25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में इमरजेंसी यानी आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह अब तक का सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ थे, जिन्होंने वक्तव्य दिया था की “इंदिरा ही भारत है और भारत ही इंदिरा है”। आज बात-बात में लोकतंत्र खतरे में है, लोकतंत्र की हत्या हो रही है!चिल्लाने वालों को आज ही के दिन 46 साल पहले देश में लगाए गए इमरजेंसी के काले दिनों की या तो याद नहीं है या याद नहीं करना चाहते! इसके बाद पैदा हुए नई पीढ़ी के लोगों और नेताओं के लिए तो यह सिर्फ इतिहास भर है। पूछिए उनसे जिन्होंने इस दौर को देखा है या भोगा है।
1971 चुनाव के बाद इंदिरा गाँधी के खिलाफ भ्रष्टाचार को ले कर जबरदस्त जन आक्रोश था। जनता में जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने मुख्य विपक्षी दलों को साथ ले कर आंदोलन छेड़ दिया –इंदिरा गाँधी भ्रष्टाचार शिरोमणि के रूप में जानी जाने लगी और तब 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने राजनारायण की चुनाव याचिका पर इंदिरा जी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया और फिर आज ही के दिन 25 जून 1975 को इंदिरा ने लोकतंत्र का गला घोंटकर कर इमरजेंसी लगा दी। इमरजेंसी में क्या-क्या हुआ उसके विस्तार में नहीं जाऊंगा मैं, मगर इंदिरा जी ने जो इमरजेंसी में 2 काम किये उनसे कांग्रेस को देश को भ्रष्टाचार कर लूटने और बचने का पूरा प्रबंध कर दिया।
इंदिरा जी ने हाई कोर्ट के जज द्वारा उन्हें बर्खास्त किये जाने से समझ लिया था कि जुडिशरी ही उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। इंदिरा जी को पता था उनके परिवार और कांग्रेस में उनसे भी बड़े भ्रष्टाचार शिरोमणि पैदा होंगे इसलिए उन सबको बचाने के लिए इंदिरा जी ने “प्रतिबद्ध न्यायपालिका” (Committd Judiciary) के सिद्धांत को जन्म दे कर न्यायपालिका में अपने जजों को भरना शुरू कर दिया जो इंदिरा जी के परिवार और कांग्रेस के लोगों को बचा कर रखे।
दूसरा काम इंदिरा ने यह किया कि सारे विपक्ष को जेल में डाल कर संविधान के 42वें संशोधन द्वारा भारत को “सेक्युलर” देश बना दिया और ये सेक्युलर चरित्र देश के लिए नासूर बन गया। सेक्युलरिज्म के नाम पर तुष्टिकरण का दौर शुरू हो गया। लोकतंत्र की हत्या इंदिरा ने इमरजेंसी में की लेकिन जनता जनार्दन ने भी जम कर विरोध किया और अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें सत्ता से ऐसे हटाया कि 10 राज्यों में कांग्रेस का दिया जलाने के लिए एक उम्मीदवार भी नहीं जीता इंदिरा जी और संजय गाँधी समेत सभी हार गए। लोकतंत्र तो फिर स्थापित हो गया मगर देश बहुत पीछे चला गया।
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)