डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।जातिवाद का जह्र।। डीपी सिंह क्यों करनी है जातिगत, जनगणना श्रीमान? लागू करना है यहाँ,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया जग में है इक क़ौम जो, करती “गन” की बात स्वांग करे डर का
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया दिल्ली ऐसा राज्य है, जैसे कोई नार उस बेचारी नार के, हैं दो दो
डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।कुण्डलिया।। नेता जी! तुम मत करो, यहाँ न्याय की बात तय हो मज़हब-जाति से, जब
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया न्याय व्यवस्था देश की, बिल्कुल ही है भिन्न तय उत्तर पहले करें, तदनुसार हल
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया हिन्दी में जो हेय था, इंग्लिश देती मान अब रखैल को मिल रहा, लिव-इन
डीपी सिंह की रचनाएं
प्रकृति बिना कैसी प्रगति? डीपी सिंह धुन्ध-धुएँ से हो रहा, आच्छादित आकाश। इस पिशाच के
डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।कुण्डलिया।। पानी की फिर कब मिले, पता नहीं इक घूँट पीता कुछ, कुछ “डील” में,