अमृता प्रीतम का इश्क : खामोशी और जज्बातों की दास्तान

भारतीय भाषाओं के जिन लेखकों, रचनाकारों ने पिछली सदी में समाज पर गहरी छाप छोड़ी

रूपल की कविता – “सपनों के चिथड़े”

“सपनों के चिथड़े” आज मैंने जब देखा कांधे पर चढ़े तुम्हारे बच्चों की आँखें उनमें

रिया सिंह की कविता : “प्रेम”

“प्रेम” उन अंजान राहों में हुई थी मुलाकात उनसे जाने अंजाने में हुई थी बात

खड़गपुरिया तारकेश कुमार ओझा की चंद लाइनें ….

पहले से जिंदा लाश की तरह जीने वाले समाज के गरीब तबके की जिंदगी को

काला धन से कोरोना तक ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया 

बात दो राक्षसों की कहानी की है कहानी की शुरुआत कुछ साल पहले हुई। हर

रूपल की कविता : “माँ”

माँ कई दिनों से माँ को हर रोज़ रात को फ़ोन करती हूँ सोने से

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आत्मनिर्भरता की पढ़ लो पढ़ाई ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया 

शहंशाह का मूड आज बदला बदला है आज खास बैठक में बात आत्मनिर्भर बनाने की

रिया सिंह की कविता : “पण्डित जी”

“पण्डित जी” धर्म का चोला पहनकर अधर्म वो करते रहते हैं, कुछ पण्डित ऐसे भी

मां ने कहा है बेटा बहु को ले आओ ( कहानी ) : डॉ लोक सेतिया 

चिट्ठी लिखी है मां ने बेटे के नाम। सबसे ऊपर लिखा है राम जी का

वर्चुअल मंच पर “सावन की कजरी” का आयोजन

कोलकाता : कोरोना के आतंक के इस दौर में शनिवार 1 अगस्त 2020 को शाम