कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को फटकार लगाई है। चटर्जी शिक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत मांग रहे थे। उनका तर्क था कि अन्य सभी सह-अभियुक्तों को जमानत मिल गई है, जबकि वे दो साल से ज़्यादा समय से जेल में हैं।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और उज्ज्वल भुयन की पीठ ने कहा कि दूसरे आरोपियों के साथ बराबरी की मांग मत करो।
वे मंत्री नहीं हैं। आप उस विभाग के मंत्री थे जहां यह कथित भर्ती घोटाला हुआ। आप अपनी और आपकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के स्वामित्व वाली फर्मों से भारी मात्रा में धन की बरामदगी पर ध्यान दीजिये। पहली नजर में आप एक भ्रष्ट आदमी हैं।
चटर्जी के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अभियुक्त पहली बार अपराध कर रहा है। उसे जमानत मिलनी चाहिए क्योंकि उसने अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा जेल में काट लिया है। अगर उसे दोषी ठहराया जाता है तो उसे अधिकतम सजा हो सकती है।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) के वकील, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का लाभकारी प्रावधान लागू नहीं होता क्योंकि चटर्जी के खिलाफ कई मामले लंबित हैं।
जब रोहतगी ने कहा कि यह ED और CBI के दुखद रवैये को दर्शाता है कि वे उन्हें एक के बाद एक मामले में फंसाते रहें ताकि उन्हें जमानत पर जेल से बाहर न निकलना पड़े।
इस पर जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब मंत्री एक घोटाले का मास्टरमाइंड होता है और कोर्ट उसे जमानत दे देता है, तो यह समाज को क्या संदेश देता है? कि एक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति जमानत पा सकता है? जाहिर है शुरुआती जांच में आप भ्रष्ट हैं।
हालांकि, पीठ ने तुरंत स्पष्ट किया कि चूंकि जांच चल रही है और निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की संभावना नहीं है, इसलिए अदालत को आरोपी के अधिकारों को उपयुक्त शर्तों के साथ संतुलित करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बिना किसी बाधा के निष्पक्ष जांच हो।
रोहतगी ने प्रस्ताव दिया कि चटर्जी छह महीने के लिए बंगाल से बाहर रहेंगे। अगर इससे ईडी को बिना किसी बाधा के जांच पूरी करने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि चटर्जी को टीएमसी से हटा दिया गया है। यह संकेत देते हुए कि उनका राज्य सरकार के माध्यम से कोई प्रभाव नहीं है।
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