स्‍वामी विवेकानंद जयंती आज, उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : भारत के महान पुरुषों में से एक और महान विचारक स्‍वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को मनाई जाती है। इसे देश भर में राष्‍ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है। स्‍वामी विवेकानंद का बेहद साधारण जीवन और उनके महान विचार हम सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत जैसा है।

रामकृष्‍ण मिशन और रामकृष्‍ण मठ की स्‍थापना : स्‍वामी विवेकानंद एक महान विचारक और ऐसे हिंदू नेता थे, जिन्‍होंने भारत की आध्‍यात्मिक संस्‍कृति को विश्‍व भर में एक नई पहचान दिलाई। इसी दिशा में उन्‍होंने रामकृष्‍ण मिशन और रामकृष्‍ण मठ की स्‍थापना की। उनका जन्‍मदिन हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास के कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी को माना जाता है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्‍मदिन हर साल 12 जनवरी को मनाया जाता है। देश भर में इसे राष्‍ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रामकृष्‍ण मिशन और रामकृष्‍ण मठ की विभिन्‍न शाखाओं में हवन, धार्मिक प्रवचन जैसे आध्‍यात्कि कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

ऐसा था बचपन : स्‍वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्‍त था और वह बेहद नटखट और शरारती थे। कई बार उनकी माताजी भुवनेश्वरी देवी उनको शांत करने के लिए एक अलग तरीका अपनाती थीं। वह उनका सिर ठंडे पानी में डुबो कर ‘ओम नम: शिवाय’ का जाप करती। इसके बाद वह तुरंत शांत हो जाया करते थे। स्‍वामीजी को पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों से खास लगाव था। यहां तक कि उन्‍होंने बचपन में गाय, बंदर, बकरी, मोर और कई कबूतर पाल रखे थे। आध्‍यात्म के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था और वह अक्‍सर साधु-संतों के प्रवचनों को सुना करते थे। नरेंद्रनाथ दत्त 25 साल की उम्र में घर-बार छोड़कर संन्यासी बन गए थे। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद पड़ा।

जब अमेरिका में बजीं तालियां : अमेरिका में एक बार हुई धर्म संसद में जब स्‍वामी विवेकानंद ने अमेरिकी लोगों को ‘भाइयों और बहनों’ कहकर अपना भाषण शुरू किया तो आर्ट इंस्‍टीट्यूट ऑफ शिकागो में 2 मिनट तक तालियां बजाती रहीं। 11 सितंबर 1893 का वो द‍िन हमेशा-हमेशा के ल‍िए इतिहास में दर्ज हो गया।

रामकृष्‍ण परमहंस से उनका संवाद : बताया जाता है कि स्‍वामी विवेकानंद तब महान समाज सुधारक रामकृष्‍ण परमहंस से मिले तो उन्‍होंने वही सवाल किया जो वह औरों से भी पहले कर चुके थे। उनका सवाल था, ‘क्‍या आपने कभी भगवान को देखा है ?’ इस पर रामकृष्‍ण परमहंस का जवाब था, ‘मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।’

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