प्रयागराज के महाकुंभ में बौद्धिक विचारों का महाकुंभ…

कोलकाता। वैश्विक संस्कृतिक महोत्सव महाकुम्भ में भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और भाषाई पहचान को दिशा देने वाली प्रतिष्ठित संस्था “हिंदी साहित्य भारती“ द्वारा आयोजित चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय उपवेशन का भव्य और दिव्य आयोजन हुआ। हिंदी और भारतीय भाषाओं को उसकी प्रतिष्ठा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध डॉ. रवीन्द्र शुक्ल (अंतरराष्ट्रीय संस्थापक अध्यक्ष, पूर्व शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार) ने हिंदी साहित्य भारती को भाषाओं की सीमाओं से बाहर निकाल कर भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने वाले निर्णायक बिंदुओं पर विचार करना आरंभ कर दिया है।

इस उपनिवेश की सफलता का पहला श्रेय उनके त्याग, तपस्या और समर्पण को जाता है। उन्होंने जिस तरह से देश विदेश के साहित्य, कला, संस्कृति से जुड़े लोगों को एकसूत्र में बांध रखा है वह अनुकरणीय है। इस उपवेशन में भारतीय ज्ञान परम्परा, सांस्कृतिक राष्ट्रबोध, इंडिया बनाम भारत, धर्म और पंथ जैसे विषयों पर गहराई से विचार किया गया। इससे पता चला है कि अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति शुक्ल जी की दूरदृष्टि और समर्पण कितना गहरा है। वर्तमान में ये विषय भारत के गौरवशाली इतिहास को नई दृष्टि से देखने का अवसर देंगे।

आयोजन में आमंत्रित वक्ताओं ने बड़े मनोयोग और विस्तार से अपने विचार प्रस्तुत किए। अधिवेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की गरिमापूर्ण उपस्थिति रही। रवींद्र शुक्ल जी के निर्देशन में उनकी समिति ने इस भव्य आयोजन का दायित्व ही नहीं लिया बल्कि उसे पूरा करके दिखाया। इस में प्रस्फुटित विचारों से भारत की युवा पीढ़ी अपने गौरवशाली अतीत से परिचित तो होगी ही साथ ही भविष्य में उसे संवारने का भी कार्य करेगी।

यह उपनिवेश मात्र कुछ बौद्धिक विचारों का मिलन समारोह नहीं था बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को नया आयाम देना वाला वैचारिक महाकुंभ था। शुक्ल जी की ऊर्जावान टीम ने इस आयोजन में उक्त बिंदुओं पर गहराई से विचार करने का बीज डाल दिया है, अब अवसर है कि हम उसे पल्लवित पुष्पित करें।

हिंदी साहित्य भारती से जुड़ना मेरे लिए ही नहीं, किसी के लिए भी गर्व का विषय हो सकता है क्योंकि उसका नेतृत्व एक ऐसे सहज लेकिन विराट व्यक्तित्व के हाथ में हैं जिनके लिए हिंदी और भारतीय भाषाएं प्रतिष्ठा का प्रश्न है। एक तरफ हम जहां हिंदी को हिंग्लिश बनाने में लगे हुए हैं वहीं आदरणीय शुक्ल जी अपने तमाम संसाधनों के साथ हिंदी भाषा को उसके गौरवशाली इतिहास से जोड़ने का महनीय कार्य कर रहे हैं।

अपने व्यक्तिगत साधनों और ऊर्जा का उपयोग कर शुक्ल जी ने इस आयोजन के माध्यम से यह साबित कर दिया कि जो बड़ी-बड़ी संस्थाएं नहीं कर सकती हैं, वह आत्मिक बल से मात्र कुछ भाषा, साहित्य, कला प्रेमियों को जोड़कर किया जा सकता है। इस अधिवेशन में देश विदेशों से आए विशिष्ट विद्वानों को सम्मानित किया गया। पश्चिम बंगाल कोलकाता से डॉ. सुनीता मंडल को हिन्दी की सेवा हेतु सम्मानित किया गया।कोलकाता से सुजाता साहा ने काव्य पाठ करके स्मृति चिन्ह प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया।

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