीं देख सकते।
आपको तत्काल कुछ करना होगा और दिल्ली को 200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जो कमी हो रही है, उसकी आपूर्ति करें।’ न्यायालय ने कोविड-19 के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवा सुनिश्चित करने के लिए स्वत: संज्ञान सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
‘राजनीति से परे केंद्र सरकार से बात करे दिल्ली सरकार’ : शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार की भी खिंचाई की और कहा कि कोई भी राजनीतिक विवाद उत्पन्न नहीं किया जाना चाहिए तथा उसे स्थिति से निपटने में केंद्र का सहयोग करना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘राजनीति, चुनाव के लिए है और मानवीय विपदा में इस समय प्रत्येक जीवन की देखभाल करने की आवश्यकता है। कृपया उच्चतम स्तर पर हमारा संदेश पहुंचा दें कि उन्हें राजनीति को एक तरफ रख देना चाहिए तथा केंद्र से बात करनी चाहिए।’
एससी/एसटी आबादी का क्या होगा?
पीठ देश में वर्तमान और निकट भविष्य में ऑक्सीजन की अनुमानित मांग तथा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निगरानी तंत्र जैसे मुद्दों पर विचार कर रही है। न्यायालय ने वर्चुअल सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अग्रिम मोर्चे पर कार्य कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी इलाज के लिए अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं। न्यायालय ने पूछा, ‘हाशिये पर रह रहे लोगों और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?’