कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य साथी योजना के तहत पिछले छह सालों में करीब नौ हजार करोड़ रुपये का खर्च हुआ है। जबकि 60 लाख लोगों को मुफ्त चिकित्सा मिली है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत को ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया और उसकी जगह स्वास्थ्य साथी योजना जो पहले से चल रहा था उसे और मजबूत करने की घोषणा की थी। स्वास्थ्य साथी कार्ड के जरिए विभिन्न अस्पतालों से बिना इलाज लौट रहे लोगों की खबरें सामने आने के बाद इस योजना की काफी किरकिरी भी हुई थी लेकिन स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दें तो यह बेहद सफल योजना रही है। जुलाई 2017 में मुख्यमंत्री ने इसकी शुरुआत की थी और तब से लेकर अब तक छह वर्षों में 60 लाख लोगों को विभिन्न अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिल चुका है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हेल्थ कार्ड से दो करोड़ 43 लाख परिवारों को फायदा हुआ है। इस योजना में सरकार ने कैंसर और दिल के मरीजों के इलाज पर ज्यादा खर्च किया है। इस संबंध में राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य में इस परियोजना की कम आलोचना नहीं हो रही है। कई मामलों में ऐसी शिकायतें थीं कि अस्पताल स्वास्थ्य कार्ड स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। नतीजा यह होगा कि अगर आप इलाज के लिए अस्पताल जाएंगे तो भी आपको इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर अस्पतालों से बार-बार बात करके इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की है।
दरअसल, पहले कैंसर और दिल समेत कई बीमारियों का इलाज धीरे-धीरे मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर होता जा रहा था। लेकिन इस कार्ड के जरिए लाखों लोगों को इलाज मिला है। वर्तमान में नौ करोड़ लोगों को यह कार्ड मिला है। और दो करोड़ 43 लाख परिवारों को फायदा हुआ है। स्वास्थ्य साझेदारों के संबंध में राज्य सरकार से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, अब तक कैंसर देखभाल पर सबसे अधिक खर्च हुआ है। नौ हजार करोड़ में से डेढ़ हजार करोड़ सिर्फ कैंसर के इलाज पर खर्च किए गए हैं। इसके अलावा कई अन्य क्षेत्र भी हैं जैसे न्यूरोलॉजी, डायलिसिस और अन्य जहां बड़ी राशि खर्च हुई है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2022-23 तक राज्य सरकार ने हर महीने डेढ़ लाख मरीजों का बिल भरी है। इसकी मासिक लागत करीब 200 करोड़ रुपये रही है। 12 महीने का कुल खर्च दो हजार 400 करोड़ था लेकिन बजट आवंटन दो हजार 500 करोड़ था। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि हर दिन इस परियोजना के लाभार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसलिए सालाना लागत बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि साल के अंत तक इस सेक्टर में खर्च 3000 करोड़ के करीब हो सकता है।