विनय सिंह बैस की कलम से…

विनय सिंह बैस, रायबरेली। अब स्मृति शेष हो चुके पापा और अम्मा की इस छवि

विनय सिंह बैस की कलम से…

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। हमारे देश की विविधता के बारे में प्रचलित है –

विनय सिंह बैस की कलम से : अगहन बरसे हून, पूस बरसे दून

अम्मा कहती थी – “कातिक बात कहातिक, अगहन हांड़ी अदहन, पूस काना टूस। माघ तिले-तिल

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विनय सिंह बैस की कलम से : “बैसवारा की कतकी/कार्तिक पूर्णिमा”

करवा हैं करवाली, उनके बरहें दिन दिवाली। उसके तेरहें दिन जेठुआन, और फिर चुटिया-पुटिया बांध

विनय सिंह बैस की कलम से : बैसवारा का जेठुआन!!

विनय सिंह बैस, रायबरेली। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘देवउठनी एकादशी’ या

विनय सिंह बैस की कलम से- बचपन वाली दीवाली!!

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। बचपन की दीपावली का मतलब छोटी दीवाली, बड़ी दिवाली और

विनय सिंह बैस की कलम से : कातिक आने को है!!

नई दिल्ली। अब सुबह घास में पड़ने वाली ओस सूरज की पहली किरण पड़ते ही

विनय सिंह बैस की कलम से : नीलकंठ

नई दिल्ली। पौराणिक मान्यता है कि विजयदशमी की तिथि को भगवान श्रीराम ने राक्षस रावण

विनय सिंह बैस की कलम से : ‘बरी’ उर्फ ‘उसरहा’ गांव

रायबरेली। रायबरेली जिले के लालगंज बैसवारा कस्बे से छह किलोमीटर दूर स्थित ‘बरी’ गांव को

कुआर आ गया है!!

विनय सिंह बैस, रायबरेली। ओस सुबह-सवेरे घास पर मोतियों सी बिखरने लगी है। बारिश के