अजय तिवारी ” शिवदान ” की कविता : ” ठूंठ “

” ठूंठ “ लहलहाता था, छाया भी देता था। हवा बहाता था, ठंड पहुंचाता था।

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अजय तिवारी “शिवदान” की कविता : प्रकृति से वार्तालाप

मैंने पूछा प्रकृति से कि क्यों कुपित हो गई हो? मुझको जवाब मिला , मानव

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