विनय सिंह बैस की कलम से… मेरी पहली रेल यात्रा

नई दिल्ली । संस्कृत की एक सूक्ति है- ‘चरन्ति वसुधां कृत्स्नां वावदूका बहुश्रुताः’ यानी बुद्धिमान